ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 76/ मन्त्र 5
म॒रुत्व॑न्तमृजी॒षिण॒मोज॑स्वन्तं विर॒प्शिन॑म् । इन्द्रं॑ गी॒र्भिर्ह॑वामहे ॥
स्वर सहित पद पाठम॒रुत्व॑न्तम् । ऋजी॒षिण॑म् । ओज॑स्वन्तम् । वि॒ऽर॒प्शिन॑म् । इन्द्र॑म् । गीः॒ऽभिः । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मरुत्वन्तमृजीषिणमोजस्वन्तं विरप्शिनम् । इन्द्रं गीर्भिर्हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठमरुत्वन्तम् । ऋजीषिणम् । ओजस्वन्तम् । विऽरप्शिनम् । इन्द्रम् । गीःऽभिः । हवामहे ॥ ८.७६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 76; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
With various songs of adoration we invoke and worship Indra, lord omnipotent commanding cosmic winds and pranic energies, gracious lover of truth and the truthful, lustrous and sublime.
मराठी (1)
भावार्थ
मानवजातीने आपापल्या भाषेत त्याची स्तुती प्रार्थना करावी. ॥५॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
वयमुपासकाः । इन्द्रम् । गीर्भिः=स्वस्ववचनैः । हवामहे=प्रार्थयामहे गायाम इत्यर्थः । कीदृशम् । मरुत्वन्तम्=प्राणसखम् । ऋजीषिणम्=ऋजूनामिच्छुकम् । ओजस्वन्तम् । पुनः । विरप्शिनम्=महान्तम् ॥५ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हम उपासकगण (इन्द्रम्) परमात्मवाची इन्द्रदेव की महती कीर्ति को (गीर्भिः) स्वस्व भाषाओं के द्वारा (हवामहे) गावें, जो (मरुत्वन्तम्) प्राणों का स्वामी (ऋजीषिणम्) सत्यों और ऋजु पुरुषों का इच्छुक (ओजस्वन्तम्) महाशक्तिशाली और (विरप्शिनम्) महानों में महान् है ॥५ ॥
भावार्थ
मानवजातियाँ अपनी-अपनी भाषा से उसकी स्तुति प्रार्थना करें ॥५ ॥
विषय
महान् शासक के गुण।
भावार्थ
वायुओं के बलों से सम्पन्न सूर्यवत् प्रतापी, प्रबल मनुष्यों के स्वामी ( ऋजीषिणम् ) ऋजु अर्थात् धर्ममार्ग पर औरों को चलाने वाले तथा ( ऋजीषिणम् ) शत्रुदल को भून डालने में समर्थ, तीक्ष्ण सैन्यबल को सञ्चालित करने वाले ( ओजस्वन्तं ) बल पराक्रमशील (विरप्शिनम् ) महान् ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान् की हम ( गीर्भिः ) वाणियों से ( हवामहे ) प्रार्थना करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुरुसुतिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ५, ६, ८—१२ गायत्री। ३, ४, ७ निचृद् गायत्री॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
मरुत्वान् ऋजीषी
पदार्थ
[१] (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (गीर्भिः) = स्तुतिवाणियों के द्वारा (हवामहे) = पुकारते प्रभु का स्तवन करते हुए प्रभु को अपने जीवन में धारण करने का प्रयत्न करते हैं। [२] उन प्रभु को हम पुकारते हैं, जो (मरुत्वन्तम्) = प्राणोंवाले हैं - हमारे लिये प्राणशक्ति को प्राप्त कराते हैं। (ऋजीषिणम्) = ऋजुता के मार्ग की प्रेरणा देते हैं। (ओजस्वन्तम्) = ओजस्वी हैं और (विरप्शिनम्) = महान् हैं। प्रभु का आराधन करते हुए हम प्राणशक्ति सम्पन्न, ऋजुमार्ग से चलनेवाले, ओजस्वी व महान् बनने का प्रयत्न करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- वे प्रभु प्राणशक्ति की हमारे में स्थापना करनेवाले, ऋजुता की प्रेरणा देनेवाले, ओजस्वी व महान् हैं। हम प्रभु का आराधन करते हुए प्राणशक्ति सम्पन्न व ओजस्वी बनें। ऋजुमार्ग से चलते हुए महान् बनने का प्रयत्न करें।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal