ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 59/ मन्त्र 3
न॒हि व॑श्चर॒मं च॒न वसि॑ष्ठः परि॒मंस॑ते। अ॒स्माक॑म॒द्य म॑रुतः सु॒ते सचा॒ विश्वे॑ पिबत का॒मिनः॑ ॥३॥
स्वर सहित पद पाठन॒हि । वः॒ । च॒र॒मम् । च॒न । वसि॑ष्ठः । प॒रि॒ऽमंस॑ते । अ॒स्माक॑म् । अ॒द्य । म॒रु॒तः॒ । सु॒ते । सचा॑ । विश्वे॑ । पि॒ब॒त॒ । का॒मिनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नहि वश्चरमं चन वसिष्ठः परिमंसते। अस्माकमद्य मरुतः सुते सचा विश्वे पिबत कामिनः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठनहि। वः। चरमम्। चन। वसिष्ठः। परिऽमंसते। अस्माकम्। अद्य। मरुतः। सुते। सचा। विश्वे। पिबत। कामिनः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 59; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसः कामिनो विश्वे मरुतो ! यूयं सचाद्यास्माकं सुते रसं पिबत यतो वश्चरमं चन वसिष्ठो नहि परिमंसते ॥३॥
पदार्थः
(नहि) निषेधे (वः) युष्माकम् (चरमम्) अन्तिमम् (चन) अपि (वसिष्ठः) अतिशयेन वासयिता (परिमंसते) वर्जनीयं विरुद्धं वा परिणमति (अस्माकम्) (अद्य) (मरुतः) मनुष्याः (सुते) निष्पन्ने महौषधिरसे (सचा) सम्बन्धेन (विश्वे) सर्वे (पिबत) (कामिनः) कामयितारः ॥३॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यदि यूयमिच्छासिद्धिं चिकीर्षेयुस्तर्हि युक्ताहारविहारं ब्रह्मचर्यं कुरुत ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वानो (कामिनः) कामना करनेवाले (विश्वे) सम्पूर्ण (मरुतः) मनुष्य ! आप लोग (सचा) सम्बन्ध से (अद्य) इस समय (अस्माकम्) हम लोगों के (सुते) उत्पन्न हुए बड़ी ओषिधियों के रस में रस को (पिबत) पीवें जिससे (वः) आप लोगों के (चरमम्) अन्तवाले को (चन) भी (वसिष्ठः) अतिशय वसानेवाला (नहि) नहीं (परिमंसते) त्यागने योग्य वा विरुद्ध परिणाम को प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो आप लोग इच्छा की सिद्धि करने की इच्छा करें तो योग्य आहार और विहार जिसमें उस ब्रह्मचर्य्य को करिये ॥३॥
विषय
विद्वानों वीरों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
है ( मरुतः ) विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( कामिनः) उत्तम संकल्प और शुभ इच्छा से युक्त होकर ( विश्वे ) सब ( सचा) एक साथ मिलकर ( अस्माकं सुते ) हमारे ऐश्वर्य के बल पर ( अस्माकम् पिबत ) हमारा ऐश्वर्य का उपभोग और पालन करो । ( वः चरमं चन ) आप लोगों में से अन्तिम को भी ( वसिष्ठः ) श्रेष्ठ वसु राजा ( न परिमंसते ) त्याज्य नहीं समझता । प्रत्युत सबको आदर और प्रेम से देखता । सभी लोग उत्साह पूर्वक राजा के राज्य प्रजाजन की रक्षा में सदा तत्पर रहो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १-११ मरुतः। १२ रुद्रो देवता, मृत्युविमोचनी॥ छन्दः १ निचृद् बृहती। ३ बृहती। ६ स्वराड् बृहती। २ पंक्ति:। ४ निचृत्पंक्तिः। ५, १२ अनुष्टुप्। ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ९,१० गायत्री। ११ निचृद्गायत्री॥
विषय
शुभ संकल्पवाले बनो
पदार्थ
पदार्थ - हे (मरुतः) = विद्वान् पुरुषो! आप (कामिन:) = उत्तम संकल्प और इच्छा से युक्त होकर (विश्वे) = सब (सचा) = साथ मिलकर (अस्माकं सुते) = हमारे ऐश्वर्य के बल पर (पिबत) = ऐश्वर्य का उपभोग करो। (वः चरमं चन) = आप में से अन्तिम को भी (वसिष्ठः) = श्रेष्ठ वसु राजा (न परिमंसते) = त्याज्य नहीं समझता।
भावार्थ
भावार्थ- जो विद्वान् उत्तम संकल्प व दृढ़ इच्छाशक्तिवाला होकर पुरुषार्थ पूर्वक विद्या को प्राप्त करके पूर्ण योग्यता प्राप्त करता है राजा लोग उसे उच्च पद पर नियुक्त करके कभी भी उसको त्याज्य नहीं समझते।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जर तुम्हाला इच्छा सिद्धी व्हावी असे वाटत असेल तर योग्य आहार, विहार, ब्रह्मचर्यपालन करा. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, vibrant givers of light and energy, leading lights of humanity, the celebrated sage best settled and giver of settlement mentally and spiritually does not ignore or neglect even the last of you but honours you all. O lovers and benefactors of the nation, come today now itself, join and enjoy the delicious taste of our achievement in your honour in the structure and order of a great society.
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