ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 17/ मन्त्र 3
ब्र॒ह्माण॑स्त्वा व॒यं यु॒जा सो॑म॒पामि॑न्द्र सो॒मिन॑: । सु॒ताव॑न्तो हवामहे ॥
स्वर सहित पद पाठब्र॒ह्माणः॑ । त्वा॒ । व॒यम् । यु॒जा । सो॒म॒ऽपाम् । इ॒न्द्र॒ । सो॒मिनः॑ । सु॒तऽव॑न्तः । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्माणस्त्वा वयं युजा सोमपामिन्द्र सोमिन: । सुतावन्तो हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्माणः । त्वा । वयम् । युजा । सोमऽपाम् । इन्द्र । सोमिनः । सुतऽवन्तः । हवामहे ॥ ८.१७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(इन्द्र) हे योद्धः ! (सोमिनः) सोमवन्तः (सुतावन्तः) सवनं कृतवन्तः (वयम्, ब्रह्माणः) वयं ब्राह्मणाः (सोमपाम्, त्वा) सोमपानशीलं त्वाम् (हवामहे) आह्वयामः (युजा) योग्येन स्तोत्रेण ॥३॥
विषयः
इन्द्रः प्रार्थ्यते ।
पदार्थः
हे इन्द्र ! ब्रह्माणः=ब्राह्मणाः=स्तुतिकर्त्तारः । सोमिनः=सोमाः प्रशस्ताः पदार्थाः सन्त्येषामिति सोमिनो यज्ञसामग्रीसंपन्नाः । पुनः । सुतावन्तः=शुभकर्मवन्तो वयम् । त्वा=त्वाम् । युजा=योगेन । हवामहे=आह्वयामहे=प्रार्थयामहे । त्वं प्रार्थितः सन्नागच्छ ॥३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(इन्द्र) हे योद्धा ! (सोमिनः) सोमसहित (सुतावन्तः) सिद्धरस लिये हुए (वयं, ब्रह्माणः) हम ब्राह्मण लोग (सोमपाम्, त्वा) सोमपानशील आपको (युजा) योग्य स्तोत्रों से (हवामहे) आह्वान करते हैं ॥३॥
भावार्थ
हे विजय को प्राप्त योद्धा ! हम याज्ञिक ब्राह्मण आपको यज्ञसदन में आह्वान करते हैं, आप हमारे यज्ञस्थान को प्राप्त होकर हमारा यह सत्कार स्वीकार करें और हमारे सर्व प्रकार से रक्षक होकर यज्ञपूर्ति में सहायक हों ॥३॥
विषय
पुनः इन्द्र की प्रार्थना करते हैं ।
पदार्थ
(इन्द्र) हे परमदेव ! (ब्रह्माणः) शुद्ध, पवित्र, अहिंसक स्तुतिपरायण स्तुतिकर्त्ता (सोमिनः) सकल सामग्रीसंपन्न सोमरसयुक्त और (सुतावन्तः) सर्वदा शुभकर्मकारी (वयम्) हम उपासकगण (युजा) योग द्वारा (त्वाम्) तुझको (हवामहे) बुलाते हैं । हे भगवन् ! जिस कारण हम शुद्ध पवित्र शुभकर्मकारी हैं, अतः हमारे मन में आप निवास करें, जिससे दुर्व्यसनादि दोष हमको न पकड़ें ॥३ ॥
भावार्थ
मनुष्य प्रथम वेदविहित यज्ञों को और सत्यादिकों के अभ्यास द्वारा अपने अन्तःकरण को शुद्ध पवित्र बनावे, तब उससे जो कुछ प्रार्थना करेगा, वह स्वीकृत होगी । अतः मूल में ब्रह्माणः इत्यादि पद आए हैं ॥३ ॥
विषय
उसका हृदय में आह्वान और धारण ।
भावार्थ
( वयं ब्रह्माणः ) हम ब्राह्मण, स्तुतिकर्त्ता एवं ब्रह्मचारी जन, ( सोमिनः ) 'सोम' अर्थात् उत्तम ज्ञान, अन्न, सन्तान से युक्त और ( सुतवन्तः ) उत्तम पुत्रादिमान् होकर ( युजा ) योग द्वारा वा उत्तम गुरु शिष्यरूप सम्बन्ध द्वारा ( सोमपां त्वाम् ) सोम, शिष्यादि के पालक तुझको (हवामहे) प्रार्थना करते हैं। इसी प्रकार हे राजन् ! हम ( ब्रह्माणः ) धनसम्पन्न जन, ऐश्वर्यवान् और अन्नादिसम्पन्न होकर तुझे ऐश्वर्य पालक स्वीकार करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१—३, ७, ८ गायत्री। ४—६, ९—१२ निचृद् गायत्री। १३ विराड् गायत्री। १४ आसुरी बृहती। १५ आर्षी भुरिग् बृहती॥ पञ्चदशचं सूक्तम्॥
विषय
ब्रह्माणः, सोमिनः, सुतावन्तः
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (ब्रह्माण:) = ज्ञान की वाणियोंवाले (वयम्) = हम (युजा) = आप के साथ मिलानेवाली स्तुति के द्वारा (त्वा) = आपको (हवामहे) = पुकारते हैं। हे इन्द्र हमारे शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (सोमपाम्) = हमारे सोम [वीर्य] का रक्षण करनेवाले आपको हम (सोमिनः) = प्रशस्त सोमवाले होते हुए इस सोम को वासनाओं से मलिन न होने देते हुए पुकारते हैं। [२] (सुतावन्तः) = प्रशस्त यज्ञों [सुतं = सव:] वाले होते हुए हम आपको पुकारते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का वास्तविक स्तवन ज्ञानी, सोमरक्षक यज्ञशील पुरुष ही करते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of cosmic beauty, come to us, listen to our song of adoration and drink of the soma distilled by us with intense love and devotion.
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी प्रथम वेदविहित यज्ञांद्वारे व सत्य इत्यादी द्वारे आपले अंत:करण शुद्ध बनवावे, तेव्हा परमेश्वराजवळ जी प्रार्थना केली जाईल ती स्वीकृत होईल. त्यासाठी मुळात ‘ब्रह्माण:’ पद आलेले आहे. ॥३॥
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