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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 59/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इ॒हेह॑ वः स्वतवसः॒ कव॑यः॒ सूर्य॑त्वचः। य॒ज्ञं म॑रुत॒ आ वृ॑णे ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒हऽइ॑ह । वः॒ । स्व॒ऽत॒व॒सः॒ । कव॑यः । सूर्य॑ऽत्वचः । य॒ज्ञम् । म॒रु॒तः॒ । आ । वृ॒णे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेह वः स्वतवसः कवयः सूर्यत्वचः। यज्ञं मरुत आ वृणे ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इहऽइह। वः। स्वऽतवसः। कवयः। सूर्यऽत्वचः। यज्ञम्। मरुतः। आ। वृणे ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 59; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे सूर्यत्वचस्स्वतवसः कवयो मरुत ! इहेह वो यज्ञमहमा वृणे ॥११॥

    पदार्थः

    (इहेह) अस्मिन् संसारे (वः) युष्माकम् (स्वतवसः) स्वकीयबलाः (कवयः) विद्वांसः (सूर्यत्वचः) सूर्य इव प्रकाशमाना त्वग्येषां ते (यज्ञम्) सङ्गतिमयम् (मरुतः) मनुष्याः (आ) समन्तात् (वृणे) स्वीकरोमि ॥११॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! भवन्तो विद्यादिप्रचाराख्यं कर्म सदोन्नयत ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (सूर्यत्वचः) सूर्य्य के समान प्रकाशमान त्वचा जिन की ऐसे (स्वतवसः) अपने बलवाले हे (कवयः) विद्वान् (मरुतः) मनुष्यो ! (इहेह) इसी संसार में (वः) आप लोगों के (यज्ञम्) सङ्गतिस्वरूप यज्ञ को मैं (आ, वृणे) स्वीकार करता हूँ ॥११॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो ! आप लोग विद्या आदि के प्रचार नामक कर्म्म की सदा उन्नति करिये ॥११॥

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    विषय

    गृहस्थ सज्जनों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( स्वतवसः ) स्वयं अपने शरीर आत्मा और धनैश्वर्य से बलशाली पुरुषो ! हे ( कवयः ) क्रान्तदर्शी जनो ! हे ( सूर्य-त्वचः ) सूर्य के समान देह की कान्ति वाले तेजस्वी, उज्ज्वल पुरुषो ! हे (मरुतः) विद्वान्, वीर जनो ! मैं ( नः ) आप लोगों को ( इह इह ) इस २ कार्य और पद के निमित्त (आवृणे ) वरण करता हूं । आप लोग ( यज्ञं ) यज्ञ को ( आ गत ) आकर प्राप्त हों और ( मा अप भूतन ) हमसे दूर न होवें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १-११ मरुतः। १२ रुद्रो देवता, मृत्युविमोचनी॥ छन्दः १ निचृद् बृहती। ३ बृहती। ६ स्वराड् बृहती। २ पंक्ति:। ४ निचृत्पंक्तिः। ५, १२ अनुष्टुप्। ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ९,१० गायत्री। ११ निचृद्गायत्री॥

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    विषय

    क्रान्तदर्शी जनों की नियुक्ति

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (स्वतवसः) = स्वयं शरीर, आत्मा से बलशाली पुरुषो! हे (कवयः) = क्रान्तदर्शी जनो! हे (सूर्य-त्वचः) = सूर्य तुल्य देह - कान्तिवाले पुरुषो! हे (मरुतः) = विद्वानो! मैं (नः) = आप को (इह-इह) = इस-इस पद के निमित्त (आवृणे) = वरण करता हूँ। आप लोग (यज्ञं) = यज्ञ को (आ गत) = प्राप्त हों और (मा अप भूतन) = हमसे दूर न होवें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह स्वस्थ व बलिष्ठ शरीरवाले तेजस्वी पुरुषों की नियुक्ति सेना में, क्रान्तदर्शी विद्वानों की नियुक्ति प्रशासनिक पदों तथा विज्ञान वेत्ताओं की नियुक्ति यज्ञ-शोध कार्यों में विभिन्न पदों पर करके राष्ट्र को सुदृढ़ एवं समृद्ध बनावे ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो ! तुम्ही विद्या वगैरेचा प्रचार करून उन्नती करा. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, commanders of innate strength and power, creative visionaries of the highest order, illustrious as the refulgent sun, come here right now, I invoke you and choose you as the high priests of my yajna in the programme of social cohesion, creative production and universal benediction.

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