ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 41/ मन्त्र 5
यो ध॒र्ता भुव॑नानां॒ य उ॒स्राणा॑मपी॒च्या॒३॒॑ वेद॒ नामा॑नि॒ गुह्या॑ । स क॒विः काव्या॑ पु॒रु रू॒पं द्यौरि॑व पुष्यति॒ नभ॑न्तामन्य॒के स॑मे ॥
स्वर सहित पद पाठयः । ध॒र्ता । भुव॑नानाम् । यः । उ॒स्राणा॑म् । अ॒पी॒च्या॑ । वेद॑ । नामा॑नि । गुह्या॑ । सः । क॒विः । काव्या॑ । पु॒रु । रू॒पम् । द्यौःऽइ॑व । पु॒ष्य॒ति॒ । नभ॑न्ताम् । अ॒न्य॒के । स॒मे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो धर्ता भुवनानां य उस्राणामपीच्या३ वेद नामानि गुह्या । स कविः काव्या पुरु रूपं द्यौरिव पुष्यति नभन्तामन्यके समे ॥
स्वर रहित पद पाठयः । धर्ता । भुवनानाम् । यः । उस्राणाम् । अपीच्या । वेद । नामानि । गुह्या । सः । कविः । काव्या । पुरु । रूपम् । द्यौःऽइव । पुष्यति । नभन्ताम् । अन्यके । समे ॥ ८.४१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 41; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Glorify Varuna who is the holder and sustainer of the galaxies, solar systems and worldly regions of the universe, who knows the nature, forms and names of sun rays, mysteries and even the deepest secrets of existence. He is the omniscient poet and with his creative vision inspires the mind and imagination of poets for creation as he energises and sustains the heaven of light. May all contraries, contradictions, oppositions and enmities vanish.
मराठी (1)
भावार्थ
तो परमात्मा लोकलोकांतराचा निर्माता आहे व पालक आहे, त्यासाठी उपास्य आहे. ॥५॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
यो वरुणः । भुवनानाम् । धर्ता=धारयिताऽस्ति । यः । उस्राणां=सूर्य्यकिरणानामपि । धर्तास्ति । यः । अपीच्या=अपीच्यानि=अन्तर्हितानि । गुह्या=गुह्यानि । नामानि । वेद=जानाति । सः । कविः । सः । काव्या=काव्यानि । पुरु=पुरूणि=बहूनि । द्यौः=सूर्य्यः । रूपमिव । पुष्यति । अन्यद् व्याख्यातम् ॥५ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(यः) जो वरुण (भुवनानाम्) सम्पूर्ण सूर्य्यादि जगत् और समस्त प्राणियों का (धर्ता) धारण करनेवाला है और (उस्राणाम्) सूर्य्य की किरणों का भी वही धाता विधाता है और (अपीच्या) अन्तर्हित=भीतर छिपे हुए (गुह्या) गोपनीय (नामानि) नामों को भी (वेद) जानता है । (सः+कविः) वह महाकवि है और वह (काव्या) काव्यों को (पुरु) बहुत बनाकर (पुष्यति) पुष्ट करता है । (इव) जैसे (द्यौः) सूर्य्य (रूपम्) रूप को पुष्ट करता है, तद्वत् ॥५ ॥
विषय
सूर्यवत्। लोकधारण के तुल्य राष्ट्रधारण।
भावार्थ
( यः ) जो ( भुवनानां धर्त्ता ) समस्त लोकों को धारण करने वाला है, (यः ) जो ( उस्त्राणां ) उत्तम, ऊपर के मार्ग से जाने वाले सूर्यादि के ( गुह्या ) बुद्धि से गम्य, ( अपीच्या ) अन्तर्हित, छुपे हुए ( नामानि ) नाम, स्वरूपों को ( वेद ) जानता है। ( सः ) वह (कवि:) क्रान्तदर्शी, परम मेधावी, ( द्यौः इव ) सूर्य के समान ( काव्या ) विद्वान् मेधावी पुरुषों के अभ्यास करने योग्य ज्ञानों को ( पुरुरूपं पुष्यति ) बहुत प्रकार से पुष्ट करता है। उसके रहते हुए (अन्यके समे नभन्ताम् ) समस्त द्वेषीजन नष्ट हो जाते हैं। इति षड्विंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नाभाकः काण्व ऋषिः॥ वरुणो देवता॥ छन्दः—१, ५ त्रिष्टुप्। ४, ७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ८ स्वराट् त्रिष्टुप्। २, ३, ६, १० निचृज्जगती। ९ जगती॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
धर्ता-कविः
पदार्थ
[१] (यः) = जो प्रभु (भुवनानां धर्ता) = सब लोकों का धारण करनेवाले हैं। (यः) = जो प्रभु (उस्त्राणाम्) = वेदवाणी रूप गौओं के (अपीच्या:) = अन्तुहत (गुह्या) = हृदयदेश में प्रकट होनेवाले (नामानि) = नामों को (वेद) = प्राप्त कराते हैं। (सः कवि) = वे प्रभु ही क्रान्तप्रज्ञ है, प्रत्येक वस्तु के मर्म को जानते हैं। [२] वे प्रभु ही (काव्याः) = वेदरूप काव्यों का (पुष्यति) = इस प्रकार पोषण करते हैं, (इव) = जिस प्रकार (द्यौ:) = यह आकाश पुरु (रूपं) = अनेक रूपों का पोषण करता है। इस प्रभु के स्मरण से हमारे (समे) = सब (अन्यके) = शत्रु (नभन्ताम्) = नष्ट हों।
भावार्थ
भावार्थ:- प्रभु ही धारक हैं-सब पदार्थों को ज्ञापक है। वे कवि प्रभु ही सब ज्ञानों को देते हुए हमारे शत्रुओं को शीर्ण करते हैं।
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