ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 61/ मन्त्र 8
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - सरस्वती
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
यस्या॑ अन॒न्तो अह्रु॑तस्त्वे॒षश्च॑रि॒ष्णुर॑र्ण॒वः। अम॒श्चर॑ति॒ रोरु॑वत् ॥८॥
स्वर सहित पद पाठयस्याः॑ । अ॒न॒न्तः । अहु॑तः । त्वे॒षः । च॒रि॒ष्णुः । अ॒र्ण॒वः । अमः॑ । चर॑ति । रोरु॑वत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्या अनन्तो अह्रुतस्त्वेषश्चरिष्णुरर्णवः। अमश्चरति रोरुवत् ॥८॥
स्वर रहित पद पाठयस्याः। अनन्तः। अहुतः। त्वेषः। चरिष्णुः। अर्णवः। अमः। चरति। रोरुवत् ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 61; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सा वाक् कीदृशीत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यस्या वाचोऽह्रुतस्त्वेषश्चरिष्णुरनन्तोऽर्णवो रोरुवदमश्चरति तां यूयं विजानीत ॥८॥
पदार्थः
(यस्याः) सरस्वत्या वाचः (अनन्तः) निःसीमः (अह्रुतः) अकुटिलः सरलः (त्वेषः) प्रकाशः (चरिष्णुः) गन्ता (अर्णवः) समुद्र इवाऽऽकाशः (अमः) यो गच्छति (चरति) प्राप्नोति (रोरुवत्) भृशं रौति शब्दं करोति ॥८॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यावानाकाशस्तावानेव शब्दोऽनन्तो यथा समुद्रे जलं पूर्णमस्ति तथैवाऽऽकाशे शब्दोऽस्तीति विजानीत ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह वाणी कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यस्याः) जिस वाणी का (अह्रुतः) अकुटिल सरल (त्वेषः) प्रकाश वा (चरिष्णुः) जानेवाले (अनन्तः) निःसीम (अर्णवः) समुद्र के तुल्य आकाश (रोरुवत्) निरन्तर शब्द करता वा (अमः) फैलनेवाला (चरति) प्राप्त होता है, उसको तुम जानो ॥८॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जितना आकाश है, उतना ही शब्द अनन्त है, जैसे समुद्र में जल पूरा है, वैसे आकाश में शब्द है, यह जानो ॥८॥
विषय
missing
भावार्थ
( यस्याः ) जिस वाणी का ( अनन्तः ) अनन्त ( अमः ) व्यापक ज्ञान ( अह्रुतः ) कुटिलतारहित, सरल, ( त्वेषः ) दीप्तियुक्त, ( चरिष्णुः ) फैलने वाला, ( अर्णवः ) सत्य से युक्त, समुद्र के समान महान्, ( रोरुवत् ) शब्द करता हुआ उपदेश रूप में ( चरति ) गुरु से शिष्य के पास जाता है वह वेदवाणी सबको अभ्यास करने योग्य है । ( २ ) इसी प्रकार ( यस्याः अमः ) जिसका साथी पुरुष अनन्त बलशाली, ( त्वेषः ) तेजस्वी, ( चरिष्णुः ) विचारशील, समुद्रवत् गम्भीर, गर्जना वा उपदेश करता हुआ विचरता है । ( ३ ) इसी प्रकार नदी का ( अमः ) गमन स्थान समुद्र है, वह गर्जता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ सरस्वती देवता ॥ छन्दः – १, १३ निचृज्जगती । २ जगती । ३ विराड् जगती । ४, ६, ११, १२ निचृद्गायत्री । ५, विराड् गायत्री । ७, ८ गायत्री । १४ पंक्ति: ॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
अनन्त बल
पदार्थ
[१] हम उस सरस्वती की आराधना करें (यस्याः) = जिसका (अमः) = बल (अनन्तः) = अपरिमित है। (अह्रुतः) = कुटिलता से रहित है, (त्वेष:) = दीप्त है तथा (चरिष्णुः) = गतिशील है। सरस्वती की आराधना से अनन्त बल को प्राप्त करते हुए हम अकुटिल दीप्त व गतिशील जीवनवाले बनते हैं। [२] इस सरस्वती का (अर्णवः) = प्रशस्त ज्ञान जलवाला बल (रोरुवत्) = खूब ही प्रभु के नामों का उच्चारण करता हुआ (चरति) = गतिवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ– स्वाध्याय हमें 'शक्तिशाली, अकुटिल, दीप्त, गतिशील व प्रभु के नामों का उच्चारण करनेवाला' बनाता है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जितके आकाश आहे तितके शब्द अनंत आहेत. जसे समुद्रात जल परिपूर्ण असते तसे आकाशात शब्द असतात हे जाणा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Whose radiation of light and dynamic flow of speech moves on and on endless, straight and upright, roaring across the ocean of space, that is the Mother Sarasvati.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is the speech is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men you should know the nature and power of that well trained speech well, whose straightforward, limitless light is like the sky or the ocean, swift moving and going everywhere making great sound is attained by the wise.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The sound is endless like the sky. As water is full in the ocean, so there is sound in the sky. This is what you should know.
Foot Notes
(अहुत:) अकुटिलः सरलः । (अहृत:) - कौटिल्ये नञ् । = Straight, not crooked. (अर्णवः) समुद्र इवाऽऽकाशः अर्णः इत्युदकनाम (NG 1, 12) भव: जलयुक्तः समुद्रः अततद्वत् अनन्त आकाश: । (अम:) यो गच्छति सः । अम-गत्यादिषु (भ्वा) = Going everywhere. (त्वेष:) प्रकाश: । त्विषदीप्तौ (स्वा.)। = Light, luster ( रोरुवत् ) भृशं रोति शब्दं करोति । रु-शब्दे (अदा) = Roar, making a great sound.
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