ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 79/ मन्त्र 7
तेभ्यो॑ द्यु॒म्नं बृ॒हद्यश॒ उषो॑ मघो॒न्या व॑ह। ये नो॒ राधां॒स्यश्व्या॑ ग॒व्या भज॑न्त सू॒रयः॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥७॥
स्वर सहित पद पाठतेभ्यः॑ । द्यु॒म्नम् । बृ॒हत् । यशः॑ । उषः॑ । म॒घो॒नि॒ । आ । व॒ह॒ । ये । नः॒ । राधां॑सि । अश्व्या॑ । ग॒व्या । भज॑न्त । सू॒रयः॑ । सुऽजा॑ते । अश्व॑ऽसूनृते ॥
स्वर रहित मन्त्र
तेभ्यो द्युम्नं बृहद्यश उषो मघोन्या वह। ये नो राधांस्यश्व्या गव्या भजन्त सूरयः सुजाते अश्वसूनृते ॥७॥
स्वर रहित पद पाठतेभ्यः। द्युम्नम्। बृहत्। यशः। उषः। मघोनि। आ। वह। ये। नः। राधांसि। अश्व्या। गव्या। भजन्त। सूरयः। सुऽजाते। अश्वऽसूनृते ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 79; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अश्वसूनृते सुजाते मघोन्युषर्वद्विदुषि स्त्रि ! ये नः सूरयोऽश्व्या गव्या राधांसि भजन्त तेभ्यो बृहद् द्युम्नं यशश्चाऽऽवह ॥७॥
पदार्थः
(तेभ्यः) विद्वद्भ्यः (द्युम्नम्) धनम् (बृहत्) महत् (यशः) कीर्त्तिम् (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (मघोनि) बहुधनयुक्ते (आ) (वह) समन्तात्प्रापय (ये) (नः) अस्माकम् (राधांसि) (अश्व्या) अश्वेभ्यो हितानि (गव्या) गोभ्यो हितानि (भजन्त) सेवन्ते (सूरयः) विद्वांसः (सुजाते) (अश्वसूनृते) ॥७॥
भावार्थः
ये विद्वांसो सर्वसुखाय पदार्थानुन्नयन्ति त उषर्वत्प्रकाशकीर्त्तयो भूत्वा सुखिनो जायन्ते ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त और (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (मघोनि) बहुत धनवती (उषः) प्रातःकाल के सदृश वर्त्तमान विदुषि स्त्रि ! (ये) जो (नः) हम लोगों में (सूरयः) विद्वान् जन (अश्व्या) घोड़ों के लिये और (गव्या) गौओं के लिये हितकारक (राधांसि) धनों का (भजन्त) सेवन करते हैं (तेभ्यः) उन विद्वानों के लिये (बृहत्) बड़े (द्युम्नम्) धन और (यशः) यश को (आ, वह) सब प्रकार से प्राप्त कराओ ॥७॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन सब के सुख के लिये पदार्थों की वृद्धि करते हैं, वे प्रातःकाल के सदृश प्रकाशित यशवाले होकर सुखी होते हैं ॥७॥
विषय
missing
भावार्थ
भा०-हे ( सुजाते ) शुभ गुणों से प्रसिद्ध ! हे ( अश्वसूनृते ) विद्वानों के प्रति शुभ ज्ञानयुक्त वाणी बोलने और उनसे ग्रहण करने तथा उनको उत्तम अन्न देने हारी उत्तम विदुषि ! ( ये सूरयः ) जो विद्वान् पुरुष ( नः ) हमारे ( अश्व्या ) अश्वों से युक्त और ( गव्याः ) गौओं से युक्त या अश्वों गौओं के हितकारी ( राधांसि ) धनों को ( भजन्त ) सेवन करते उनको अपने व्यवहार में लाते हैं हे ( मघोनि ) सौभाग्य लक्ष्मीवाली ! ( उषः ) हे कान्तियुक्त ! तू ( तेभ्यः ) उनको ( बृहत् ) बड़ा (द्युम्नं ) धन और ( यशः आ वह ) यश प्राप्त करा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सत्यश्रवा आत्रेय ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः – १ स्वराड्ब्राह्मी गायत्री । २, ३, ७ भुरिग् बृहती । १० स्वराड् बृहती । ४, ५, ८ पंक्तिः । ६, ९ निचृत्-पंक्तिः ॥
विषय
द्युम्न- बृहद् यशः
पदार्थ
[१] हे (मघोनी) = ऐश्वर्यशालिनी (उषः) = उषे ! तू (तेभ्यः) = उनके लिये (द्युम्नम्) [power, strength] शक्ति को और (बृहद्) = अत्यन्त प्रवृद्ध (यशः) = कीर्ति को (आवह) = प्राप्त करा । (ये) = जो (नः) = हमारे में से (सूरयः) = ज्ञानी लोग (अश्व्या) = कर्मेन्द्रिय सम्बन्धी तथा (गव्या) = ज्ञानेन्द्रिय सम्बन्धी (राधांसि) = सफलता को देनेवाले धनों को (भजन्त) = सेवित करते हैं। जो ज्ञानेन्द्रियों के ऐश्वर्य 'ज्ञान' को तथा कर्मेन्द्रियों के ऐश्वर्य 'कर्मशक्ति' को प्राप्त करने के लिये यत्नशील होते हैं, उनके लिये यह उषा शक्ति व कीर्ति को देनेवाली होती है । [२] हे उषः ! तू (सुजाते) = उत्तम प्रादुर्भाववाली है, उत्तम विकास का कारण बनती है। (अश्वसूनृते) = तू कर्मों में व्याप्त होनेवाली सत्यवाणीवाली है। उषाकाल में जागनेवाला व्यक्ति कर्मों में व्याप्त रहता है और सूनृत वाणी को बोलनेवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ- उषा जागरण शक्ति व कीर्ति का कारण बनता है ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान सर्वांच्या सुखासाठी पदार्थांची वृद्धी करतात ते प्रातःकाळाप्रमाणे प्रकाशित होऊन यश मिळवून सुखी होतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O dawn, lady of light, mistress of honour and excellence, nobly born and enlightened, truthful, dynamic and progressive, bear and bring vast wealth and honour of high order for those brave celebrants who produce wealth, means and materials for success in terms of food and speed, cattle wealth and transport, progress and prosperity and in their generosity share it with us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More about the ideal woman is said.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned lady ! you are endowed with great wisdom and truth and sweet speech, and are renowned on account of your good knowledge. O shining by your virtuous, admirably wealthy and beautiful like the radiant dawn, grant great wealth to those enlightened persons who supply us fodder for our horses and for our cows. Give ( Reward. Ed.) them wealth and great reputation.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those enlightened persons who uphold (sustain) all articles for the happiness of all, become happy, and full of .splendor like the dawn.
Foot Notes
(द्युम्नम् ) धनम् । द्यम्नम् इति धननाम (NG 2, 10)। = Wealth. (सूरयः) विद्वांसः । सूरिः इति स्तोतनाम (NG 3, 16) अत्र ईश्वरस्तोतॄणे विदुषां ग्रहणम् । = Enlightened persons.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal