Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 83 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 83/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अत्रिः देवता - पृथिवी छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यत्प॑र्जन्य॒ कनि॑क्रदत्स्त॒नय॒न् हंसि॑ दु॒ष्कृतः॑। प्रती॒दं विश्वं॑ मोदते॒ यत्किं च॑ पृथि॒व्यामधि॑ ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । प॒र्ज॒न्य॒ । कनि॑क्रदत् । स्त॒नय॑न् । हंसि॑ । दुः॒ऽकृतः॑ । प्रति॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । मो॒द॒ते॒ । यत् । किम् । च॒ । पृ॒थि॒व्याम् । अधि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्पर्जन्य कनिक्रदत्स्तनयन् हंसि दुष्कृतः। प्रतीदं विश्वं मोदते यत्किं च पृथिव्यामधि ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। पर्जन्य। कनिक्रदत्। स्तनयन्। हंसि। दुःऽकृतः। प्रति। इदम्। विश्वम्। मोदते। यत्। किम्। च। पृथिव्याम्। अधि ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 83; मन्त्र » 9
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यद्यः पर्जन्य कनिक्रदत् स्तनयन् दुष्कृतो हंसि यत्किं चेदं पृथिव्यामधि विश्वं वर्त्तते तत्सर्वं येन मेघेन प्रति मोदते स महानुपकार्यस्ति ॥९॥

    पदार्थः

    (यत्) यः (पर्जन्य) पर्जन्यो मेघः (कनिक्रदत्) भृशं शब्दयन् (स्तनयन्) गर्जनं कुर्वन् (हंसि) अत्र पुरुषव्यत्ययः। (दुष्कृतः) ये दुःखेन कुर्वन्ति तान् (प्रति) (इदम्) वर्त्तमानम् (विश्वम्) सर्वं जगत् (मोदते) (यत्) (किम्) (च) (पृथिव्याम्) (अधि) उपरि ॥९॥

    भावार्थः

    मेघेनैव सर्वाणि भूतान्यानन्दन्ति तस्मादिदं मेघनिर्माणाख्यं कर्म परमेश्वरस्य धन्यवादार्हमस्तीति सर्वे विजानन्तु ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यत्) जो (पर्जन्य) मेघ (कनिक्रदत्) अत्यन्त शब्द करता तथा (स्तनयन्) गर्जन करता हुआ (दुष्कृतः) दुःख से करनेवालों का (हंसि) नाश करता है (यत्) जो (किम्) कुछ (च) भी (इदम्) यह वर्त्तमान (पृथिव्याम्) पृथिवी (अधि) पर (विश्वम्) सम्पूर्ण जगत् वर्त्तमान है वह जिस मेघ से (प्रति, मोदते) आनन्दित होता है, वह बड़ा उपकारी है ॥९॥

    भावार्थ

    मेघ से ही सम्पूर्ण प्राणी आनन्दित होते हैं, इससे यह मेघ को बनानारूप कर्म्म परमेश्वर का धन्यवाद के योग्य है, यह सब लोग जानो ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मेघवत् उदार सर्वप्रिय राजा ।

    भावार्थ

    भा०—हे ( पर्जन्य ) शत्रुओं के विजेता और प्रजाओं को समृद्धि से तृप्त करने हारे ! ( यत् ) जब तू मेघ के समान ( कनिक्रदत् ) गर्जता और ( स्तनयन् ) विद्युत् के समान कट कटाता अथवा ( स्तनयत् ) स्तन के समान मधुर सुखों की वृष्टि करता हुआ ( दुष्कृतः हन्ति ) दुष्टाचारियों का नाश करता है तब ( इदं विश्वं ) यह विश्व ( यत् किं च ) जो कुछ भी ( पृथिव्याम् अधि ) पृथिवी पर स्थावर जंगम सृष्टि है वह (प्रति मोदते) तुझे देख प्रसन्न होती है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः। पर्जन्यो देवता ॥ छन्दः – १ निचृत्त्रिष्टुप् । २ स्वराट् त्रिष्टुप, । ३ भुरिक् त्रिष्टुप् । ४ निचृज्जगती । ५, ६ त्रिष्टुप् । ७ विराट् त्रिष्टुप् । ८, १० भुरिक् पंक्तिः । ६ निचृदनुष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    निष्पापता व प्रसन्नता

    पदार्थ

    [१] हे (पर्जन्य) = महान् विजेतः प्रभो ! (यत्) = जब आप (कनिक्रदत्) = हृदयस्थरूपे 'ऋग् यजु साम' रूप वाणियों का उच्चारण करते हैं। तो (स्तनयन्) = इन वेदवाणियों की गर्जना करते हुए (दुष्कृतः) = सब पापकारियों को हंसि नष्ट करते हैं। वेदवाणियों की प्रेरणा उनके पापों को सुदूर प्रेरित करनेवाली हो जाती है। [२] उस समय पाप के नष्ट हो जाने पर (यत् किञ्च पृथिव्यां अधि) = जो इस पृथिवी पर चराचरात्मक जगत् है, (इदम्) = यह (विश्वम्) = सबका सब (प्रतिमोदते) = प्रतिदिन आनन्द का अनुभव करता है। निष्पापता में ही आनन्द है। पाप 'पातक' है, हृदय को गिरानेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु वेद-ज्ञान के क्रन्दन से हमारे पापों को नष्ट करते हैं। उस समय यह सब चराचरात्मक जगत् प्रतिमोदित हो उठता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्रार्थ

    (पर्जन्य) हे मेघ! (यत्) जब (कनिक्रदत्) शब्द करता हुआ गर्जता हुआ (स्तनयन्) कडकता हुआ (दुष्कृत: हंसि) बुरा करने वाले दुर्भिक्ष रोगादि का हनन करता है (पृथिव्याम् अधियत् किञ्च इदं विश्वम्) पृथिवी पर जो कुछ भी यह सब प्राणी मात्र (प्रतिमोदते) प्रतिमोदन करता है- हर्ष को प्रतीत करता है ॥९॥

    टिप्पणी

    समा समानाः ( सायण: ) समाः वर्षाणि ( दयानन्द )

    विशेष

    ऋषि- भौमोऽत्रिः(पृथिवी के बाहिरी स्तरों का वेत्ता विद्वान्)देवता—पर्जन्यः।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    मेघानेच संपूर्ण प्राणी आनंदित होतात. त्यामुळे मेघनिर्मितीचे कार्य परमेश्वराला धन्यवाद देण्यायोग्य आहे. हे सर्वांनी जाणावे. ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the cloud roars and thunders and destroys all the negativities which do evil, then in response to the cleansing and vitalising rain this entire humanity and all else that is on earth rejoices in celebration.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of cloud is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! when this cloud roaring and thundering, smites down the evil doers, this whole world rejoices and also everything that is upon the earth.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All creatures rejoice by the sight and function (raining) of the cloud. So this work (action. Ed.) of God in the form of creation of the cloud is worthy of thanks by all. Let all people know this.

    Foot Notes

    (कनिक्रदत्) भृशं शब्दयत् । ऋदि-वैक्लव्ये। = Much roaring.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top