ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 59/ मन्त्र 9
सांत॑पना इ॒दं ह॒विर्मरु॑त॒स्तज्जु॑जुष्टन। यु॒ष्माको॒ती रि॑शादसः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठसान्ऽत॑पनाः । इ॒दम् । ह॒विः । मरु॑तः । तत् । जु॒जु॒ष्ट॒न॒ । यु॒ष्माक॑ । ऊ॒ती । रि॒शा॒द॒सः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सांतपना इदं हविर्मरुतस्तज्जुजुष्टन। युष्माकोती रिशादसः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठसान्ऽतपनाः। इदम्। हविः। मरुतः। तत्। जुजुष्टन। युष्माक। ऊती। रिशादसः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 59; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसस्सान्तपना मरुतो ! यूयं तदिदं हविर्जुजुष्टन, हे रिशादसः ! युष्माकोती जुजुष्टन ॥९॥
पदार्थः
(सान्तपनाः) सन्तपने भवाः शत्रूणां सन्तापकराः (इदम्) (हविः) दातुमर्हमन्नादिकम् (मरुतः) मानवाः (तत्) (जुजुष्टन) सेवध्वम् (युष्माक) अत्र वा छन्दसीति मलोपः। (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया (रिशादसः) हिंसकानां हिंसकाः ॥९॥
भावार्थः
हे विद्वांसो ! भवन्तः सर्वेषां रक्षणं विधाय ग्रहीतव्यं ग्राहयन्तु ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वानो (सान्तपनाः) उत्तम प्रकार तपन में हुए (मरुतः) मनुष्यो ! आप (तत्) उस (इदम्) इस (हविः) देने योग्य अन्न आदि पदार्थ की (जुजुष्टन) सेवा करिये, हे (रिशादसः) हिंसा करनेवालों के हिंसक ! (युष्माक) आप लोगों की (ऊती) जो रक्षण आदि क्रिया उससे आप सेवन करें अर्थात् परोपकार करें ॥९॥
भावार्थ
हे विद्वानो ! आप लोग सबका रक्षण करके ग्रहण करने योग्य को ग्रहण कराइये ॥९॥
विषय
सान्तपन अग्नि, विद्वान् ब्राह्मण का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) उत्तम मनुष्यो ! हे ( सान्तपनाः ) उत्तम तप करने वाले जनो ! आप लोग ( इदं हविः ) यह उत्तम अन्न ( जजुष्टन ) प्रेम से सेवन करो । हे ( रिशादसः = रिशात्-असः, रिश-अदसः ) हिंसकों को नाश करने वाले जनो ! ( युष्माक-ऊती) तुम लोगों की उत्तम रक्षा से ही हम लोग भी उत्तम अन्नादि का लाभ करें ।
टिप्पणी
एष ह वै सान्तपनोऽग्निर्यद् ब्राह्मणः। यस्य गर्भाधानपुंसवनसीमन्तोन्नयनजातकर्मनामकरणनिष्क्रमणान्नप्राशनगोदानचूड़ाकरणोपनयनप्लावनाग्निहोत्रव्रतचर्यादीनि कृतानि भवन्ति स-सान्तपनः॥ गो० पू० २ । २३॥ जिस विद्वान् ब्राह्मण के गर्भाधान से लेकर उपनयन समावर्त्तनादि तक संस्कार हो चुके हों और अग्निहोत्र व्रतचर्यादि ठीक पालन किये हों वह 'सान्तपन' कहता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १-११ मरुतः। १२ रुद्रो देवता, मृत्युविमोचनी॥ छन्दः १ निचृद् बृहती। ३ बृहती। ६ स्वराड् बृहती। २ पंक्ति:। ४ निचृत्पंक्तिः। ५, १२ अनुष्टुप्। ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ९,१० गायत्री। ११ निचृद्गायत्री॥
विषय
उत्तम व्रती बनो
पदार्थ
पदार्थ- हे (मरुतः) = उत्तम मनुष्यो ! हे (सान्तपना:) = तपस्वी जनो! आप (इदं हविः) = यह उत्तम अन्न (जुजुष्टन) = सेवन करो। हे( रिशादसः-रिशात्-असः, रिश-अदसः) = हिंसकों के नाशक जनो! (युष्माक ऊती) = तुम लोगों की रक्षा से ! लोगों की रक्षा से ही हम लोग अन्नादि लाभ करें।
भावार्थ
भावार्थ-राष्ट्र में उत्तम तपस्वी जनों की रक्षा तथा उनके पालन आदि की व्यवस्था उत्तम प्रकार से होवे। इससे प्रजा जनों को उत्तम आदर्श प्राप्त होता है जिससे वे भी तपस्वी होकर उत्तम व्रतों को धारण करके राष्ट्र को समृद्ध बनाने में सहायक होते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वानांनो! तुम्ही सर्वांचे रक्षण करून स्वीकारण्यायोग्य गोष्टींचा स्वीकार करवा. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, leaders of the world and vibrant energisers, chastened in the fire of discipline and subduers of the violent by your methods of law, protection and defence, accept our homage and cooperation offered in obedience to law and discipline of peace.
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