ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 83/ मन्त्र 1
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - सविता
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अच्छा॑ वद त॒वसं॑ गी॒र्भिरा॒भिः स्तु॒हि प॒र्जन्यं॒ नम॒सा वि॑वास। कनि॑क्रदद्वृष॒भो जी॒रदा॑नू॒ रेतो॑ दधा॒त्योष॑धीषु॒ गर्भ॑म् ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअच्छ॑ । व॒द॒ । त॒वस॑म् । गीः॒ऽभिः । आ॒भिः । स्तु॒हि । प॒र्जन्य॑म् । नम॑सा । वि॒वा॒स॒ । कनि॑क्रदत् । वृ॒ष॒भः । जी॒रऽदा॑नुः । रेतः॑ । द॒धा॒ति॑ । ओष॑धीषु । गर्भ॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अच्छा वद तवसं गीर्भिराभिः स्तुहि पर्जन्यं नमसा विवास। कनिक्रदद्वृषभो जीरदानू रेतो दधात्योषधीषु गर्भम् ॥१॥
स्वर रहित पद पाठअच्छ। वद। तवसम्। गीःऽभिः। आभिः। स्तुहि। पर्जन्यम्। नमसा। आ। विवास। कनिक्रदत्। वृषभः। जीरऽदानुः। रेतः। दधाति। ओषधीषु। गर्भम् ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 83; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ मेघः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् ! यो वृषभ इव जीरदानुः कनिक्रदन्नमसाऽऽविवासौषधीषु रेतो गर्भं दधाति तं पर्जन्यमाभिर्गीर्भिरच्छा वद तवसं च स्तुहि ॥१॥
पदार्थः
(अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वद) (तवसम्) बलम् (गीर्भिः) वाग्भिः (आभिः) वर्त्तमानाभिः (स्तुहि) प्रशंस (पर्जन्यम्) मेघम् (नमसा) अन्नाद्येन (आ) (विवास) विवसति (कनिक्रदत्) शब्दयन् (वृषभः) बलीवर्द इव (जीरदानुः) यो जीवयति (रेतः) उदकम्। रेत इत्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (दधाति) (ओषधीषु) (गर्भम्) ॥१॥
भावार्थः
मनुष्यैर्विद्वद्भ्यो मेघविद्या यथावद्विज्ञातव्या ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब दश ऋचावाले तिरासीवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मेघ कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वान् ! जो (वृषभः) थूहेवाले बैल के सदृश (जीरदानुः) जीवानेवाला (कनिक्रदत्) शब्द करता हुआ (नमसा) अन्न आदि के साथ (आ, विवास) सब ओर से बसता और (ओषधीषु) ओषधियों में (रेतः) जल रूप (गर्भम्) गर्भ को (दधाति) धारण करता है उस (पर्जन्यम्) मेघ को (आभिः) इन वर्त्तमान (गीर्भिः) वाणियों से (अच्छा) उत्तम प्रकार (वद) कहिये और (तवसम्) बल की (स्तुहि) प्रशंसा करिये ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों से मेघविद्या का यथावत् विज्ञान करें ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात मेघ व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
माणसांनी विद्वानांकडून मेघविद्या जाणून घ्यावी. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Hail the mighty cloud well with these holy words of song, serve, celebrate and energise it with homage in yajna for peace and a happy home. Roaring and thundering with passion, the virile cloud, giver of life and freshness, impregnates the herbs with the seed of generation.
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