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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 66/ मन्त्र 8
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - मरुतः छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    नास्य॑ व॒र्ता न त॑रु॒ता न्व॑स्ति॒ मरु॑तो॒ यमव॑थ॒ वाज॑सातौ। तो॒के वा॒ गोषु॒ तन॑ये॒ यम॒प्सु स व्र॒जं दर्ता॒ पार्ये॒ अध॒ द्योः ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । अस्य॑ । व॒र्ता । न । त॒रु॒ता । नु । अ॒स्ति॒ । मरु॑तः । यम् । अव॑थ । वाज॑ऽसातौ । तो॒के । वा॒ । गोषु॑ । तन॑ये । यम् । अ॒प्ऽसु । सः । व्र॒जम् । दर्ता॑ । पार्ये॑ । अध॑ । द्योः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नास्य वर्ता न तरुता न्वस्ति मरुतो यमवथ वाजसातौ। तोके वा गोषु तनये यमप्सु स व्रजं दर्ता पार्ये अध द्योः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न। अस्य। वर्ता। न। तरुता। नु। अस्ति। मरुतः। यम्। अवथ। वाजऽसातौ। तोके। वा। गोषु। तनये। यम्। अप्ऽसु। सः। व्रजम्। दर्ता। पार्ये। अध। द्योः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 66; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    कै रक्षणे कृते भयं न विद्यत इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मरुतो विद्वांसो ! यूयं वाजसातौ यं गोष्वप्सु तोके वा तनये यमवथास्य कोऽपि वर्त्ता नास्ति कोऽपि तरुता नास्ति सोऽध पार्य्ये द्योः व्रजमिव शत्रुसेनाया दर्त्ता न्वस्ति ॥८॥

    पदार्थः

    (न) (अस्य) (वर्त्ता) वर्त्तयिता (न) (तरुता) उल्लङ्घयिता (नु) सद्यः (अस्ति) (मरुतः) उत्तमा मनुष्याः (यम्) (अवथ) रक्षथ (वाजसातौ) (तोके) अपत्ये (वा) (गोषु) गवादिषु पशुषु पृथिवीविभागेषु वा (तनये) सुकुमारे (यम्) (अप्सु) उदकेषु (सः) (व्रजम्) मेघम् (दर्त्ता) विदारकः (पार्ये) पारयितव्ये (अध) अथ (द्योः) प्रकाशस्य ॥८॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! येषां विद्वांसो रक्षकाः स्युस्तेषां कुतश्चिद्भयं नाप्नोति यथा सूर्याद् वृष्टिर्भूत्वा जगन्निर्भयं जायते तथैव धार्मिकविद्वत्सङ्घात् सर्वं राष्ट्रमभयं भवति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    किन से रक्षा किये जाने पर भय नहीं है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मरुतः) विद्वानो ! तुम (वाजसातौ) अन्नादि पदार्थों के विभाग में (यम्) जिसको (गोषु) गौ आदि पशु वा पृथिवी विभागों वा (अप्सु) जलों वा (तोके) सन्तान (वा) वा (तनये) सुकुमार इन सब में (यम्) जिसकी (अवथ) रक्षा करते हो (अस्य) इस व्यवहार का कोई (वर्त्ता) वर्त्ताव करने और कोई (न) नहीं है और कोई (तरुता) उक्त व्यवहार का उल्लङ्घन करनेवाला (न) नहीं (अस्ति) है (सः) वह (अध) इसके अनन्तर (पार्य्ये) पार करने योग्य व्यवहार में (द्योः) प्रकाश के (व्रजम्) मेघ के समान शत्रुसेना को (दर्त्ता, नु) शीघ्र विदीर्ण करनेवाला है ॥८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जिनके विद्वान् जन रक्षा करनेवाले हों, उनको कहीं से भय नहीं प्राप्त होता, जैसे सूर्य से वर्षा होकर जगत् निर्भय होता है, वैसे ही धार्मिक विद्वानों के सङ्ग से समस्त राज्य निर्भय होता है ॥८॥

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    विषय

    वीरों से रक्षित नायक का अनुपम बल ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) वायुवत् वीर और प्रजा के जीवन देने वाले पुरुषो ! आप लोग ( वाज-सातौ ) ऐश्वर्य को प्राप्त करने और संग्राम के कार्य में ( यम् अवथ ) जिसकी रक्षा करते हो, (अस्य वर्त्ता न) उसको निवारण करने वाला कोई नहीं होता और (अस्य तरुता न नु अस्ति ) उसको मारने वाला भी कोई नहीं होता । हे वीर पुरुषो ! ( यम्) जिसको आप लोग ( तोके ) पुत्र ( तनये ) पौत्र, (वा गोषु) और भूमि, गवादि पशुओं के निमित्त ( अवथ ) रक्षा करते हो, ( सः ) वह ( व्रजं ) गोसमूह को ( दर्ता = धर्त्ता ) धरने में समर्थ होता तथा वह ( द्योः पार्ये ) भूमि के पालन पूरण करने में वा विजिगीषु पुरुष के साथ संग्राम में भी ( व्रजं दर्ता ) सैन्य दल तथा शत्रु के मार्ग, नगर आदि का नाश करने में समर्थ होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ११ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। मरुतो देवताः ।। छन्दः – १,९ ,११ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत् पंक्तिः ।। ६, ७, १० भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । एकादशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    न वर्ता, न तरुता

    पदार्थ

    [१] हे (मरुतः) = प्राणो ! (वाजसातौ) = संग्राम में (यं अवथ) = जिसको तुम रक्षित करते हो, (अस्य) = इस पुरुष का (वर्त्ता) = रोकनेवाला (न अस्ति) = कोई नहीं है। (नु) = अब (तरुता न अस्ति) = इसका कोई हिंसक नहीं है। [२] (यम्) = जिसको तोके पुत्रों में (वा) = और (गोषु) = इन्द्रियों में (तनये) = पौत्रों में तथा (अप्सु) = कर्मों में रक्षित करते हो, (सः) = वह (अध) = अब (पार्ये) = संग्राम में (द्योः) = दीप्त भी शत्रु के (व्रजं दर्ता) = सैन्यसमूह को विदीर्ण करनेवाला होता है। अर्थात् यदि प्राणसाधना करते हुए हम पुत्र-पौत्रों के रक्षण व इन्द्रियों के सत्कर्मों में व्याप्त रखने का ध्यान करें तो 'काम-क्रोध-लोभ' आदि प्रबल शत्रुओं को भी जीत पाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना हमें विजयी बनाती है। हम शत्रुओं को अपने जीतकर पुत्र-पौत्रों व इन्द्रियों को बड़ा उत्तम बना पाते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! विद्वान लोक ज्यांचे रक्षक असतात त्यांना कोणतेही भय नसते. जसे सूर्यामुळे वृष्टी होऊन जग निर्भय होते तसेच धार्मिक विद्वानांच्या संगतीने संपूर्ण राज्य निर्भर्य होते. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Maruts, in the serious warlike business of life, whoever you protect and promote for the sake of children, grand children, or lands and cows or waters, no one can overwhelm or circumvent, no one can cross, defeat and destroy. Indeed he will be the breaker of new paths and open new treasures and then cross through the skies to the bounds of the regions of light.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Under whose protection, there is no fear-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned and brave persons ! whom you protect in the distribution of food, kine or waters, lands, infants or grown up children, none may obstruct, none overtake him, whom you succor in the strife or battle, like the end of the light, he becomes the destroyer of the army of enemies.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    What fear can be there for the people, where the enlightened persons are protectors? As from the sun when it causes rain, the whole world becomes fearless, in the same manner, from the union of the righteous and enlightened person the whole state becomes free from fear.

    Foot Notes

    (तरुता) उल्लङ्घयिता । तु-पल्धनसन्तरणयोः (भ्वा०.) = Transgressor. (व्रजम् ) मेघम् । व्रज इति मेघनाम (NG 1, 10)=The cloud.

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