ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 62/ मन्त्र 7
विश्वे॑ त इन्द्र वी॒र्यं॑ दे॒वा अनु॒ क्रतुं॑ ददुः । भुवो॒ विश्व॑स्य॒ गोप॑तिः पुरुष्टुत भ॒द्रा इन्द्र॑स्य रा॒तय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । वी॒र्य॑म् । दे॒वाः । अनु॑ । क्रतु॑म् । द॒दुः॒ । भुवः॑ । विश्व॑स्य । गोऽप॑तिः । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ । भ॒द्राः । इन्द्र॑स्य । रा॒तयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे त इन्द्र वीर्यं देवा अनु क्रतुं ददुः । भुवो विश्वस्य गोपतिः पुरुष्टुत भद्रा इन्द्रस्य रातय: ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे । ते । इन्द्र । वीर्यम् । देवाः । अनु । क्रतुम् । ददुः । भुवः । विश्वस्य । गोऽपतिः । पुरुऽस्तुत । भद्राः । इन्द्रस्य । रातयः ॥ ८.६२.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 62; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 41; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 41; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, universally celebrated and exalted, ruler and protector of the worlds of the universe, all divinities of nature and humanity in obedience and pursuit of your divine acts bear your generous strength and vitality. Great and good are the gifts of Indra.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या शक्तीनेच जगातील संपूर्ण पदार्थ शक्तिमान, कर्मवान व ज्ञानवान आहेत. अशा परमेश्वराची स्तुती केली पाहिजे. ॥७॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे इन्द्र हे पुरुष्टुत ! ते=तव । वीर्यं=शक्तिम् । क्रतुं=कर्म प्रज्ञाञ्च । अनु=अनुसृत्य । विश्वेदेवाः । ददुः=वीर्य्यं क्रतुञ्च धारयन्ति । तवैव वीर्य्येण, कर्मणा प्रज्ञया च सर्वे पदार्थाः वीर्य्यवन्तः कर्मवन्तो ज्ञानवन्तश्च सन्तीत्यर्थः । स त्वम् । विश्वस्य=सर्वस्य । गोपतिरिव । भुवः=भवसि । भद्रा इत्यादि पूर्ववत् ॥७ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(इन्द्र) हे परमैश्वर्य्य ! (पुरुष्टुतः) हे सर्वस्तुत देव ! (ते) तेरे (वीर्य्यम्) वीर्य (क्रतुम्) कर्म और प्रज्ञा को (विश्वे+देवाः) सब पदार्थ (अनु+ददुः) धारण किये हुए हैं अर्थात् तेरी शक्ति, कर्म और ज्ञान से ही ये सकल पदार्थ शक्तिमान्, कर्मवान् और ज्ञानवान् हैं, इस हेतु तू (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् का (गोपतिः) चरवाह है ॥७ ॥
विषय
विश्व का पालक प्रभु।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! वाणो द्वारा ज्ञान के देने हारे ! (देवाः) समस्त विद्याओं की कामना करने हारे जन (ते वीर्यम् अनु, ते क्रतुम् अनु ) तेरे बल और ज्ञान के अनुसार ही ( अनु ददुः ) स्वयं भी बल और ज्ञान को धारण करें और अन्यों को भी प्रदान करें हे ( पुरु-स्तुत ) बहुत जीवों के उपदेष्टः ! तू ही ( विश्वस्य गोपतिः भुवः ) समस्त वाणियों का पालक है।
टिप्पणी
( भद्राः० इत्यादि पूर्ववत् )
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रगाथः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ३, ६, १०, ११ निचृत् पंक्ति:। २, ५ विराट् पंक्तिः। ४, १२ पंक्तिः। ७ निचृद् बृहती। ८, ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वीर्यम्-क्रतुम्
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् देव! (विश्वे देवा:) = सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पृथिवी, जल, अग्नि, [तेज], वायु, आकाश, मेघ आदि सब देव ते= आपके (वीर्यम्) = शक्ति के (अनु) = अनुसार ही (ददुः) = हमारे लिए शक्ति को देते हैं। इसी प्रकार सब विद्वान् आपके (क्रतुं) = प्रज्ञान के अनुसार ही हमारे लिए प्रज्ञान को देनेवाले होते हैं। सूर्य आदि में शक्ति की स्थापना आप ही करते हैं । ज्ञानियों में ज्ञान को देनेवाले भी आप ही हैं। [२] हे (पुरुष्टुत) = बहुतों से स्तुति किये गये प्रभो ! आप ही (विश्वस्य) = सब (गोपतिः भुवः) = किरणों व ज्ञान की वाणियों के स्वामी हैं । इन्द्रस्य परमैश्वर्यशाली आपकी (रातयः) = देन (भद्राः) = कल्याणकर हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सब सूर्य आदि देवों में शक्ति का स्थापन प्रभु ही करते हैं तथा सब ज्ञानियों में प्रज्ञान का स्थापन करनेवाले प्रभु ही हैं। किरणों व ज्ञान की वाणियों के स्वामी प्रभु ही हैं।
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