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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 21
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    51

    तं धा॒ता प्रत्य॑मुञ्चत॒ स भू॒तं व्यकल्पयत्। तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । धा॒ता । प्रति॑ । अ॒मु॒ञ्च॒त॒ । स: । भू॒तम् । वि । अ॒क॒ल्प॒य॒त् । तेन॑ । त्वम् । द्व‍ि॒ष॒त: । ज॒हि॒ ॥६.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं धाता प्रत्यमुञ्चत स भूतं व्यकल्पयत्। तेन त्वं द्विषतो जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । धाता । प्रति । अमुञ्चत । स: । भूतम् । वि । अकल्पयत् । तेन । त्वम् । द्व‍िषत: । जहि ॥६.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (तम्) उस [वैदिक नियम] को (धाता) धारणकर्त्ता [राजा] ने (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है, और (सः) उसने (भूतम्) जगत् को (वि अकल्पयत्) संभाला है। (तेन) उस [वैदिक नियम] से (त्वम्) तू (द्विषतः) वैरियों को (जहि) मार ॥२१॥

    भावार्थ

    जैसे राजा वेद द्वारा राज्य का प्रबन्ध करता है, वैसे ही प्रत्येक मनुष्य करे ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(तम्) (धाता) प्रजापालको राजा (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (अकल्पयत्) संस्कृतवान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    धाता

    पदार्थ

    १. (तम्) = उस वीर्यमणि को (धाता) = अपनी इन्द्रियों का धारण [स्थिर] करनेवाला व्यक्ति (प्रत्यमुञ्चत) = कवच के रूप में धारण करता है। (स:) = वह सुरक्षित वीर्यमणि (भूतम्) = इस उत्पन्न शरीर को (व्यकल्पयत्) = विशेषरूप से सामर्थ्यवाला बनाता है [क्लप् सामर्थे]। प्रभु कहते है कि हे जीव! (तेन) = इस बीर्यमणि के द्वारा (त्वम्) = तू (द्विषतः जहि) = इन रोगरूप शत्रुओं को नष्ट कर।

    भावार्थ

    इन्द्रियों का धारक 'जितेन्द्रिय' पुरुष इस वीर्यमणि को अपना कवच बनाता है। वह उत्पन्न शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग को शक्तिशाली बनाता है। इस वीर्यमणि द्वारा हम रोगों को कुचलते हैं।

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    भाषार्थ

    (तम्) उस मणि को (धाता१) धारण-पोषण करने वाले परमेश्वर ने (प्रत्यमुञ्चत) धारण किया, (सः) उसने (भूतम्) भूत-भौतिक जगत् की (व्यकल्पयत्) विविधरूपों में रचना की। (तेन) उस मणि द्वारा (त्वम्) हे ध्यानी ! तू (द्विषतः) निज द्वेषी-शत्रुओं का (जहि) हनन कर।

    टिप्पणी

    [मणि, प्रजापति द्वारा सृष्ट हुई है (मन्त्र १९)। यह प्रजापति, धाता है, सब का धारण-पोषण करता है। इस मणि को धारण करके धाता ने सृष्टि को रचा। यह मणि है सृष्टिरचना में धाता की कामना, इच्छा। यथा "सोऽकामयत" (वृहदा० उप० ब्राह्मण २, खण्ड ४-७)। धाता की कामना मात्र से ही भूत-भौतिक सृष्टि पैदा होती है। यह कामना ही संकल्प और दृढ़ निश्चय रूप है। धाता खदिर काष्ठ के फाल के विकाररूप मणि को धारण नहीं करता। याज्ञिक सम्प्रदाय मणि के सम्बन्ध में कहते हैं कि "खदिरकाष्ठफालविकारं मणि शत्रुनाशाय सर्वकामाप्तये च बध्नाति" (सायण, सूक्त के विनियोग में)। ध्यानी के शत्रु हैं, अन्तराय (मन्त्र २०)]।[१. सधाता स विधर्ता स वायुर्नभ उच्छ्रितम् (३)। सोऽर्यमा स वरुणः स रुद्रः स महादेवः (४) सो अग्निः स उ सूर्यः स उ एव महायमः (५) [अथर्व० १३।४।३-५]।

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    विषय

    शिरोमणि पुरुषों का वर्णन।

    भावार्थ

    (तं) उसको (धाता) धारण करने और उत्पन्न करने वाला विधाता प्रभु स्वयं (प्रत्यमुञ्चत) धारण करता है। (सः) वह (भूतम्) इस चराचर को (वि अकल्पयत्) नाना प्रकार से उत्पन्न करता या नाना प्रकार से विभक्त करता है। (तेन) उस नरश्रेष्ठ पुरुष के बल पर हे राजन् ! तू (द्विषतः जहि) शत्रुओं का नाश कर।

    टिप्पणी

    ‘सुभूतान्यकल्पयत्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बृहस्पतिर्ऋषिः। फालमणिस्त वनस्पतिर्देवता। १, ४, २१ गायत्र्याः, ३ आप्या, ५ षट्पदा जगती, ६ सप्तपदा विराट् शक्वरी, ७-९ त्र्यवसाना अष्टपदा अष्टयः, १० नवपदा धृतिः, ११, २३-२७ पथ्यापंक्तिः, १२-१७ त्र्यवसाना षट्पदाः शक्वर्यः, २० पथ्यापंक्तिः, ३१ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ३५ पञ्चपदा अनुष्टुब् गर्भा जगती, २, १८, १९, २१, २२, २८-३०, ३२-३४ अनुष्टुभः। पञ्चत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    That jewel-mani of power and potential, Dhata, lord of the universe, bore and manifested as his will and dynamic energy, and he created the world of variety in all its multitude. By the same jewel power of your own possibility, O man, eliminate all those negations, hate and oppositions which obstruct your individual, social and spiritual evolution.

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    Translation

    The ordained Lord (dhātr) put that (blessing) on; He formed all that exists (bhūtam). With that, may you destroy the malicious enemies.

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    Translation

    The Up-holder of the Universe accepts this citron tree by fashioning it and He creates all that exhists. By that, Oman! destroy your diseases which hurt you.

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    Translation

    God created this Vedic Law. He hath controlled the universe. O King, with the help of this Vedic Law, do thou subdue thy foes.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(तम्) (धाता) प्रजापालको राजा (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (अकल्पयत्) संस्कृतवान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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