ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 4
उद्वां॑ पृ॒क्षासो॒ मधु॑मन्तो अस्थु॒रा सूर्यो॑ अरुहच्छु॒क्रमर्णः॑। यस्मा॑ आदि॒त्या अध्व॑नो॒ रद॑न्ति मि॒त्रो अ॑र्य॒मा वरु॑णः स॒जोषाः॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठउत् । वा॒म् । पृ॒क्षासः॑ । मधु॑ऽमन्तः । अ॒स्थुः॒ । आ । सूर्यः॑ । अ॒रु॒ह॒त् । शु॒क्रम् । अर्णः॑ । यस्मै॑ । आ॒दि॒त्याः । अध्व॑नः । रद॑न्ति । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । वरु॑णः । स॒ऽजोषाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्वां पृक्षासो मधुमन्तो अस्थुरा सूर्यो अरुहच्छुक्रमर्णः। यस्मा आदित्या अध्वनो रदन्ति मित्रो अर्यमा वरुणः सजोषाः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठउत्। वाम्। पृक्षासः। मधुऽमन्तः। अस्थुः। आ। सूर्यः। अरुहत्। शुक्रम्। अर्णः। यस्मै। आदित्याः। अध्वनः। रदन्ति। मित्रः। अर्यमा। वरुणः। सऽजोषाः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्भिः किं कर्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे अध्यापकोपदेशकौ ! वां ये पृक्षासो मधुमन्त उत्तस्थुः यः सूर्यः शुक्रमर्ण आरुहद्यस्मा आदित्या अध्वनो रदन्ति सजोषा मित्रो वरुणोऽर्यमा चाध्वनो रदन्ति तान् सर्वान् यूयं यथावद्विजानीत ॥४॥
पदार्थः
(उत्) (वाम्) (युवयोः) (पृक्षासः) सेचकाः (मधुमन्तः) मधुरादयो गुणा विद्यन्ते येषु ते (अस्थुः) उत्तिष्ठन्तु (आ) (सूर्यः) सूर्यलोकः (अरुहत्) रोहति (शुक्रम्) शुद्धम् (अर्णः) उदकम् (यस्मै) (आदित्याः) संवत्सरस्य मासाः (अध्वनः) मार्गस्य मध्ये (रदन्ति) विलिखन्ति (मित्रः) प्राणः (अर्यमा) विद्युत् (वरुणः) जलादिकम् (सजोषाः) समानप्रीत्या सेवनीयः ॥४॥
भावार्थः
हे विद्वांसः ! अध्यापकोपदेशाभ्यां प्राप्तविद्या यूयं पृथिव्यादिपदार्थविद्यां विज्ञाय श्रीमन्तो भवत ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! (वाम्) आप दोनों के जो (पृक्षासः) सींचनेवाले (मधुमन्तः) मधुर आदि गुण विद्यमान जन में वे (उत्, अस्थुः) उठें और जो (सूर्यः) सूर्य्य लोक (शुक्रम्) शुद्ध (अर्णः) जल को (आ, अरुहत्) सब ओर से चढ़ाता और (यस्मै) जिसके लिये (आदित्याः) वर्ष के महीने (अध्वनः) मार्ग के मध्य में (रदन्ति) आक्रमण करते हैं (सजोषाः) तुल्य प्रीति से सेवा करने योग्य (मित्रः) प्राण (वरुणः) जल आदि (अर्यमा) बिजुली और मार्ग के मध्य में आक्रमण करते हैं, उन सब को आप लोग यथावत् जानो ॥४॥
भावार्थ
हे विद्वानो ! अध्यापक और उपदेशक से विद्या को प्राप्त हुए आप लोग पृथिवी आदि की विद्या को जान कर धनवान् हूजिये ॥४॥
विषय
उनके अधीन रथ शासकों के लक्षण।
भावार्थ
हे स्त्री पुरुषो ! (वाम् ) आप लोगों के लाभार्थ ही (मधुमन्तः पृक्षासः उत् अस्थुः ) जल से युक्त मेघ ऊपर आकाश में उठते हैं, उसी प्रकार ( मधुमन्तः वृक्षासः उत् अस्थुः ) मधुर गुणयुक्त अन्न भूमि पर उत्पन्न होते हैं । सूर्य जिस प्रकार ( शुक्रम् अर्णः अरुहत् ) शुद्ध जल को ऊपर उठाता है उसी प्रकार सूर्यवत् तेजस्वी राजा शुद्ध निष्पाप धन वा प्राप्तव्य पद को ( आ अरुहत् ) प्राप्त करे । ( यस्मै ) जिसके हितार्थ ( आदित्यः ) १२ मासों के सदृश नाना रूप से सर्वोपकारक विद्वान् तेजस्वी १२ सचिव ( अध्वनः ) राज-कार्यों के नाना मार्ग ( रदन्ति ) बनाते हैं वही ( स-जोषाः ) समान रूप से सबको प्रिय, ( मित्रः ) सर्वस्नेही, ( अर्यमा ) न्यायकारी, ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ, सबके वरने योग्य हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १ सूर्यः। २ – १२ मित्रावरुणौ देवते। छन्दः – १ पंक्तिः। ९ विराट् पंक्ति:। १० स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ४, ६, ७, १२ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ८, ११ त्रिष्टुप्॥
विषय
राजा न्यायकारी हो
पदार्थ
पदार्थ- हे स्त्री-पुरुषो! (वाम्) = आप लोगों के लाभार्थ ही (मधुमन्तः पृक्षासः उत् अस्थुः) = जल-युक्त मेघ ऊपर उठते हैं, वैसे ही (मधुमन्तः पृक्षासः उत् अस्युः) = मधुर गुणयुक्त अन्न भूमि पर उत्पन्न होते हैं। सूर्य जैसे (शुक्रम् अर्णः अरुहत्) = शुद्ध जल को ऊपर उठाता है वैसे ही सूर्यवत् तेजस्वी राजा शुद्ध धन वा प्राप्तव्य पद को प्राप्त करे। (यस्मै) = जिसके हितार्थ (आदित्या:) = १२ मासों तक के सदृश नाना रूप से सर्वोपकारक तेजस्वी १२ सचिव (अध्वनः) = राज-कार्यों के मार्ग (रदन्ति) = बनाते हैं, वही (स-जोषाः) = समान रूप से सबको प्रिय, (मित्र:) = सर्वस्नेही, (अर्यमा) = न्यायकारी, (वरुण:) = सबके वरने योग्य हो ।
भावार्थ
भावार्थ- उत्तम राजा को योग्य है कि वह अपने राष्ट्र के स्त्री व पुरुषों को उनकी योग्यता के अनुसार पद व धन प्रदान करे। सदैव प्रजाहित का चिन्तन करते हुए उपकारी भाववाले मनुष्यों को सचिव नियुक्त करे जो राजकार्य को उत्तम रीति से चलाते हुए प्रजाजनों के प्रिय होकर सबके साथ न्याय करें तथा स्वयं सम्मान पाकर राजा को भी प्रतिष्ठित करें।
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वानांनो ! अध्यापक व उपदेशकाकडून विद्या प्राप्त करून तुम्ही पृथ्वीसंबंधी विद्या जाणून धनवान व्हा. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
For you, O men and women, the friendly cloud and the vast skies replete with honey sweets abide on high and the sun raises vitalising oceans of vapour, the sun for which the Adityas, months of the year, Varuna and Aryama, Adityas all together, prepare the paths across the zodiacs, Mitra.
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