ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 15/ मन्त्र 9
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ
देवता - इन्द्र:
छन्दः - पादनिचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
त्वां विष्णु॑र्बृ॒हन्क्षयो॑ मि॒त्रो गृ॑णाति॒ वरु॑णः । त्वां शर्धो॑ मद॒त्यनु॒ मारु॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम् । विष्णुः॑ । बृ॒हन् । क्षयः॑ । मि॒त्रः । गृ॒णा॒ति॒ । वरु॑णः । त्वाम् । शर्धः॑ । म॒द॒ति॒ । अनु॑ । मारु॑तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वां विष्णुर्बृहन्क्षयो मित्रो गृणाति वरुणः । त्वां शर्धो मदत्यनु मारुतम् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाम् । विष्णुः । बृहन् । क्षयः । मित्रः । गृणाति । वरुणः । त्वाम् । शर्धः । मदति । अनु । मारुतम् ॥ ८.१५.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 15; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(विष्णुः) विष्णुशब्दः (बृहन्, क्षयः) महान् निवास इति शब्दः (मित्रः) मित्रशब्दः (वरुणः) वरुणशब्दः (त्वाम्, गृणाति) त्वामेव वक्ति (मारुतम्, शर्धः) मारुतम्=आर्त्विजीनं बलम् (त्वाम्, अनुमदति) त्वामेवानुसृत्य हर्षयति ॥९॥
विषयः
इन्द्रस्य महिमा प्रदर्श्यते ।
पदार्थः
हे इन्द्र ! बृहन्=पृथिव्यादिभ्यो महत्तमः । पुनः । क्षयः=“क्षि निवासे” क्षयति निवासयति जीवान् यः स क्षयः । ईदृग् । विष्णुः=सूर्य्यः । त्वाम् । गृणाति=स्तौति । तव महान्तं महिमानं दर्शयतीत्यर्थः । मित्रः=ब्राह्मणः । दिवसो वा । वरुणः=क्षत्रियः । रात्रिर्वा । त्वां गृणाति । पुनः । मारुतम्=वायुसम्बन्धि । शर्धः=बलम् । त्वामनुमदति=त्वामनुलक्ष्य माद्यति । तवैव बलेन सोऽपि मरुत् बलवानस्तीति यावत् ॥९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(विष्णुः) विष्णु शब्द (बृहन्, क्षयः) महान् सर्वाश्रय शब्द (मित्रः) मित्र शब्द (वरुणः) वरुण शब्द (त्वाम्, गृणाति) आप ही को वाच्यरूप से कहते हैं (मारुतम्, शर्धः) ऋत्विक्सम्बन्धी विद्याबल (त्वाम्) आप ही के (अनुमदति) आश्रित होकर सबको हर्षित करता है ॥९॥
भावार्थ
हे सबके आश्रय महान् परमेश्वर ! विष्णु=व्यापक, मित्र=सबका हितचिन्तक तथा वरुण=सबका उपासनीय, यह सब शब्द आप ही में प्रयुक्त होते हैं और ऋत्विक्=वेदविद्या के प्रकाशक विद्वान् आपके आश्रित=आप ही की कृपा से विद्यासम्पन्न होकर मनुष्यों को सदुपदेश द्वारा हर्षित करते हैं ॥९॥
विषय
इन्द्र की महिमा दिखलाते हैं ।
पदार्थ
हे इन्द्र ! (बृहन्) पृथिव्यादि लोकों की अपेक्षा बहुत बड़ा और (क्षयः) सर्व प्राणियों का निवासहेतु (विष्णुः) यह सूर्य्यदेव (त्वाम्+गृणाति) तेरी स्तुति करता है । अर्थात् तेरे महान् महिमा को दिखलाता है । तथा (मित्रः) ब्राह्मण अथवा दिवस (वरुणः) क्षत्रिय अथवा रात्रि तेरी स्तुति करते हैं । (मारुतम्) वायुसम्बन्धी (शर्धः) बल (त्वाम्+अनु) तेरी ही शक्ति से (मदति) मदयुक्त होता है । तेरे ही बल से वह भी बलवान् होता है ॥९ ॥
भावार्थ
भाव यह है कि हे इन्द्र ! यह महान् सूर्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय और अहोरात्र आपकी ही कीर्त्ति दिखला रहे हैं । तथा इस वायु का वेग या बल भी आपसे ही प्राप्त होता है । आप ऐसे महान् देव हैं । आपकी ही स्तुति मैं किया करूँ ॥९ ॥
विषय
उसका महान् ऐश्वर्य।
भावार्थ
हे ऐश्वर्यवन् ! ( विष्णुः ) सर्वत्र फैलने वाला, प्रकाशमान सूर्य ( बृहन् ) महान् ( क्षयः ) सबको अपने में बसाने वाला, गृह के समान आश्रय देने वाला सूर्य ( मित्रः ) स्नेहवान् जन, और दिन और ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ जन वा रात्रि भी ( त्वां गृणाति ) तेरी स्तुति करता है । और ( मारुतं शर्धः ) वायुओं का बल भी ( त्वाम् अनु मदति ) तेरे बलपर क्रीड़ा करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ ऋषी। इन्द्रो देवता। छन्द्रः—१—३, ५—७, ११, १३ निचृदुष्णिक्। ४ उष्णिक्। ८, १२ विराडुष्णिक्। ९, १० पादनिचृदुष्णिक्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
उपासक का जीवन
पदार्थ
[१] हे प्रभो! वास्तव में (त्वाम्) = आपका (गृणाति) = स्तवन वही करता है जो (विष्णुः) = व्यापक व उदारवृत्तिवाला बनता है, (बृहन्) = वृद्धि को करनेवाला होता है, (क्षय:) = उत्तम निवास व गतिवाला बनता है, (मित्रः) = सब के प्रति स्नेहवाला होता है और (वरुणः) = द्वेष का निवारण करनेवाला होता है प्रभु का वास्तविक स्तवन तो यही है कि हम इस प्रकार के जीवनवाले बनें। [२] हे प्रभो ! (त्वाम्) = आपकी (अनु) = अनुकूलता को करता हुआ यह (मारुतं शर्धः) = प्राणों का बल (मदति)[मादयति] = आनन्द का अनुभव कराता है। प्राणसाधना से चित्तवृत्ति की एकाग्रता होकर प्रभु में प्रीति बढ़ती है और एक अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का उपासक 'उदार, वृद्धि को प्राप्त होता हुआ, उत्तम निवास व गतिवाला, सब का मित्र व निर्देष' होता है। यह प्राणसाधना को करता हुआ चित्तवृत्ति की एकाग्रता के द्वारा प्रभु प्राप्ति के आनन्द को पाता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Vishnu, cosmic dynamics of nature’s expansive sustenance, Mitra, loving and life giving sun, Varuna, soothing and energising oceans of the universe, and the power and force of the showers of cosmic energy all exalt you and receive their life and exaltation from you.
मराठी (1)
भावार्थ
भाव हा आहे की हे इन्द्र! हा महान सूर्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय रात्रंदिवस तुझी कीर्ती गात आहेत. तसेच या वायूचा वेग किंवा बलही तुझ्याकडूनच मिळते. तू असा महान देव आहेस, तुझीच स्तुती मी केली पाहिजे. ॥९॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal