ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 11
यो ब्रह्म॑णे सुम॒तिमा॒यजा॑ते॒ वाज॑स्य सा॒तौ प॑र॒मस्य॑ रा॒यः। सीक्ष॑न्त म॒न्युं म॒घवा॑नो अ॒र्य उ॒रु क्षया॑य चक्रिरे सु॒धातु॑ ॥११॥
स्वर सहित पद पाठयः । ब्रह्म॑णे । सु॒ऽम॒तिम् । आ॒ऽयजा॑ते । वाज॑स्य । सा॒तौ । प॒र॒मस्य॑ । रा॒यः । सीक्ष॑न्त । म॒न्युम् । म॒घऽवा॑नः । अ॒र्यः । उ॒रु । क्षया॑य । च॒क्रि॒रे॒ । सु॒ऽधातु॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो ब्रह्मणे सुमतिमायजाते वाजस्य सातौ परमस्य रायः। सीक्षन्त मन्युं मघवानो अर्य उरु क्षयाय चक्रिरे सुधातु ॥११॥
स्वर रहित पद पाठयः। ब्रह्मणे। सुऽमतिम्। आऽयजाते। वाजस्य। सातौ। परमस्य। रायः। सीक्षन्त। मन्युम्। मघऽवानः। अर्यः। उरु। क्षयाय। चक्रिरे। सुऽधातु ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 11
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यः परमस्य वाजस्य रायः सातौ ब्रह्मणे सुमतिमा यजाते ये मघवानोऽर्यः मन्युं सीक्षन्त क्षयायोरु सुधातु चक्रिरे त एव श्रीमन्तो जायन्ते ॥११॥
पदार्थः
(यः) (ब्रह्मणे) धनाय परमेश्वराय वा (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (आयजते) समन्ताद्यजेत सङ्गच्छेत (वाजस्य) विज्ञानस्य (सातौ) संविभागे (परमस्य) श्रेष्ठस्य (रायः) धनस्य (सीक्षन्त) सम्बध्नन्ति (मन्युम्) क्रोधम् (मघवानः) परमधनयुक्ताः (अर्यः) यथावज्ज्ञातारः (उरु) बहु (क्षयाय) निवासाय (चक्रिरे) कुर्वन्ति (सुधातु) शोभना धातवो यस्मिन् गृहे ॥११॥
भावार्थः
ये मनुष्या ईश्वरविज्ञानायोत्तमधनलाभाय श्रेष्ठाय गृहाय क्रोधादिदोषान् विहाय प्रयतन्ते ते सर्वसुखा जायन्ते ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यः) जो (परमस्य) श्रेष्ठ (वाजस्य) विज्ञान और (रायः) धन के (सातौ) उत्तम प्रकार बाँटने में (ब्रह्मणे) धन के वा परमेश्वर के लिये (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि को (आयजाते) सब प्रकार से प्राप्त होवें और जो (मघवानः) अत्यन्त धन से युक्त (अर्यः) यथावत् जाननेवाले (मन्युम्) क्रोध को (सीक्षन्त) सम्बन्धित करते हैं और (क्षयाय) निवास के लिये (उरु) बड़े (सुधातु) सुन्दर धातु सुवर्ण आदि जिसमें उस गृह को (चक्रिरे) सिद्ध करते हैं, वे ही लक्ष्मीवान् होते हैं ॥११॥
भावार्थ
जो मनुष्य ईश्वर के विज्ञान के, उत्तम धन के लाभ के और श्रेष्ठ गृह के लिये क्रोध आदि दोषों का परित्याग कर के प्रयत्न करते हैं, वे सम्पूर्ण सुखों से युक्त होते हैं ॥११॥
विषय
शासकों की समिति और सत्संग का वर्णन।
भावार्थ
( यः ) जो मनुष्य ( ब्रह्मणे ) विद्वान् ब्रह्मवेत्ता पुरुष के हितार्थ वा ज्ञान और धन के प्राप्तयर्थ ( सुमतिम् ) शुभ कल्याणकारी ज्ञान और बुद्धि ( आ यजाते ) प्राप्त करता है, और जो (वाजस्य ) बल, ज्ञान और ( परमस्य रायः सातौ ) सर्वश्रेष्ठ ऐश्वर्य के लाभ के लिये ( सुमतिम् आ यजाते ) उत्तम ज्ञानवान् पुरुष का सत्संग और उपासना करता है ( मघवानः अर्यः ) उत्तम पूज्य ज्ञान धनादि सम्पन्न पुरुष उसको ( मन्युं सीक्षन्त ) ज्ञान प्रदान करते और ( क्षयाय ) रहने और उसकी ऐश्वर्य की वृद्धि के लिये ( उरु ) बहुत ( सु-धातु ) उत्तम भरण पोषण, उत्तम गृह और उत्तम सोना चान्दी का आभूषण, वेतन, वृत्ति आदि ( चक्रिरे ) प्रदान करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १ सूर्यः। २ – १२ मित्रावरुणौ देवते। छन्दः – १ पंक्तिः। ९ विराट् पंक्ति:। १० स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ४, ६, ७, १२ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ८, ११ त्रिष्टुप्॥
विषय
ज्ञान दाता बनो
पदार्थ
पदार्थ - (यः) = जो मनुष्य (ब्रह्मणे) = ब्रह्मवेत्ता पुरुष के हितार्थ, वा ज्ञान, धन के प्राप्त्यर्थ (सुमतिम्) = कल्याणकारी ज्ञान और बुद्धि (आ यजाते) = प्राप्त करता है और जो (वाजस्य) = बल, ज्ञान और (परमस्य रायः सातौ) = सर्वश्रेष्ठ ऐश्वर्य लाभ के लिये (सुमतिम् आ यजाते) = ज्ञानवान् पुरुष का सत्संग करता है (मघवानः अर्यः) = पूज्य ज्ञान, धनादि-सम्पन्न पुरुष उसको (मन्युं सीक्षन्त) = ज्ञान प्रदान करते और क्षयाय रहने और उसकी ऐश्वर्य के लिये (उरु) = बहुत (सु-धातु) उत्तम भरणपोषण, उत्तम गृह, आभूषण आदि (चक्रिरे) = देते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-ब्रह्मवेत्ता विद्वान् पुरुष अपने निकट आनेवाले मनुष्यों को ज्ञान प्रदान करके उन्हें धन एवं बल प्राप्ति के योग्य पात्र बना देता है। वे सत्संगी मनुष्य उस ज्ञान प्राप्ति के बदले उन विद्वानों का उत्तम भोजन, निवास तथा आभूषण एवं उत्तम वाणी से सत्कार करें।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे ईश्वराच्या विज्ञानाने, उत्तम धनाच्या लाभाने व श्रेष्ठ गृहासाठी क्रोध वगैरे दोषांचा त्याग करतात व प्रयत्नशील बनतात ती संपूर्ण सुखी होतात. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Whoever applies his holy and faithful mind for the vision of Divinity and for the achievement of food and energy and supreme wealth, honour and excellence of life, the generous divine powers energise his righteous passion and bless his action, and they create a vast house of joy and prosperity for him and award him golden wealth and irresistible vitality.
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