ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 61/ मन्त्र 10
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - सरस्वती
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
उ॒त नः॑ प्रि॒या प्रि॒यासु॑ स॒प्तस्व॑सा॒ सुजु॑ष्टा। सर॑स्वती॒ स्तोम्या॑ भूत् ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । नः॒ । प्रि॒या । प्रि॒यासु॑ । स॒प्तऽस्व॑सा । सुऽजु॑ष्टा । सर॑स्वती । स्तोम्या॑ । भू॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा। सरस्वती स्तोम्या भूत् ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठउत। नः। प्रिया। प्रियासु। सप्तऽस्वसा। सुऽजुष्टा। सरस्वती। स्तोम्या। भूत् ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 61; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सा कीदृशीत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यथा नः सरस्वती प्रियासु प्रिया सप्तस्वसा सुजुष्टोत स्तोम्या भूत्तथा युष्माकमपि भवतु ॥१०॥
पदार्थः
(उत) अपि (नः) अस्माकम् (प्रिया) कमनीया (प्रियासु) सुखप्रदासु स्त्रीषु वा (सप्तस्वसा) सप्त पञ्च प्राणा मनो बुद्धिश्च स्वसेव यस्याः सा (सुजुष्टा) सुष्ठु सेविता (सरस्वती) सरो बह्वन्तरिक्षं सम्बद्धं विद्यते यस्याः सा (स्तोम्या) स्तोतुमर्हा (भूत्) भवतु ॥१०॥
भावार्थः
ये मनुष्याः सर्वतः शुद्धिकरीं सत्यां वाचं जानन्ति त एव प्रशंसनीया भवन्ति ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे (नः) हमारी (सरस्वती) वह सरस्वती जिसको बहुत अन्तरिक्ष का सम्बन्ध है तथा (प्रियासु) सुख देनेवाली क्रिया वा स्त्रियों में (प्रिया) मनोहर (सप्तस्वसा) जिसके सात अर्थात् पाँच प्राण, मन और बुद्धि बहिन के समान वर्त्तमान तथा (सुजुष्टा) अच्छे प्रकार सेवित की हुई (उत) और (स्तोम्या) स्तुति करने योग्य (भूत्) हो, वैसे तुम्हारी भी हो ॥१०॥
भावार्थ
जो मनुष्य सब ओर से शुद्धि करनेवाली सत्य वाणी को जानते हैं, वे ही प्रशंसा करने योग्य होते हैं ॥१०॥
विषय
missing
भावार्थ
( उत) और ( सरस्वती ) उत्तम अन्तरिक्ष में विचरने वाली एवं उत्तम ज्ञान से पूर्ण वाणी (सप्त-स्वसा) ५ प्राण, मन और बुद्धि इन ७ मुखों में स्थित वा ७ प्राणों से युक्त, ( सु-जुष्टा) सुखपूर्वक सेवित, ( प्रियासु ) सब प्रिय वृत्तियों में भी ( नः प्रिया) हमें अति प्रिय होने से ( स्तोम्या भूत् ) स्तुति योग्य है । वेदवाणी, गायत्री आदि सात छन्दों से 'सप्त-स्वसा' है । वहीं अति प्रिय होकर ( स्तोम्या ) भगवत्स्तुति के योग्य है । इत्येकविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ सरस्वती देवता ॥ छन्दः – १, १३ निचृज्जगती । २ जगती । ३ विराड् जगती । ४, ६, ११, १२ निचृद्गायत्री । ५, विराड् गायत्री । ७, ८ गायत्री । १४ पंक्ति: ॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'सप्तस्वसा' सरस्वती
पदार्थ
[१] (उत) = और (सप्तस्वसा) = सात गायत्री आदि छन्दो रूप स्वसाओंवाली यह (सरस्वती) = वेदरूप ज्ञान की वाणी (नः) = हमारे लिये (प्रियासु प्रिया) = प्रिय वस्तुओं में प्रियतम हो । [२] यह (सुजुष्टा) = हमारे से प्रीतिपूर्वक सेवन की जाती हुई (स्तोम्या भूत्) = स्तुति के योग्य हो। हम सरस्वती का आराधन करते हुए प्रभु स्तवन की वृत्तिवाले बनें। सरस्वती हमारे लिये स्तोम्य हो, हमें स्तोम में प्रवृत्त करे ।
भावार्थ
भावार्थ- सरस्वती वेदवाणी है। यह गायत्री आदि सात छन्दोरूप सात स्वसाओंवाली है । यह सुसेवित होने पर स्तोम्य होती है, हमें प्रभु स्तवन की प्रवृत्तिवाला बनाती है ।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे सर्वस्वी पवित्र करणारी सत्य वाणी जाणतात तीच प्रशंसनीय असतात. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And may Sarasvati, dynamic stream of light, knowledge and speech, dearest among seven lovely sister streams of knowledge, word, and mind and senses, loving and blissful, be adorable and remain favourable.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is the speech-is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! we may acquire speech, which is very much desirable, very dear among the acts or women bestowing happiness, having seven (i.e. five Pranas, mind and intellect) as sisters, well-served or properly used and admirable.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those men only are praise-worthy, who use purifying and truthful speech from all sides.
Foot Notes
(सप्तस्वसा) सप्त पंच प्राणा मनो बुद्धिश्च स्वसेव यस्याः सा। = Having five Pranas, mind and intellect, these seven as sisters. Five pranas or vital breaths are named as प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान । (सुजुष्टा) सुष्ठु सेविता । जुषी-प्रीति सेवनयो: (तुदा) | = Served well, used properly and lovingly.
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