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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒मे चे॒तारो॒ अनृ॑तस्य॒ भूरे॑र्मि॒त्रो अ॑र्य॒मा वरु॑णो॒ हि सन्ति॑। इ॒म ऋ॒तस्य॑ वावृधुर्दुरो॒णे श॒ग्मासः॑ पु॒त्रा अदि॑ते॒रद॑ब्धाः ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मे । चे॒तारः॑ । अनृ॑तस्य । भूरेः॑ । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । वरु॑णः । हि । सन्ति॑ । इ॒मे । ऋ॒तस्य॑ । व॒वृ॒धुः॒ । दु॒रो॒णे । श॒ग्मासः॑ । पु॒त्राः । अदि॑तेः । अद॑ब्धाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमे चेतारो अनृतस्य भूरेर्मित्रो अर्यमा वरुणो हि सन्ति। इम ऋतस्य वावृधुर्दुरोणे शग्मासः पुत्रा अदितेरदब्धाः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमे। चेतारः। अनृतस्य। भूरेः। मित्रः। अर्यमा। वरुणः। हि। सन्ति। इमे। ऋतस्य। ववृधुः। दुरोणे। शग्मासः। पुत्राः। अदितेः। अदब्धाः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यथेमे मित्रोऽर्यमा वरुणश्च भूरेरनृतस्य चेतारस्सन्तीमे हि शग्मास अदितेः पुत्रा अदब्धा दुरोणे भूरेर्ऋतस्य विज्ञानं वावृधुस्तस्मात्ते सत्कर्तव्यास्सन्ति ॥५॥

    पदार्थः

    (इमे) (चेतारः) सम्यग्ज्ञानयुक्ता विज्ञापकाः (अनृतस्य) मिथ्यावस्तुनः (भूरेः) बहुविधस्य (मित्रः) सर्वसुहृत् (अर्यमा) न्यायकारी (वरुणः) जलमिव पालकः (हि) (सन्ति) (इमे) (ऋतस्य) सत्यस्य वस्तुनो व्यवहारस्य वा (वावृधुः) वर्धयन्ति। अत्राभ्यासदैर्घ्यम्। (दुरोणे) गृहे (शग्मासः) बहुसुखयुक्ताः (पुत्राः) (अदितेः) अखण्डितस्य (अदब्धाः) अहिंसकाः ॥५॥

    भावार्थः

    ये पूर्णविद्या भवन्ति त एव सत्याससत्यप्रज्ञापका जायन्ते ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जैसे (इमे) ये (मित्रः) सर्व मित्र (अर्यमा) न्यायकारी और (वरुणः) जल के सदृश पालक (भूरेः) बहुत प्रकार के (अनृतस्य) मिथ्या वस्तु के (चेतारः) उत्तम प्रकार ज्ञानयुक्त वा जनानेवाले (सन्ति) हैं और (इमे) जो (हि) निश्चित (शग्मासः) बहुत सुख से युक्त (अदितेः) अखण्डित न नष्ट होनेवाली के (पुत्राः) पुत्र (अदब्धाः) नहीं हिंसा करनेवाले (दुरोणे) गृह में बहुत प्रकार के (ऋतस्य) सत्य वस्तु के विज्ञान को (वावृधुः) बढ़ाते हैं, इससे वे सत्कार करने योग्य हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो पूर्ण विद्यायुक्त होते हैं, वे ही सत्य और असत्य के जाननेवाले होते हैं ॥५॥

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    विषय

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    भावार्थ

    (इमे) ये उक्त विद्वान् जन और (मित्रः) सर्वस्नेही, (अर्यमा) न्यायकारी और ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ राजा ये सब ( भूरेः ) बहुत बड़े ( अनृतस्य ) असत्य को भी ( चेतारः ) विवेक द्वारा छान बीन करने वाले ( हि सन्ति ) अवश्य हों । ( दुरोणे ) गृह में पुत्र जिस प्रकार धन की वृद्धि करते हैं उसी प्रकार ( दुरोणे ) अन्यों से दुष्प्राप्य पद पर स्थित हो कर, वा ( इह ) इस राष्ट्र में भी ( अदितेः ) सूर्यवत् तेजस्वी राजा के अधीन उसके ( पुत्रा: ) पुत्रों के समान आज्ञाकारी ( शग्मासः ) सुखकारक और ( अदब्धाः ) प्रजाओं की हिंसा न करने और शत्रुओं से स्वयं भी पीड़ित न होने वाले होकर ( ऋतस्य वावृधुः ) सत्य न्याय और धन की सदा वृद्धि करें ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १ सूर्यः। २ – १२ मित्रावरुणौ देवते। छन्दः – १ पंक्तिः। ९ विराट् पंक्ति:। १० स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ४, ६, ७, १२ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ८, ११ त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    राजा विवेकी हो

    पदार्थ

    पदार्थ- (इमे) = ये विद्वान्, (मित्र:) = सर्वस्नेही, अर्यमा न्यायकारी और (वरुण:) = सर्वश्रेष्ठ राजा ये सब (भूरेः) = बहुत बड़े (अनृतस्य) = असत्य को भी (चेतारः) = विवेक द्वारा छानबीन करनेवाले (हि सन्ति) = अवश्य हों। (दुरोणे) = गृह में पुत्र जैसे धन की वृद्धि करते हैं वैसे (दुरोणे) = दुष्प्राप्य पद पर स्थित होकर, वा (इह) = इस राष्ट्र में भी (अदितेः) = सूर्यवत् तेजस्वी राजा के अधीन उसके (पुत्रा:) = पुत्रों के समान आज्ञाकारी (शग्मासः) = सुखकारक और (अदब्धाः) = शत्रुओं से पीड़ित न होनेवाले होकर (ऋतस्य वावृधुः) = न्याय और धन की वृद्धि करें।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा अपने विद्वान् मन्त्रियों के साथ मिलकर बड़े असत्य = भ्रष्टाचार का भी विवेक पूर्वक मन्थन अवश्य करे जिससे राजा तेजस्वी होकर भ्रष्टाचार को समाप्त करके राष्ट्र में धन की वृद्धि एवं राजनियमों का पालन कराते हुए दुष्टों व शत्रुओं को दण्डित करके न्याय का शासन स्थापित कर सके।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पूर्ण विद्यायुक्त असतात तेच सत्य व असत्याचे जाणकार असतात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    These Adityas, Mitra, Varuna and Aryama, loving friend, discriminative judge, and the path maker of rectitude, give us the sense and awareness of right and wrong, of falsehood as distinct from truth and correctness, in all varieties of situations. And they persist, and they augment the order of truth and right in the house of divine law, children of mother Infinity as they are, happy at peace, loving and kind, yet dauntless and unchallengeable.

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