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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 79/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सत्यश्रवा आत्रेयः देवता - उषाः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    ऐषु॑ धा वी॒रव॒द्यश॒ उषो॑ मघोनि सू॒रिषु॑। ये नो॒ राधां॒स्यह्र॑या म॒घवा॑नो॒ अरा॑सत॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ए॒षु॒ । धाः॒ । वी॒रऽव॑त् । यशः॑ । उषः॑ । म॒घो॒नि॒ । सू॒रिषु॑ । ये । नः॒ । राधां॑सि । अह्र॑या । म॒घऽवा॑नः । अरा॑सत । सुऽजा॑ते । अश्व॑ऽसूनृते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐषु धा वीरवद्यश उषो मघोनि सूरिषु। ये नो राधांस्यह्रया मघवानो अरासत सुजाते अश्वसूनृते ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। एषु। धाः। वीरऽवत्। यशः। उषः। मघोनि। सूरिषु। ये। नः। राधांसि। अह्रया। मघऽवानः। अरासत। सुऽजाते। अश्वऽसूनृते ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 79; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे अश्वसूनृते सुजाते मघोन्युषर्वद्वर्त्तमान उत्तमे स्त्रि ! त्वमेषु सूरिषु वीरवद्यश आ धाः। ये मघवानो नोऽह्रया राधांस्यरासत तांस्त्वं सत्कुर्य्याः ॥६॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (एषु) स्त्रीपुरुषेषु (धाः) धेहि (वीरवत्) वीरा विद्यन्ते यस्मिँस्तत् (यशः) कीर्त्तिम् (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (मघोनि) प्रशंसितधनयुक्ते (सूरिषु) विद्वत्सु (ये) (नः) अस्मान् (राधांसि) अन्नानि (अह्रया) अलज्जया प्रतिपादितानि (मघवानः) बहुधनयुक्ताः (अरासत) दद्युः (सुजाते) (अश्वसूनृते) ॥६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । सैव प्रशंसिता स्त्री या पितृपतिकुले शुभाचरणेन पितृपतिकुलं प्रकाशयेत् ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञानवाली (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (मघोनि) प्रशंसित धन से युक्त और (उषः) प्रातःकाल के सदृश वर्त्तमान उत्तम स्त्री ! तू (एषु) इन स्त्री-पुरुषों और (सूरिषु) विद्वानों में (वीरवत्) वीरजन विद्यमान जिसमें उस (यशः) यश को (आ) सब प्रकार से (धाः) धारण कर और (ये) जो (मघवानः) बहुत धनों से युक्त जन (नः) हम लोगों को (अह्रया) विना लज्जा से कहे गये (राधांसि) अन्नों को (अरासत) देवें, उनका तू सत्कार कर ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वही प्रशंसित स्त्री है जो पिता और पति के कुल में श्रेष्ठ आचरण से पिता और पति के कुल को प्रकाशित करे ॥६॥

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    विषय

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    भावार्थ

    भा०-हे ( सुजाते ) शुभ गुणों से युक्त उत्तम पुत्रि ! हे ( अश्व-सूनृते ) बलवान् वा विद्वान् पुरुषों के प्रति उत्तम वाणी बोलने हारी ! हे ( उषः ) प्रभात वेला के समान कान्तिमति ! कमनीये ! हे ( मघोनि ) उत्तम ऐश्वर्य, सौम्य से युक्त सौभाग्यवति ! ( ये ) जो ( मघवानः ) स्वयं धनसम्पन्न होकर ( नः ) हमें ( अह्रया ) बिना लज्जा वा संकोच के प्राप्त करने योग्य ( राधांसि ) ज्ञान आदि धनों को ( अरासत ) दान करते हैं ( एषु ) उन ( सूरिषु) विद्वान् पुरुषों के बीच में रहकर तू (वीर-वत् ) उत्तम पुत्रादि से युक्त ( यशः) कीर्त्ति, अन्न, धन आदि को ( आधाः ) सब प्रकार से धारण कर और उनमें ( यशः ) श्रद्धा से अन्न आदि प्रदान कर ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सत्यश्रवा आत्रेय ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः – १ स्वराड्ब्राह्मी गायत्री । २, ३, ७ भुरिग् बृहती । १० स्वराड् बृहती । ४, ५, ८ पंक्तिः । ६, ९ निचृत्-पंक्तिः ॥

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    विषय

    दान व वीर सन्तान

    पदार्थ

    [१] हे (मघोनि) = ऐश्वर्योंवाली (उषः) = उषे ! (एषु) = इन प्रातः जागरणशील ज्ञानी व्यक्तियों में (वीरवत्) = उत्तम वीर सन्तानोंवाले (यशः) = यशस्वी धन को (आ धाः) = स्थापित कर। [२] हे (सुजाते) = उत्तम विकास की कारणभूत (अश्वसूनृते) = कर्मों में व्याप्त प्रिय सत्यवाणीवाला हमें बनानेवाली उषे ! (नः) = हमारे में से (ये) = जो भी व्यक्ति (अह्रया) = अक्षीयमाण (राधांसि) = धनों को (अरासत) = देते हैं, अर्थात् सदा दानशील होते हैं वे ही (मघवान:) = ऐश्वर्यशाली बनते हैं। इनके ऐश्वर्य दानादि उत्तम कर्मों में विनियुक्त होते हुए इनके जीवनों में विलास को नहीं उत्पन्न होने देते।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रातः जागें । उत्तम ऐश्वर्यों को कमाते हुए दानशील हों वीर सन्तानों को प्राप्त करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी पिता व पतीच्या कुलात श्रेष्ठ आचरण करून पिता व पतीच्या कुलाला श्रेष्ठ बनविते त्याच स्त्रीची प्रशंसा होते. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O dawn, lady of light, nobly born, enlightened, progressive and truthful, commanding wealth and power, vest these brave and generous celebrants with honour and excellence worthy of heroes, who, blest with wealth and honour, give us means and materials for success in life which are free from discredit and shame.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Virtues of an ideal woman are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned lady! you are endowed with great wisdom and truthful and are of sweet speech. O renowned ! you are such on account of good knowledge. O admirable wealthy and beautiful! You are like the radiant dawn, and give good reputation to these wealthy persons with heroic progeny. Those who are endowed with abundant wealth have given to us good food materials without undue shyness (i.e. voluntarily. Ed.)

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    She only is the admirable lady who with her good conduct illuminates both the families of her parents as well as of her husband.

    Foot Notes

    (राधासि) अन्नानि । राध इति धननाम (NG 2, 1 10 ) राध ( स्वा० ) = Good food materials in the form of wealth. (अरासत ) दद्युः । = May give.

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