ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 68/ मन्त्र 8
ऋषिः - वत्सप्रिर्भालन्दनः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
प॒रि॒प्र॒यन्तं॑ व॒य्यं॑ सुषं॒सदं॒ सोमं॑ मनी॒षा अ॒भ्य॑नूषत॒ स्तुभ॑: । यो धार॑या॒ मधु॑माँ ऊ॒र्मिणा॑ दि॒व इय॑र्ति॒ वाचं॑ रयि॒षाळम॑र्त्यः ॥
स्वर सहित पद पाठप॒रि॒ऽप्र॒यन्त॑म् । व॒य्य॑म् । सु॒ऽसं॒सद॑म् । सोम॑म् । म॒नी॒षाः । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । स्तुभः॑ । यः । धार॑या । मधु॑ऽमान् । ऊ॒र्मिणा॑ । दि॒वः । इय॑र्ति । वाच॑म् । र॒यि॒षाट् । अम॑र्त्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
परिप्रयन्तं वय्यं सुषंसदं सोमं मनीषा अभ्यनूषत स्तुभ: । यो धारया मधुमाँ ऊर्मिणा दिव इयर्ति वाचं रयिषाळमर्त्यः ॥
स्वर रहित पद पाठपरिऽप्रयन्तम् । वय्यम् । सुऽसंसदम् । सोमम् । मनीषाः । अभि । अनूषत । स्तुभः । यः । धारया । मधुऽमान् । ऊर्मिणा । दिवः । इयर्ति । वाचम् । रयिषाट् । अमर्त्यः ॥ ९.६८.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 68; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मनीषाः स्तुभः) शुभबुद्धयः (परिप्रयन्तम्) सर्वैः प्राप्यं (वय्यम्) विद्वद्भिः काम्यमानं (सुषंसदम्) सुस्थितिमन्तं (सोमम्) परमात्मानं (अभ्यनूषत) वर्णयन्ति। (यो धारया) यस्त्वं स्वकीयानन्दामृतधारया (मधुमान्) आनन्दमयोऽसि। तथा (ऊर्मिणा) आमोदतरङ्गद्वारा (दिवः) द्युलोकतः (वाचम्) वेदवाणीं (इयर्ति) ददाति स परमेश्वरः (रयिषाट्) सकलैश्वर्यदायकस्तथा (अमर्त्यः) मरणधर्मरहितोऽस्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मनीषाः स्तुभः) शुद्ध बुद्धियाँ (परिप्रयन्तं) सबको प्राप्त होनेवाले (वय्यं) विद्वानों से काम्यमान (सुषंसदं) शोभन स्थितिवाले (सोमं) परमात्मा को (अभि अनूषत) वर्णन करती हैं। (यो धारया) जो अपने अमृत की धारा से (मधुमान्) आनन्दमय है तथा (ऊर्मिणा) आनन्द की लहर द्वारा (दिवः) द्युलोक से (वाचं) वेदवाणी को (इयर्ति) देता है, वह परमात्मा (रयिषाट्) समस्त ऐश्वर्यदाता तथा (अमर्त्यः) मरणधर्मरहित है ॥८॥
भावार्थ
परमात्मा अपनी दिव्यशक्ति से पवित्र वेदवाणी का प्रकाश करता है और स्वयं आमरणधर्मा होकर जगज्जन्मादि का हेतु है ॥८॥
विषय
रयिषाट् अमर्त्यः
पदार्थ
[१] (मनीषाः) = [मनीषा अस्य अस्ति इति मनीष ] मन की शासिका बुद्धिवाले (स्तुभः) = स्तोता लोग (सोमम्) = सोम को (अभ्यनूषत) = प्रातः-सायं स्तुत करते हैं। सोम के स्तवन से, सोम के गुणों के स्मरण से, सोमरक्षण की प्रवृत्ति उनमें और अधिक उत्पन्न होती है । उस सोम को स्तुत करते हैं, जो (परिप्रयन्तम्) = शरीर में चारों ओर गतिवाला होता है, (वय्यम्) = (कर्मतन्तु) = का सन्तान करनेवाला होता है, इस सोम के रक्षण से शक्ति व स्फूर्ति उत्पन्न होती है, (सुषंसदम्) = उत्तम संस्थानवाला होता है, सोमरक्षण से अंग-प्रत्यंग की स्थिति ठीक होती है । [२] (यः) = जो सोम (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (मधुमान्) = माधुर्यवाला है। (ऊर्मिणा) = अपनी लहरों द्वारा अथवा [ light] प्रकाश के द्वारा (दिवः वाचं इयर्ति) = प्रकाश की वाणी को हमारे में प्रेरित करता है, मस्तिष्क को उज्ज्वल बनाता है । (रयिषाड्) = सब धनों का विजेता है और (अमर्त्यः) = हमें असमय मरने नहीं देता, पूर्ण आयुष्य का कारण बनता है।
भावार्थ
भावार्थ - स्वाध्याय व स्तुति से रक्षित सोम जीवन को मधुर बनाता है, ज्ञान की वाणियों को हमारे में प्रेरित करता है, पूर्ण जीवन को देता है ।
विषय
प्रभु की स्तुति, प्रार्थना।
भावार्थ
(मनीषाः स्तुभः) मन को सन्मार्ग में प्रेरित करने वाले, शत्रुओं के नाश करने और विद्याओं का उपदेश करने वाले वीर एवं विद्वान् जन उस (वय्यं) सर्वरक्षक, तेजोमय, सर्वव्यापक, सर्वप्रिय, (सुं-सं-सदं) सुप्रतिष्ठित (परि प्रयन्तं) सर्वत्र गतिमान् (सोमं) सर्वैश्वर्यवान् प्रभु की (अभि अनूषत) स्तुति करते हैं। (यः) जो (धारया) धारणाशक्ति और देववाणी द्वारा (मधुमान्) स्वयं ज्ञान युक्त, मधुर वचन वाला और बलवान् होकर (ऊर्मिणा) सर्वोपरि शक्ति से (रयि-षाड्) सब ऐश्वर्य बल को विजय करता हुआ, (अमर्त्यः) अमरणधर्मा, अविनाशी (दिवः वाचं इयर्त्ति) ज्ञान-प्रकाश से युक्त वाणी को गुरुवत् और घोषणा को राजा के तुल्य और विद्युत्-गर्जना को मेघवत् सर्वोपकारार्थ प्रेरित करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वत्सप्रिर्भालन्दनं ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ३, ६, ७ निचृज्जगती। २,४, ५, ९ जगती। ८ विराड् जगती। १० त्रिष्टुप्। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Joyous celebrants with sincerity of mind and soul exalt Soma, universally vibrant Spirit, lovely and adorable, holy and companionable who, immortal treasurehold of the wealth and honey sweets of life, gives us streams and showers of the divine voice of omniscience from the heights of heaven.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आपल्या दिव्यशक्तीने पवित्र वेदवाणीचा प्रकाश करतो व स्वत: अमरण धर्मा असून जन्म-मरण इत्यादीचा हेतू आहे. ॥८॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal