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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 17/ मन्त्र 9
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्र॒ प्रेहि॑ पु॒रस्त्वं विश्व॒स्येशा॑न॒ ओज॑सा । वृ॒त्राणि॑ वृत्रहञ्जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । प्र । इ॒हि॒ । पु॒रः । त्वम् । विश्व॑स्य । ईशा॑नः । ओज॑सा । वृ॒त्राणि॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । ज॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र प्रेहि पुरस्त्वं विश्वस्येशान ओजसा । वृत्राणि वृत्रहञ्जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । प्र । इहि । पुरः । त्वम् । विश्वस्य । ईशानः । ओजसा । वृत्राणि । वृत्रऽहन् । जहि ॥ ८.१७.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 17; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! (ओजसा) बलेन (विश्वस्य, ईशानः) सर्वस्य स्वामी भवन् (त्वम्, पुरः, प्रेहि) त्वं रक्षायै अग्रतः प्रगच्छ (वृत्रहन्) हे शत्रुहन्तः ! (वृत्राणि, जहि) शत्रून् नाशय ॥९॥

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    विषयः

    विघ्नविनाशाय प्रार्थनां दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! ओजसा=महत्या शक्त्या । विश्वस्य=सर्वस्य जगतः । ईशानः=स्वामी । पुरोऽस्माकं पुरस्तात् । प्रेहि=प्रगच्छ=प्राप्नुहि । हे वृत्रहन्=वृत्राणां निखिलावरकाणां विघ्नानाम् । हन्तः=विनाशक । वृत्राणि=विघ्नजातानि । जहि=विनाशय ॥९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे योद्धा ! (ओजसा) स्व पराक्रम से (विश्वस्येशानः) सबको नीचे करते हुए (त्वम्) आप (पुरः, प्रेहि) रक्षा के लिये हमारे अभिमुख आवें (वृत्रहन्) हे शत्रुओं को हनन करनेवाले ! (वृत्राणि) सब शत्रुओं को (जहि) नष्ट करें ॥९॥

    भावार्थ

    हे युद्ध में शत्रुओं को हनन करनेवाले योद्धा लोगो ! आप अपने अमित पराक्रम से वेदविरोधी, प्रजा को कष्ट देनेवाले तथा श्रेष्ठ=उच्च भावोंवाले पुरुषों का अपमान करनेवाले शत्रुओं को नष्ट करके राष्ट्र को सुख-सम्पत्ति से समृद्ध करें ॥९॥

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    विषय

    विघ्नविनाश के लिये प्रार्थना दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र परमदेव ! तू (ओजसा) निज महती शक्ति से (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् का (ईशानः) स्वामी है । वह तू (पुरः) हम प्राणियों के सम्मुख (प्रेहि) आ जा । (वृत्रहन्) हे निखिलविघ्नविनाशक देव (वृत्राणि) हमारे सकल विघ्नों को (जहि) विनष्ट कर ॥९ ॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यों ! इस सम्पूर्ण जगत् का स्वामी वही ईश है । वही तुम्हारे समस्त विघ्नों का विनाश कर सकता है । उसी की उपासना सब कोई करो ॥९ ॥

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    विषय

    जगत का स्वामी

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( त्वं ) तू ( पुरः प्र इहि ) आ, बढ़, प्रकट हो, तू ( ओजसा ) बल पराक्रम से ( विश्वस्य ईशानः ) सब जगत् का स्वामी है। हे ( वृत्रहन् ) सूर्यवत् मेघों को लाने और दुष्टों को तारने हारे ! तू ( वृत्राणि जहि ) दुष्टों को दण्ड दे और जलों को बरसा । हे राजन् ! तू ( वृत्राणि जहि ) धनों को प्राप्त कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१—३, ७, ८ गायत्री। ४—६, ९—१२ निचृद् गायत्री। १३ विराड् गायत्री। १४ आसुरी बृहती। १५ आर्षी भुरिग् बृहती॥ पञ्चदशचं सूक्तम्॥

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    विषय

    पुरः प्रेहि

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (त्वम्) = तू (पुरः प्रेहि) = आगे और आगे चलनेवाला बन। (ओजसा) = ओजस्विता के द्वारा (विश्वस्य) = हमारे न चाहते हुए भी अन्दर घुस आनेवाले इन काम-क्रोध का तू (ईशानः) = शासक बनता है। इन्हें पूर्णतया संयत करनेवाला होता है। [२] हे (वृत्रहन्) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को विनष्ट करनेवाले ! तू (वृत्राणि) = इन वासनाओं को विनष्ट कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम निरन्तर आगे बढ़े, काम-क्रोध आदि के शासक हों, इन्हें पूर्णरूप से वश में करें। इन आवरणभूत वासनाओं को दूर करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, ruler and ordainer of the world by your power and splendour, come to us and, O dispeller of darkness, go forward, destroy the evils and adversities of ignorance, injustice and poverty.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! या संपूर्ण जगाचा स्वामी तोच ईश आहे. तोच तुमच्या संपूर्ण विघ्नांचा नाश करू शकतो. सर्वांनी त्याचीच उपासना करावी. ॥९॥

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