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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 15/ मन्त्र 11
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स॒त्रा त्वं पु॑रुष्टुतँ॒ एको॑ वृ॒त्राणि॑ तोशसे । नान्य इन्द्रा॒त्कर॑णं॒ भूय॑ इन्वति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्रा । त्वम् । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ । एकः॑ । वृ॒त्राणि॑ । तोशसे । न । अ॒न्यः । इन्द्रा॑त् । कर॑णम् । भूयः॑ । इ॒न्व॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्रा त्वं पुरुष्टुतँ एको वृत्राणि तोशसे । नान्य इन्द्रात्करणं भूय इन्वति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सत्रा । त्वम् । पुरुऽस्तुत । एकः । वृत्राणि । तोशसे । न । अन्यः । इन्द्रात् । करणम् । भूयः । इन्वति ॥ ८.१५.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 15; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (पुरुष्टुत) हे सर्वैः स्तुत ! (त्वम्, एकः) त्वम्, एक एव (सत्रा) सहैव (वृत्राणि, तोशसे) विघ्नानि हिनस्सि (इन्द्रात्, अन्यः) परमात्मनोऽन्यः (भूयः, करणम्) अधिकं कर्म (न, इन्वति) न प्राप्नोति ॥११॥

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    विषयः

    एक इन्द्र एव पूज्योऽस्तीति दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे पुरुष्टुत=पुरुभिर्बहुभिर्विद्वद्भिः स्तुत=प्रार्थित ! यद्वा । पुरु यथा तथा पूज्य ! त्वमेक एव । असहाय एव । सत्रा=सहोपकरणैः । वृत्राणि=संसारोद्भूतानि विघ्नजातानि अनावृष्टिमहामारीप्रभृतीनि । तोशसे=विनाशयसि । वधार्थस्तोशतिः । अपि च । हे मनुष्याः ! इन्द्रात् परमेश्वरादन्यो न कश्चित् । भूयोऽधिकम् । करणम्=साधनम् । इन्वति=प्राप्नोति । यतः स सर्वसाधनसम्पन्नोऽस्ति । अतः स सर्वं कर्त्तुं शक्नोतीति शक्रपदवाच्यो भवति ॥११ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (पुरुष्टुत) हे सबके स्तुत्यर्ह ! (त्वम्, एकः) आप अकेले ही (वृत्राणि) सब विघ्नों को (सत्रा) युगपत् ही (तोशसे) नष्ट करते हैं (इन्द्रात्, अन्यः) इन्द्र=परमात्मा से अन्य कोई भी (भूयः, कर्म) अधिक कर्म को (न, इन्वति) नहीं प्राप्त कर सकता ॥११॥

    भावार्थ

    हे सबके स्तुतियोग्य परमात्मन् ! एकमात्र आप ही सब विघ्नों तथा उपद्रवों को नष्ट करके प्राणियों को सुख देनेवाले हैं। आपसे भिन्न अन्य कोई भी कर्मों में आधिक्य प्राप्त नहीं कर सकता अर्थात् सब कर्मों में आप ही का आधिपत्य पाया जाता है ॥११॥

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    विषय

    एक इन्द्र ही पूज्य है, यह इससे दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (पुरुष्टुत) हे सर्वस्तुत ! हे बहुपूज्य हे स्तवनीयतम देव ! (त्वम्+एकः) तू एक ही (सत्रा) सर्वोपकरण सर्वसाधनसहित (वृत्राणि) संसारोत्थित सर्व विघ्नों को (तोशसे) विनष्ट करता है । हे मनुष्यों ! (इन्द्रात्) उस परमेश्वर को छोड़ (अन्यः) अन्य (न) कोई नहीं (भूयः) उतना अधिक (करणम्) कार्य (इन्वति) कर सकता है । क्योंकि वह सर्वसाधनसम्पन्न होने के कारण सब कुछ कर सकता है, इसी हेतु वह शक्र नाम से वारंवार पुकारा गया है ॥११ ॥

    भावार्थ

    वह एक ही सर्व विघ्नों को विनष्ट करता है । वह सब कुछ कर सकता है, यह जान उसकी उपासना करे ॥११ ॥

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    विषय

    सर्वविघ्नहारी प्रभु।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! स्वामिन् ! शत्रुहन्तः ! ( त्वं ) तू ( सत्रा ) सत्य के बल से वा सदा एक साथ ( पुरु-स्तुतः ) बहुतों से स्तुति करने योग्य होता है। वह तू ( एकः ) अकेला अद्वितीय शक्तिशाली होकर ( वृत्राणि ) शत्रु सैन्यों के समान घेर लेने वाले विघ्नों को, मेघों को सूर्यवत् वा जलों को विद्युत्वत् ( तोशसे ) मारता, गिरा देता है। ( इन्द्रात् अन्यः ) उस परमैश्वर्यवान् से दूसरा कोई भी ( भूयः करणं ) अधिक क्रियासामर्थ्य, वा साधन को ( न इन्वति ) नहीं प्राप्त कर सकता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ ऋषी। इन्द्रो देवता। छन्द्रः—१—३, ५—७, ११, १३ निचृदुष्णिक्। ४ उष्णिक्। ८, १२ विराडुष्णिक्। ९, १० पादनिचृदुष्णिक्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    वृत्र-तोशन

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (पुरुष्टुत) = पालक व पूरक स्तुतिवाले हैं, आपकी स्तुति स्तोता का पालन व पूरण करती है। आप (सत्रा) = एकदम ही (एक:) = बिना किसी अन्य की सहायता के (वृत्राणि) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को (तोशसे) = विनष्ट करते हैं। [२] (इन्द्रात् अन्यः) = उस सर्वशक्तिमान् प्रभु से भिन्न और कोई (भूयः) = अधिक (करणम्) = शत्रुवधादि कर्मों को (न इन्वति) = व्याप्त नहीं करता है। वासना-विनाश आदि महान् कर्मों को करनेवाले प्रभु ही हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ही उपासक के काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विनाश करते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord universally adored, you alone dispel and destroy all the strong holds of darkness, ignorance and evil. There is no one else other than Indra who can exceed your power and performance either now or later.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    तो एकटाच सर्व विघ्नांचा नाश करू शकतो. तो सर्व काही करू शकतो. हे जाणून त्याची उपासना करावी. ॥११॥

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