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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 59/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ओ षु घृ॑ष्विराधसो या॒तनान्धां॑सि पी॒तये॑। इ॒मा वो॑ ह॒व्या म॑रुतो र॒रे हि कं॒ मो ष्व१॒॑न्यत्र॑ गन्तन ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओ इति॑ । सु । घृ॒ष्वि॒ऽरा॒ध॒सः॒ । या॒तन॑ । अन्धां॑सि । पी॒तये॑ । इ॒मा । वः॒ । ह॒व्या । म॒रु॒तः॒ । र॒रे । हि । क॒म् । मो इति॑ । सु । अ॒न्यत्र॑ । ग॒न्त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओ षु घृष्विराधसो यातनान्धांसि पीतये। इमा वो हव्या मरुतो ररे हि कं मो ष्व१न्यत्र गन्तन ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओ इति। सु। घृष्विऽराधसः। यातन। अन्धांसि। पीतये। इमा। वः। हव्या। मरुतः। ररे। हि। कम्। मो इति। सु। अन्यत्र। गन्तन ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 59; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स्वामिनो भृत्यान् प्रति कथमाचरेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    ओ घृष्विराधसो मरुतो ! यानीमा हव्यान्धांसि वः पीतयेऽहं ररे तैर्हि यूयं कं सुयातनान्यत्र मो सु गन्तन ॥५॥

    पदार्थः

    (ओ) सम्बोधने (सु) (घृष्विराधसः) घृष्वीनि सम्बद्धानि राधांसि येषां ते (यातन) प्राप्नुत (अन्धांसि) अन्नपानादीनि (पीतये) पानाय (इमा) इमानि (वः) युष्मभ्यम् (हव्या) दातुमादातुमर्हाणि (मरुतः) मनुष्याः (ररे) ददामि (हि) (कम्) सुखम् (मो) निषेधे (सु) (अन्यत्र) (गन्तन) गच्छत ॥५॥

    भावार्थः

    हे धार्मिका विद्वांसोऽहं युष्माकं पूर्णं सत्कारं करोमि यूयमन्यत्रेच्छां मा कुरुतात्रैव कर्तव्यानि कर्माणि यथावत् कृत्वा पूर्णमभीष्टं सुखमत्रैव प्राप्नुत ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर स्वामी जन नौकरों के प्रति कैसा आचरण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (आ) हे (घृष्विराधसः) इकट्ठे लिये हुए धनोंवाले (मरुतः) मनुष्यो ! जिन (इमा) इन (हव्या) देने और ग्रहण करने योग्य (अन्धांसि) अन्नपान आदिकों को (वः) आप लोगों के अर्थ (पीतये) पान करने के लिये मैं (ररे) देता हूँ उनसे (हि) ही आप लोग (कम्) सुख को (सु, यातन) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये (अन्यत्र) अन्य स्थान में (मो) नहीं (सु) अच्छे प्रकार (गन्तन) जाइये ॥५॥

    भावार्थ

    हे धार्मिक विद्वानो ! मैं आप लोगों का पूर्ण सत्कार करता हूँ, आप लोग अन्यत्र की इच्छा को न करिये, यहाँ ही करने योग्य कर्मों को यथावत् करके पूर्ण अभीष्ट सुख को यहाँ ही प्राप्त हूजिये ॥५॥

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    विषय

    विद्वानों वीरों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( ओ ) हे ( मरुतः ) वीरो और विद्वान् पुरुषो ! हे ( घृष्विराधसः ) एक दूसरे से बढ़ने वाले, सम्बद्ध धनैश्वर्य से सम्पन्न, आप लोग ( पीतये ) उपभोग के लिये ( अन्धांसि ) नाना प्रकार के अन्नों को ( सु यातन ) सुखपूर्वक प्राप्त करो। मैं (इमा ) ये नाना प्रकार के (हव्या), खाने और लेने देने योग्य द्रव्यादि ( ररे ) प्रदान करता हूं । ( हि कं ) आप लोग ( अन्यत्र ) और अन्य स्थान में ( मो सु गन्तन ) मत जाइये । मेरे राष्ट्र में सुख से रहिये ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १-११ मरुतः। १२ रुद्रो देवता, मृत्युविमोचनी॥ छन्दः १ निचृद् बृहती। ३ बृहती। ६ स्वराड् बृहती। २ पंक्ति:। ४ निचृत्पंक्तिः। ५, १२ अनुष्टुप्। ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ९,१० गायत्री। ११ निचृद्गायत्री॥

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    विषय

    विद्वानों का सत्कार

    पदार्थ

    पदार्थ - (ओ) = हे (मरुतः) = विद्वान् पुरुषो! हे (घृष्विराधसः) = एक दूसरे से बढ़नेवाले आप (पीतये) = उपभोग के लिये (अन्धांसि) = अन्नों को (सु यातन) = सुख से प्राप्त करो। मैं (इमा) = ये (हव्या) = खाने और लेने-देने योग्य द्रव्यादि (ररे) = देता हूँ। (हि कं) = आप लोग (अन्यत्र) = अन्य स्थान में (मो सु गन्तन) = मत जाइये। मेरे राष्ट्र में रहिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह अपने राज्य में विद्वानों को आजीविका के समस्त साधन उपलब्ध करावे। उनको यथोचित सम्मान प्रदान करे जिससे वे विद्वान् इस राजा के राष्ट्र को छोड़कर अन्य देशों में न जावें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे धार्मिक विद्वानांनो ! मी तुमचा पूर्ण सत्कार करतो. तुम्ही इतर कोणतीही इच्छा धरू नका. कर्तव्य कर्म यथायोग्य करून पूर्ण अभीष्ट सुख प्राप्त करा. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, mighty and munificent accomplishers of the means and materials of achievement in life, go forward to enjoy the taste of success and prosperity of society. I offer these gifts of homage and song of success to you. Pray neglect us not, go not elsewhere.

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