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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 66/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - मरुतः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    रु॒द्रस्य॒ ये मी॒ळ्हुषः॒ सन्ति॑ पु॒त्रा यांश्चो॒ नु दाधृ॑वि॒र्भर॑ध्यै। वि॒दे हि मा॒ता म॒हो म॒ही षा सेत्पृश्निः॑ सु॒भ्वे॒३॒॑ गर्भ॒माधा॑त् ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रु॒द्रस्य॑ । ये । मी॒ळ्हुषः॑ । सन्ति॑ । पु॒त्राः । यान् । चो॒ इति॑ । नु । दाधृ॑विः । भर॑ध्यै । वि॒दे । हि । मा॒ता । म॒हः । म॒ही । सा । सा । इत् । पृश्निः॑ । सु॒ऽभ्वे॑ । गर्भ॑म् । आ । अ॒धा॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रुद्रस्य ये मीळ्हुषः सन्ति पुत्रा यांश्चो नु दाधृविर्भरध्यै। विदे हि माता महो मही षा सेत्पृश्निः सुभ्वे३ गर्भमाधात् ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रुद्रस्य। ये। मीळ्हुषः। सन्ति। पुत्राः। यान्। चो इति। नु। दाधृविः। भरध्यै। विदे। हि। माता। महः। मही। सा। सा। इत्। पृश्निः। सुऽभ्वे। गर्भम्। आ। अधात् ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 66; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    कयोः पुत्रा वरा जायन्त इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! ये मीळ्हुषो रुद्रस्य पुत्राः सन्ति याँश्चो भरध्यै दाधृविर्मही सा माताऽऽधात् सेत् पृश्निरिव सुभ्वे विदे हि महो गर्भं न्वधात्ताँस्ताञ्च यूयं भाग्युक्तान् विजानीत ॥३॥

    पदार्थः

    (रुद्रस्य) वायुवद्बलिष्ठस्य (ये) (मीळ्हुषः) वीर्यसेचकस्य (सन्ति) (पुत्राः) (यान्) (चो) (नु) (दाधृविः) धर्त्री (भरध्यै) भर्त्तुम् (विदे) यो वेत्ति तस्मै (हि) खलु (माता) (महः) महान्तम् (मही) महती पूजनीया (सा) (सा) (इत्) एव (पृश्निः) अन्तरिक्षमिव सावकाशा (सुभ्वे) यः सुष्ठु भवति तस्मै (गर्भम्) (आ) (अधात्) ॥३॥

    भावार्थः

    त एव मनुष्या भद्रा जायन्ते येषां मातापितरौ कृतपूर्णब्रह्मचर्यौ भवेताम् ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    किन स्त्री-पुरुषों के पुत्र उत्तम होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (ये) जो (मीळ्हुषः) वीर्य सींचनेवाले (रुद्रस्य) वायु के समान बलिष्ठ के (पुत्राः) पुत्र (सन्ति) हैं (यान्, चो) और जिनको (भरध्यै) पोषण वा धारण करने के लिये (दाधृविः) धारण करनेवाली (मही) जो महान् सत्कार करने योग्य है (सा) वह (माता) मान करनेवाली (आ, अधात्) अच्छे प्रकार धारण करती है और (सा, इत्) वही (पृश्निः) अन्तरिक्ष के समान विस्तारवाली (सुभ्वे) जो सुन्दर प्रसिद्ध होता है उस (विदे) जाननेवाले के लिये (हि) ही (महः) महान् (गर्भम्) गर्भ को (नु) शीघ्र अच्छे प्रकार धारण करती है, उन सबको और उस माता रूप स्त्री को तुम सब भाग्ययुक्त जानो ॥३॥

    भावार्थ

    वे ही मनुष्य कल्याणरूप होते हैं, जिनके माता पिता ऐसे हैं कि जिन्होंने पूरा ब्रह्मचर्य किया हो ॥३॥

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    विषय

    उत्तम सन्तानोत्पादन का उपदेश ।

    भावार्थ

    (ये) जो ( रुद्रस्य ) वायु के समान बलवान्, (मीढहुषः) वीर्य सेचन में समर्थ पूर्ण युवा पुरुष के ( पुत्राः ) पुत्र होते हैं ( यान् च) और जिनको (नु ) शीघ्र ही ( भरध्यै ) भरण पोषण के लिये ( विदे) प्राप्त करती है वे ही ( महः ) गुणों से महान् होते हैं। और ( सा माता ) वह माता ( मही) बड़ी पूज्य होती है । ( सा इत् ) वह माता ही ( पृश्निः) अन्तरिक्ष, पृथ्वी के समान दूध पिलाकर पालने पोषने में समर्थ माता ( सुभ्वे ) उत्तम वीर्यवान् पुरुष की वंश वृद्धि के लिये (गर्भम् आधात् ) गर्भ धारण करती और इसी प्रकार (पृश्नि) वृष्टिकारक सूर्यवत् वीर्यसेचन में समर्थ पुरुष भी ( शुभे) उत्तम भूमि के समान उत्तम सन्तानोत्पादक स्त्री के शरीर में (गर्भम् आ अधात्) गर्भ धारण करावे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ११ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। मरुतो देवताः ।। छन्दः – १,९ ,११ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत् पंक्तिः ।। ६, ७, १० भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । एकादशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    रुद्रस्य पुत्राः

    पदार्थ

    [१] (ये) = जो (मरुत्) = प्राणसाधना करनेवाले पुरुष, (मीढुष:) = सब सुखों के सेचक (रुद्रस्य) = दुःखों के द्रावक प्रभु के (पुत्राः सन्ति) = पुत्र हैं। (च) = और (यान्) = जिनको (उ) = निश्चय से (नु) = अब (दाधृविः) = यह धारण करनेवाली पृथ्वी (भरध्यै) = धारित व पोषित करती है। अर्थात् जो इस पृथ्वी से उत्पन्न ओषधि वनस्पति आदि का ही सेवन करते हैं। [२] (महः मही) = बड़ों से भी बड़ी (सा) = वह (माता) = वेदमाता (हि) = निश्चय से (विदे) = इन्हें ज्ञान के देनेवाली होती है। अर्थात् ये साधक उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त करते हैं । (सा) = वह (इत्) = ही (पृश्निः) = सब प्रकाशों का स्पर्श करानेवाली वेदमाता (सुभ्वे) = इन मनुष्यों की उत्तम स्थिति के लिये [सुष्ठु भवनाय] (गर्भं आधात्) = सर्वत्र गर्भरूप से वर्तमान प्रभु को इनमें धारण करती है। अर्थात् ये साधक उस प्रभु को अपने अन्दर देखनेवाले बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधक पुरुष प्रभु का सच्चा पुत्र है। प्रभु के आदेश के अनुसार चलता हुआ यह दुःखों को दूर भगाता है, अपने में सुखों का सेचन करता है। ओषधि वनस्पति का सेवन करता हुआ यह वेदज्ञान प्राप्त करता है और हृदयस्थ प्रभु का दर्शन करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्यांच्या माता व पिता यांनी पूर्ण ब्रह्मचर्य पाळलेले असेल तीच माणसे कल्याणकारी असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    These Maruts are children of Rudra, virile spiritual energy, and the mother is there to receive, hold and nourish them in her womb. For the reason of conceiving and bearing ‘the great ones, the mother is known as the great’, the Mother, the mother cow, the mother earth, the holy and the noble, the one who bears and gives birth to life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Whose sons become good - is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! those who are the sons of a virile and very mighty person like the wind, whom great, upholding and venerable mother sustained well, for generating very virtuous and enlightened sons, the mother who is large hearted like the firmament conceived greatly. You should know that great mother and those great sons to be very fortunate.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those men only become very auspicious and benevolent whose parents had observed perfect Brahmacharya (abstinence.)

    Foot Notes

    (रुद्रस्य) वायुवद्बलिष्ठस्य । रुद:- रोदयति शत्रून इति वलिष्ठः सेनापत्यादि । रुदिर्-अश्रु विमोचने (अदा.) = Of the mightiest like the wind. (मीलहुषः) वीर्यसेचकस्य । मिह -सेचने (भ्वा) = Of a virile person. (पुश्नि:) अन्तरिक्षमिव सावकाशा = Vast or large hearted like the firmament.

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