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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 76/ मन्त्र 6
    ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रं॑ प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना म॒रुत्व॑न्तं हवामहे । अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । प्र॒त्नेन॑ । मन्म॑ना । म॒रुत्व॑न्तम् । ह॒वा॒म॒हे॒ । अ॒स्य । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं प्रत्नेन मन्मना मरुत्वन्तं हवामहे । अस्य सोमस्य पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । प्रत्नेन । मन्मना । मरुत्वन्तम् । हवामहे । अस्य । सोमस्य । पीतये ॥ ८.७६.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 76; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    With the ancient voice of divine revelation, we invoke and worship Indra, commander of cosmic winds and energiser of pranic energies for the protection of this world of the lord’s creation of joy and soma ecstasy.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सोम = संसार = ‘षूङ् प्राणिगर्भविमोचने’ ईश्वर या जगाचे पुत्राप्रमाणे उत्पत्ती व पालन करतो. त्यासाठी त्याला सोमही म्हणतात. पीति = पा रक्षणे ॥६॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे कवयः ! अस्य+सोमस्य=जगतः । पीतये=रक्षायै । यः सूयते उत्पाद्यते स सोमः संसारः । मरुत्वन्तं=प्राणसहायकम् । इन्द्रम् । प्रत्नेन=पुराणेन । मन्मना=स्तोत्रेण यद्वा पूर्णेन स्तोत्रेण । हवामहे=स्तुमः ॥६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे कविगण ! (अस्य+सोमस्य+पीतये) इस जगत् की रक्षा के लिये (मरुत्वन्तम्) प्राणों के सहायक (इन्द्रम्) परमेश्वर की (प्रत्नेन+मन्मना) वेदरूप प्राचीन स्तोत्र से यद्वा पूर्ण स्तव से (हवामहे) स्तुति प्रार्थना और आवाहन करें ॥६ ॥

    भावार्थ

    सोम=संसार=“षूङ् प्राणिगर्भविमोचने” ईश्वर इस जगत् की पुत्रवत् उत्पत्ति और पालन करता है, अतः इसको सोम भी कहते हैं । पीति=पा रक्षणे ॥६ ॥

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    विषय

    प्रभु की प्रार्थना।

    भावार्थ

    ( अस्य सोमस्य पीतये ) इस महान् ऐश्वर्य या जगत् के पालन करने के लिये हम ( प्रत्नेन ) अनादिसिद्ध ( मन्मना ) मनन करने योग्य स्तोत्र, वेद ज्ञान से हम ( मरुत्वन्तं ) प्रबल मनुष्यों के स्वामी, समस्त जीवों के पालक प्रभु की ( हवामहे ) प्रार्थना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुरुसुतिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ५, ६, ८—१२ गायत्री। ३, ४, ७ निचृद् गायत्री॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    प्रत्नेन मन्मना

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (प्रत्नेन मन्मना) = सनातन वेदज्ञान के द्वारा (हवामहे) = हम पुकारते हैं। [२] (मरुत्वन्तम्) = प्राणोंवाले-प्राणों की हमारे में स्थापना करनेवाले प्रभु को (अस्य सोमस्य पीतये) = इस सोम के पान के लिये पुकारते हैं। प्रभु का स्तवन हमें वासनाओं के आक्रमण से बचायेगा। प्राणायाम द्वारा सोमशक्ति की शरीर में ऊर्ध्वगति होगी। इस प्रकार हम सोम का रक्षण करने में समर्थ होंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभुस्मरण व प्राणायाम के करते हुए हम सोम का शरीर में रक्षण करें।

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