ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 61/ मन्त्र 5
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - सरस्वती
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यस्त्वा॑ देवि सरस्वत्युपब्रू॒ते धने॑ हि॒ते। इन्द्रं॒ न वृ॑त्र॒तूर्ये॑ ॥५॥
स्वर सहित पद पाठयः । त्वा॒ । दे॒वि॒ । स॒र॒स्व॒ति॒ । उ॒प॒ऽब्रू॒ते । धने॑ । हि॒ते । इन्द्र॑म् । न । वृ॒त्र॒ऽतूर्ये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्त्वा देवि सरस्वत्युपब्रूते धने हिते। इन्द्रं न वृत्रतूर्ये ॥५॥
स्वर रहित पद पाठयः। त्वा। देवि। सरस्वति। उपऽब्रूते। धने। हिते। इन्द्रम्। न। वृत्रऽतूर्ये ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 61; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सा किंवत् किं करोतीत्याह ॥
अन्वयः
हे देवि सरस्वति भार्ये ! यस्त्वा वृत्रतूर्य इन्द्रं न हिते धन उपब्रूते तं विद्वांसं पतिं त्वं सेवस्व ॥५॥
पदार्थः
(यः) (त्वा) त्वाम् (देवि) विदुषी (सरस्वति) विज्ञानयुक्ते (उपब्रूते) (धने) द्रव्ये (हिते) सुखकरे (इन्द्रम्) विद्युतम् (न) इव (वृत्रतूर्ये) मेघस्य हिंसने ॥५॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। हे पुरुषा ! यथा पतिव्रता विदुष्यः स्त्रियो युष्मान् सत्यं ग्राहयित्वा प्रियं वदन्ति तथैताभिस्सह यूयमपि हितं वदत ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह किसके तुल्य क्या करती है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (देवि) विदुषी (सरस्वति) विज्ञानयुक्ता भार्या ! (यः) जो (त्वा) तुझे (वृत्रतूर्ये) मेघ के हिंसन में (इन्द्रम्) बिजुली के (न) समान (हिते) सुख करनेवाले (धने) द्रव्य के निमित्त (उपब्रूते) कहता है, उस विद्वान् पति की तू सेवा कर ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे पुरुषो ! जैसे पतिव्रता विदुषी स्त्रियाँ तुम लोगों को सत्य ग्रहण कराकर प्रिय वचन कहती हैं, वैसे इनके साथ तुम भी हित करो ॥५॥
विषय
सरस्वती विदुषी का वर्णन उत्तम विद्या का वर्णन।
भावार्थ
हे ( देवि ) ज्ञानदात्रि ! ( सरस्वति ) उत्तम ज्ञान से सम्पन्न महाभागे ! ( वृत्र-तूर्ये इन्द्रं न ) मेघ को छिन्न भिन्न करने के कार्य में ‘इन्द्र’ अर्थात् विद्युत् के समान ( यः ) जो पुरुष ( त्वा ) तुझ को (हिते धने ) हितकारी धन को प्राप्त करने के निमित्त ( उप ब्रूते ) उपदेश करता है तू ऐसे पुरुष को (धीनाम् अवित्री प्र अवतु) बुद्धियों को पालन करती हुई प्राप्त हो ।
टिप्पणी
अवत्वित्यस्य पूर्वतोऽपकर्षः॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ सरस्वती देवता ॥ छन्दः – १, १३ निचृज्जगती । २ जगती । ३ विराड् जगती । ४, ६, ११, १२ निचृद्गायत्री । ५, विराड् गायत्री । ७, ८ गायत्री । १४ पंक्ति: ॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
स्वाध्याय- ध्यान
पदार्थ
[१] हे (देवि) = हमारे जीवनों को प्रकाशमय बनानेवाली सरस्वति विद्या की दैवते ! (यः) = जो (हिते धने) = हितकर ज्ञान-धन के निमित्त (त्वा उपब्रूते) = तुझे पुकारता है, अर्थात् तेरी आराधना करता हुआ ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। वही तेरा आराधक (वृत्रतूर्ये) = वासना- विनाश के संग्राम के निमित्त (न) = अब [न= संप्रति] (इन्द्रम्) = उस शत्रुविद्रावक प्रभु को पुकारता है । [२] सरस्वती के आराधक के जीवन में प्रभु की आराधना भी चलती है। प्रभु की आराधना से वासनाओं का विनाश करके यह व्यक्ति सरस्वती की आराधना से हितकर ज्ञान धन को प्राप्त करता है।
भावार्थ
भावार्थ– उस शत्रुविद्रावक प्रभु की उपासना मेरे वासनारूप शत्रुओं को दूर करे। स्वाध्याय सरस्वती द्वारा प्रभी की आराधना करता हुआ मैं हितकर ज्ञान-धन को प्राप्त करूँ ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे पुरुषांनो ! जशा पतिव्रता स्त्रिया सत्य स्वीकार करावयास लावून तुमच्याशी गोड बोलतात तसे तुम्हीही त्यांच्याशी हितकारक बोला. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O brilliant and generous Mother Sarasvati, whoever calls upon you like one who calls upon Indra, omnipotent ruler, for the destruction of the demon of evil at the time when the battle is raging at the door, you listen, come and save the supplicant.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What does Sarasvati do like whom-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned wife! like the lightning in slaying the cloud, he who speaks to you for the beneficial wealth, serve that husband well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! as chaste and highly learned ladies urge upon you, to speak truth and talk to you sweetly, so you should also talk what is beneficial.
Foot Notes
(इन्द्रम्) विद्युतम् । यदशनिरिवस्तेन । (S.Br. 11, 6,3,9) = Lightning. (वर्त्रतूर्ये) मेधस्य हिन्सने। = In killing the cloud.
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