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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 79/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सत्यश्रवा आत्रेयः देवता - उषाः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - षड्जः

    सा नो॑ अ॒द्याभ॒रद्व॑सु॒र्व्यु॑च्छा दुहितर्दिवः। यो व्यौच्छः॒ सही॑यसि स॒त्यश्र॑वसि वा॒य्ये सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । नः॒ । अ॒द्य । आ॒भ॒रत्ऽव॑सुः । वि । उ॒च्छ॒ । दु॒हि॒तः॒ । दि॒वः॒ । यो इति॑ । वि । औच्छः॑ । सही॑यसि । स॒त्यऽश्र॑वसि । वा॒य्ये । सुऽजा॑ते । अश्व॑ऽसूनृते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सा नो अद्याभरद्वसुर्व्युच्छा दुहितर्दिवः। यो व्यौच्छः सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सा। नः। अद्य। आभरत्ऽवसुः। वि। उच्छ। दुहितः। दिवः। यो इति। वि। औच्छः। सहीयसि। सत्यऽश्रवसि। वाय्ये। सुऽजाते। अश्वऽसूनृते ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 79; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे सत्यश्रवसि सुजाते वाय्येऽश्वसूनृते सहीयसि दिवो दुहितरिव विदुषि स्त्रि ! यो या त्वमाभरद्वसुः सती नोऽस्मान् व्यौच्छः सा त्वमद्य सुसुखे व्युच्छ ॥३॥

    पदार्थः

    (सा) (नः) अस्मान् (अद्य) (आभरद्वसुः) या समन्ताद्वसूनि बिभर्त्ति सा (वि) (उच्छ) विवासय (दुहितः) दुहितरिव (दिवः) कामयमानस्य (यो) या (वि) (औच्छः) निवासितवती वर्त्तते (सहीयसि) अतिशयेन सोढ्रि (सत्यश्रवसि) सत्येन व्यवहारेण प्राप्तान्नाद्यैश्वर्य्ये (वाय्ये) गमनीये (सुजाते) शोभनया विद्यया प्रकटीभूते (अश्वसूनृते) महाज्ञानयुक्ते ॥३॥

    भावार्थः

    यदि स्त्रियः प्रातर्वेलावच्छुभगुणाः स्युस्तर्हि सर्वानानन्दे निवासयितुमर्हन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सत्यश्रवसि) सत्य व्यवहार से प्राप्त अन्न आदि ऐश्वर्य्यवाली (सुजाते) अच्छी विद्या से प्रकट हुई (वाय्ये) प्राप्त होने योग्य (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त (सहीयसि) अतिशय सहनशील और (दिवः) कामना करते हुए की (दुहितः) कन्या के सदृश विदुषी स्त्री (यो) जो तू (आभरद्वसुः) सब प्रकार से धनों को धारण करनेवाली हुई (नः) हम लोगों को (वि) विशेष करके (औच्छः) निवास करानेवाली है (सा) वह आप (अद्य) आज उत्तम सुख में (वि) विशेष करके (उच्छ) निवास कराओ ॥३॥

    भावार्थ

    जो स्त्रियाँ प्रातर्वेला के सदृश श्रेष्ठ गुणवाली हों तो सब को आनन्द में वसाने के योग्य होती हैं ॥३॥

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    विषय

    पति पत्नी दोनों के पक्षों में समान योजना ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( दुहितः ) कन्ये ! हे ( दिवः दुहितः ) कामनावान् तेजस्वी पति की कामनाओं को पूर्ण करने हारी वा सूर्यवत् उत्तम विद्वान् की कन्ये ! तू ( भरद्-वसुः ) धन सम्पदा को अपने गृह में लाने हारी वा पितृगृह से लेजाने हारी और ( भरद्-वसुः ) बसाने वाले पति आदि का मातृवत् भरण पोषण करने हारी होकर ( नः ) हमारे आगे ( सा ) वह तू (वि उच्छ) उषावत् अपने गुणों का प्रकाश कर (यः) जो ( सहीयसि ) सत्यश्रवसि, वाय्ये, सुजाते, अश्वसूनृते वि औच्छः ) हे सहनशील, हे सत्यप्रतिज्ञे, हे उत्तम सन्तानोत्पादक ! हे सुपुत्रि ! हे शुभवाणि ! तू बलवान् सत्य प्रतिज्ञ, उत्तम सन्ततिजनक, शुभगुणवान् और विद्वान् पुरुष के अधीन रहकर (वि औच्छः ) विशेष रूप से गुणों को प्रकट कर । अर्थात् उत्तम कन्या को अपने गुणों की परीक्षा देना आवश्यक है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सत्यश्रवा आत्रेय ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः – १ स्वराड्ब्राह्मी गायत्री । २, ३, ७ भुरिग् बृहती । १० स्वराड् बृहती । ४, ५, ८ पंक्तिः । ६, ९ निचृत्-पंक्तिः ॥

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    विषय

    आभरद्वसुः

    पदार्थ

    [१] हे (दिवः दुहित:) = ज्ञान का [प्रकाश का] प्रपूरण करनेवाली उषे! तू (आभरद्वसुः) = सब वसुओं का भरण करनेवाली है, जीवन के लिये आवश्यक तत्त्वों से परिपूर्ण है। (सा) = वह तू (नः) = हमारे लिये (अद्य) = आज (व्युच्छा) = अन्धकार को दूर करनेवाली हो । [२] तू वह है (या उ) = जो निश्चय से सहीयसि शत्रुओं को कुचलनेवाले, (सत्यश्रवसि) = सत्य कीर्तियुक्त कर्मोंवाले, (वाय्ये) = कर्मतन्तु का विस्तार करनेवाले, (सुजाते) = उत्तम विकासवाले, (अश्वसूनृते) = कर्मों में व्याप्त सूनृत वाणीवाले पुरुष में (व्यौच्छः) = सदा उदित हुई है, अन्धकार को दूर करनेवाली हुई है। वस्तुत: तूने ही उसे 'सहीयान्' इत्यादि सार्थक नामोंवाला बनाया है।

    भावार्थ

    भावार्थ- उषा सब वसुओं का भरण करनेवाली है। यह हमें शत्रुमर्षण आदि कार्यों में समर्थ करती है ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जर स्त्रिया प्रातःकाळाप्रमाणे श्रेष्ठ गुणांनी युक्त असल्या तर सर्वांना आनंदात ठेवतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May she, daughter of the light of heaven, harbinger of all wealth, establish us today in the light of life. She is most forbearing, dedicated to truth and prosperity, lovable, nobly born, the enlightened lady of knowledge and eternal truth who herself shines in splendour.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of an ideal woman are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened lady ! you have acquired food materials and other kind of wealth with your truthful conduct. That you manifest with good knowledge. Easily approachable, and endowed with great wisdom and forbearance, you are like the daughter of the noble person desiring the welfare of all. You are the upholder of all kinds of wealth, and have established us firmly. Today, establish us in great happiness.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If women are endowed with noble virtues like the dawn, you can establish all beings in bliss.

    Foot Notes

    (वाय्ये) गमनीये । वीधातोत्यर्थमादायात्न व्याख्या । = Easily approachable. (सत्यश्रवसि ) सत्येन व्यवहारेण प्राप्तान्नाचैश्वर्य्य = She who has acquired food materials, and other wealth with truthful dealings. (सुजाते) शोमनया विद्यया प्रकटीभूते । सु + जनी - प्रादुर्भवे (दिवा० )। = Manifest with good knowledge. (अश्वसूनुते ) महाज्ञानयुक्ते । (अश्व सूनृता -अश्व इति महन्नाम महर्षि दयानन्द -भाष्ये बहुषु स्थलेषु 5, 7, 9, 1 किन्त्वद्यतन निघण्टौ न स पाठो दृश्यत इति विचित्रम् ) = Endowed with great wisdom.

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