ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 66/ मन्त्र 10
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - मरुतः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
त्विषी॑मन्तो अध्व॒रस्ये॑व दि॒द्युत्तृ॑षु॒च्यव॑सो जु॒ह्वो॒३॒॑ नाग्नेः। अ॒र्चत्र॑यो॒ धुन॑यो॒ न वी॒रा भ्राज॑ज्जन्मानो म॒रुतो॒ अधृ॑ष्टाः ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठत्विषि॑ऽमन्तः । अ॒ध्व॒रस्य॑ऽइव । दि॒द्युत् । तृ॒षु॒ऽच्यव॑सः । जु॒ह्वः॑ । न । अ॒ग्नेः । अ॒र्चत्र॑यः । धुन॑यः । न । वी॒राः । भ्राज॑त्ऽजन्मानः । म॒रुतः॑ । अधृ॑ष्टाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्विषीमन्तो अध्वरस्येव दिद्युत्तृषुच्यवसो जुह्वो३ नाग्नेः। अर्चत्रयो धुनयो न वीरा भ्राजज्जन्मानो मरुतो अधृष्टाः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठत्विषिऽमन्तः। अध्वरस्यऽइव। दिद्युत्। तृषुऽच्यवसः। जुह्वः। न। अग्नेः। अर्चत्रयः। धुनयः। न। वीराः। भ्राजत्ऽजन्मानः। मरुतः। अधृष्टाः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 66; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः किंवत् कीदृशाः शूरवीराः सम्पादनीया इत्याह ॥
अन्वयः
येऽध्वरस्येव जुह्वो न तृषुच्यवसोऽग्नेरर्चत्रयो धुनयो न त्विषीमन्तो भ्राजज्जन्मानोऽधृष्टा मरुतो वीरा दिद्युदिव वर्त्तमानाः स्युस्तैरेव विजयं प्राप्नुवन्तु ॥१०॥
पदार्थः
(त्विषीमन्तः) विद्याविनयादिप्रकाशयुक्ताः (अध्वरस्येव) अहिंसामयस्य यज्ञस्येव (दिद्युत्) प्रकाशः (तृषुच्यवसः) तृषु क्षिप्रं ये च्यवन्ते गच्छन्ति (जुह्वः) जुहोति याभिस्ताः (न) इव (अग्नेः) पावकस्य (अर्चत्रयः) अर्चकाः (धुनयः) कम्पयन्तः (न) इव (वीराः) (भ्राजज्जन्मानः) भ्राजद्देदीप्यमानं जन्म येषां ते (मरुतः) वायुवद्बलिष्ठा मनुष्याः (अधृष्टाः) शत्रुभिरधर्षणीयाः ॥१०॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। हे राजादयो जना ! यथाऽध्वरस्य मध्ये वर्त्तमाना ज्वाला सद्योऽन्तरिक्षाय गच्छति तथा शिक्षाया मध्ये वर्त्तमाना जनाः सद्यो विजयाय गन्तुं शक्नुवन्ति यथा जुहूभिरग्निः प्रदीप्यते तथा शिक्षासत्काराभ्यां वीरसेना प्रदीपनीया यथाऽग्नेर्ज्वालाः शब्दाश्च प्रभवन्ति तथैव भवतां सेनायाः प्रकाशाः शब्दाश्च महान्तो भवेयुः ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर किसके तुल्य कैसे शूरवीर सिद्ध करने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (अध्वरस्येव) अहिंसामय यज्ञ के समान वा (जुह्वः) जिनसे हवन करते उनके (न) समान (तृषुच्यवसः) जो शीघ्र जानेवाले (अग्नेः) अग्नि के (अर्चत्रयः) सत्कारकर्त्ता (धुनयः) कंपते हुए पदार्थों के (न) समान (त्विषीमन्तः) विद्या विनयादि के प्रकाश से युक्त (भ्राजज्जन्मानः) देदीप्यमान जन्म है जिनका तथा (अधृष्टाः) जो शत्रुओं से धृष्टता को नहीं प्राप्त होते (मरुतः) वे पवन के समान बली (वीराः) वीर (दिद्युत्) प्रकाश के समान वर्त्तमान हों, उन्हीं से विजय को प्राप्त होओ ॥१०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजा आदि जनो ! जैसे यज्ञ के बीच वर्त्तमान लपट शीघ्र ही अन्तरिक्ष को जाती है, वैसे शिक्षा के बीच वर्त्तमान जन शीघ्र विजय के लिये जा सकते हैं, जैसे जुहूओं से अग्नि प्रदीप्त की जाती है, वैसे शिक्षा और सत्कार से वीरों की सेना को प्रदीप्त करनी चाहिये, जैसे अग्नि की लपटें और शब्द होते हैं, वैसे ही तुम्हारी सेना के प्रकाश और शब्द बहुत हों ॥१०॥
विषय
अग्निवत् नायक और वीरों का वायु-वत् वर्णन।
भावार्थ
( अध्वरस्य इव दिद्युत् ) जिस प्रकार यज्ञ का प्रकाश हो और (अग्ने: जुह्वः न ) जिस प्रकार अग्नि की ज्वालाएं प्रकाश युक्त हों उसी प्रकार ( मरुतः ) वायु के समान बलवान् मनुष्य भी (त्विषीमन्तः ) कान्ति से युक्त ( तूषु-च्यवसः ) तीक्ष्ण-वेगयुक्त गति वा (अर्चत्रयः ) परस्पर का मान सत्कार करने वाले, वा माता पिता गुरु वा और परमेश्वर के उपकारक ( धुनयः न ) शत्रुजनों और वृक्षों को वायुओं के समान कंपाने वाले, (वीरः ) वीर, शूर, ( भ्राजत्-जन्मानः ) तेजस्वी शरीर वाले, ( अधृष्टाः ) विनीत और अपराजित होकर रहें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
११ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। मरुतो देवताः ।। छन्दः – १,९ ,११ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत् पंक्तिः ।। ६, ७, १० भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । एकादशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
दीप्त जीवनवाले सैनिक
पदार्थ
[१] (अध्वरस्य) = यज्ञ की (दिद्युत् इव) = दीप्ति के समान (त्विषीमन्त:) = दीप्तिवाले ये सैनिक हैं। (तृषुच्यवसः) = क्षिप्रगमनवाले, शीघ्र गतिवाले हैं। (ये) = तो (अग्नेः जुह्वः न) = अग्नि की ज्वालाओं के समान हैं। अग्नि ज्वालाओं में जैसे सब कुछ भस्म हो जाता है, उसी प्रकार इन मरुतों के तेज की अग्नि में शत्रु भस्मसात् होते हैं । [२] (अर्चत्रयः) = [अर्च्+त्रि] 'इडा सरस्वती व मही' तीनों देवताओं का आदर करनेवाले, (धुनयः न) = शत्रुओं को कम्पित-सा करनेवाले, (वीराः) = ये वीर सैनिक (भ्राजत् जन्मानः) = दीप्त शरीर [जीवन] वाले, (मरुतः) = रणांगण में प्राणों का त्याग करनेवाले व (अधृष्टाः) = कभी शत्रुओं से धर्षित न होनेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- वीर सैनिक तेजस्विता से दीप्त जीवनवाले होते हैं, ये कभी शत्रुओं से धर्षित नहीं होते। 'इडा सरस्वती मही' के ये उपासक होते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादी लोकांनो ! जशा यज्ञातील ज्वाला शीघ्र अंतरिक्षात जातात तसे शिक्षण क्षेत्रातील लोक शीघ्र विजय प्राप्त करू शकतात. जसे घृताने अग्नी प्रदीप्त केला जातो तसे शिक्षण व सत्कार याद्वारे वीरांची सेना प्रदीप्त ठेवली पाहिजे. जशा अग्नीच्या ज्वाला व शब्द असतात तसेच तुमच्या सेनेची खूप प्रसिद्धी व आवाज बुलंद असावा. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Bright and blazing, flames of a great yajna of love and non-violence, instantly moving to action and adorable, brave warriors born of light and fire, intrepidable heroes of the winds are shakers of the earth like the heroes of heaven. Such are the Maruts.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should brave men be made like whom is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Achieve victory with the help of those brave persons, who are bright like the tongues of fire impetuous in their onset shaking their enemies, prompt in marching or shining with knowledge humility and other virtues, whose birth (life) is splendid, who are invincible, mighty like the wind and embodiment of light.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king and officers of the State! as the flames of the Yajna (non-violent sacrifice) go soon to the firmament, in the same manner, those who are under training for warfare, can soon go to the battlefield for achieving victory. As by oblations- the fire is kindled, so by training and honor the army of the brave persons should be kindled (encouraged and strengthened). As there are flames and sounds of the fire, so the luster and sounds of your army should be great.
Foot Notes
(त्विषीमन्तः) विद्याविनयादिप्रकाशयुक्ताः । त्विष-दीप्तौ। (भ्वा.) । = Shining with knowledge, humility and other virtues. (तुषुच्यत्रसः) तृषु क्षिप्र ये च्यवन्ते गच्छन्ति । तृषु इति क्षिप्रनाम (NG 2, 15)। = who are prompt in marching. (दिद्युत्) प्रकाशः । विद्युत् इति वज्रनाम (NG 2, 20)। = light, so it may also mean who have power like the thunderbolt. (मरुतः) वायुवद्बलिष्ठा मनुष्या:। = men mighty, like the wind मरुत इति पदनाम (NG 5,5 ) अनेनगमनागमन क्रिया प्रापकः वा पदौ गृह्यन्ते । अत्र वायुवद् बलिष्ठाः । मरुतो मितराविणो । महद्रवन्तीति वा (NKT 11, 2, 13)।
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