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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 31
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा जगती सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    62

    उत्त॑रं द्विष॒तो माम॒यं म॒णिः कृ॑णोतु देव॒जाः। यस्य॑ लो॒का इ॒मे त्रयः॒ पयो॑ दु॒ग्धमु॒पास॑ते। स मा॒यमधि॑ रोहतु म॒णिः श्रैष्ठ्या॑य मूर्ध॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्ऽत॑रम् । द्वि॒ष॒त: । माम् । अ॒यम् । म॒णि: । कृ॒णो॒तु॒ । दे॒व॒ऽजा: । यस्य॑ । लो॒का: । इ॒मे । त्रय॑: । पय॑: । दु॒ग्धम् । उ॒प॒ऽआस॑ते । स: । मा॒ । अ॒यम् । अधि॑ । रो॒ह॒तु॒ । म॒णि: । श्रैष्ठ्या॑य । मू॒र्ध॒त: ॥६.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तरं द्विषतो मामयं मणिः कृणोतु देवजाः। यस्य लोका इमे त्रयः पयो दुग्धमुपासते। स मायमधि रोहतु मणिः श्रैष्ठ्याय मूर्धतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्ऽतरम् । द्विषत: । माम् । अयम् । मणि: । कृणोतु । देवऽजा: । यस्य । लोका: । इमे । त्रय: । पय: । दुग्धम् । उपऽआसते । स: । मा । अयम् । अधि । रोहतु । मणि: । श्रैष्ठ्याय । मूर्धत: ॥६.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 31
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (देवजाः) देव [परमेश्वर] से उत्पन्न (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझको (द्विषतः) वैरी से (उत्तरम्) अधिक ऊँचा (कृणोतु) करे। (इमे) यह (त्रयः) तीनों [सृष्टि, स्थिति और प्रलय] (लोकाः) लोक (यस्य) जिस [वैदिक नियम] के (दुग्धम्) पूर्ण (पयः) ज्ञान को (उपासते) भजते हैं, (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझको (मूर्धतः) शिर पर से (श्रैष्ठ्याय) प्रधान पद के लिये (अधि) ऊपर (रोहतु) चढ़ावे ॥३१॥

    भावार्थ

    मनुष्य ईश्वरप्रणीत सत्य नियम को मानकर संसार में प्रधान पद प्राप्त करे ॥३१॥

    टिप्पणी

    ३१−(उत्तरम्) उच्चतरम् (द्विषतः) शत्रुसकाशात् (मा) माम् (अयम्) (मणिः) प्रशस्तो वैदिकनियमः (कृणोतु) करोतु (देवजाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। देव+जनी प्रादुर्भावे-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। नस्य आत्त्वम्। देवात् परमेश्वराज् जातः (यस्य) (लोकाः) (इमे) (त्रयः) सृष्टिस्थितिप्रलयरूपाः (पयः) पय गतौ-असुन्। ज्ञानम् (दुग्धम्) प्रपूर्णम् (उपासते) पूजयन्ति (सः) (मा) माम् (अयम्) (अधि) उपरि (रोहतु) रोहयतु (मणिः) (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपदाय (मूर्धतः) मस्तकात् ॥

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    विषय

    द्विषतः, उत्तरं, पयः, श्रेष्ट्याय

    पदार्थ

    १. (अयं) = यह (देवजा:) = [देवाः जायन्ते यस्मात्] दिव्य गुणों की उत्पत्ति को कारणभूत (मणि:) = वीर्यमणि (माम्) = मुझे (उत्तरं कृणोतु) = शत्रुओं के ऊपर करे-शत्रुओं का विजेता बनाए। (यस्य) = जिस मणि के (दुग्धं पयः) = प्रपूरित आप्यायन को-जिस मणि के द्वारा प्राप्त कराई गई वृद्धि को (इमे त्रयो लोका:) = ये तीनों लोक (उपासते) = उपासित करते हैं। शरीररूप पृथिवीलोक इस मणि के द्वारा ही दृढ़ किया जाता है, इसी से मनरूप अन्तरिक्षलोक शान्त बनता है, इसी से मस्तिष्करूप धुलोक दीप्त बनता है। २. (सः अयं मणि:) = वह यह वीर्यमणि (माम् मूर्थतः अधिरोहतु) = मेरे मस्तिष्क की दिशा में-मस्तिष्क की ओर आरूढ़ हो। इसकी ऊर्ध्वगति होकर यह मेरे मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईंधन बने, इसप्रकार यह मणि मेरी (श्रेष्ठ्याय) = श्रेष्ठता के लिए हो।

    भावार्थ

    यह दिव्य गुणों को उत्पन्न करनेवाली वीर्यमणि मेरे शत्रुओं को परास्त करे।

    इससे मेरे 'शरीर, मन व मस्तिष्क' तीनों लोक आप्यायित हों। यह मणि मुझमें ऊर्ध्वगतिबाली होकर मुझे श्रेष्ठ बनाये।

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    भाषार्थ

    (देवजाः) देवों द्वारा प्रकटीकृत (अयम्, मणिः) यह परमेश्वररूप मणि (माम्) मुझ को (द्विषतः) द्वेषियों की अपेक्षया (उत्तरम्) अधिक उत्कृष्ट (कृणोतु) कर दें। (यस्य) जिस परमेश्वर के (पयः दुग्धम्) जल और दूध का, या दोहे दूध आदि का (इमे त्रयः लोकाः) ये तीनों लोक (उपासते) सेवन करते हैं। (सः अयम्) वह यह परमेश्वर-मणि (मा) मेरे (मूर्धत) सिर पर (अधि रोहतु) आरोहण करे, (श्रैष्ठ्याय) मेरी श्रेष्ठता के लिये, ताकि मैं श्रेष्ठ बन जाऊँ।

    टिप्पणी

    [देवजाः (मन्त्र २९); देवकोटि के सद-गुरुओं की कृपा द्वारा परमेश्वर-देव प्रकट होता है। परमेश्वर प्रकट होकर व्यक्ति को, काम, क्रोध आदि द्विष्ट-कृत्यों पर विजयार्थ, उत्कृष्ट शक्ति प्रदान करता है। परमेश्वर द्वारा उत्पादित [दोहे दूध] आदि का सेवन तीनों लोकों के निवासी करते हैं। व्यक्ति चाहता है कि परमेश्वर-मणि मेरे सिर पर आरोहण करे। मणि आदि आभूषण सिर की शोभा को बढ़ाते हैं। सिर से ही सब विचार उठ कर नाना कर्म कराते हैं। परमेश्वर जब सिर पर आरोहण करता है तो विचार और कर्म सात्त्विक हो जाते हैं, और व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है। मूर्धतः= सप्तम्यां तसिः]।

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    विषय

    शिरोमणि पुरुषों का वर्णन।

    भावार्थ

    (अयं) यह (मणिः) नर-रत्न, शत्रुस्तम्भक पुरुष (देवजाः) देव विद्वानों द्वारा सामर्थ्यवान् एवं अधिकार सत्ता को प्राप्त होकर (माम्) मुझे (द्विषतः) शत्रुओं के (उत्तरम्) ऊपर, उनसे ऊंचा (कृणोतु) करे और (यस्य) जिसके (दुग्धम्) उत्पन्न किये या दुहे गये प्राप्त किये हुए ऐश्वर्य को (इमे) ये (त्रयः) तीनों (लोकाः) लोक, उत्तम, मध्यम और निकृष्ट तीनों श्रेणियों के प्राणी (उपासते) भोग करते हैं। (सः) वह (अयम् मणिः) यह नरोत्तम परम पुरुष (श्रेष्ठ्याय) सबसे श्रेष्ठ होने के कारण (मूर्धतः माम् अधिरोहतु) मेरे भी शिरोभाग पर पूज्य होकर रहे। यह मन्त्र सूक्त में आये ‘मणि’ शब्द के वाच्यार्थ का स्वरूप दर्शाता है।

    टिप्पणी

    (पं०) ‘स त्वायमभिरक्षतु’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बृहस्पतिर्ऋषिः। फालमणिस्त वनस्पतिर्देवता। १, ४, २१ गायत्र्याः, ३ आप्या, ५ षट्पदा जगती, ६ सप्तपदा विराट् शक्वरी, ७-९ त्र्यवसाना अष्टपदा अष्टयः, १० नवपदा धृतिः, ११, २३-२७ पथ्यापंक्तिः, १२-१७ त्र्यवसाना षट्पदाः शक्वर्यः, २० पथ्यापंक्तिः, ३१ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ३५ पञ्चपदा अनुष्टुब् गर्भा जगती, २, १८, १९, २१, २२, २८-३०, ३२-३४ अनुष्टुभः। पञ्चत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    May this jewel power born of divinities and gifted raise me to superiority and victory over the powers of hate and enmity, the power whose gift of sustenance, vitality and milk of mercy and grace, all these three worlds of heaven, earth and the firmament worship and enjoy. May this divine gift raise me to the top of excellence and this highest merit seat of life.

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    Translation

    May this blessing, born of the bounties of Nature, and for whose, milked out essence these three worlds wait, make me superior to my hateful enemy. May this blessing mount upon me for raising me to the crowning supremacy.

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    Translation

    May this citron plant which is produced by the forces of nature and the prepared milk or juice of which the three kinds of creatures use, be fastened on my head for winning surpassing power.

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    Translation

    May this Vedic Law, the revelation of God, make me superior to my foe. The three stages of Creation, Sustenance, Dissolution testify to its perfect knowledge. May this Vedic Law lift me to a lofty sovereign position.

    Footnote

    Me: The king.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३१−(उत्तरम्) उच्चतरम् (द्विषतः) शत्रुसकाशात् (मा) माम् (अयम्) (मणिः) प्रशस्तो वैदिकनियमः (कृणोतु) करोतु (देवजाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। देव+जनी प्रादुर्भावे-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। नस्य आत्त्वम्। देवात् परमेश्वराज् जातः (यस्य) (लोकाः) (इमे) (त्रयः) सृष्टिस्थितिप्रलयरूपाः (पयः) पय गतौ-असुन्। ज्ञानम् (दुग्धम्) प्रपूर्णम् (उपासते) पूजयन्ति (सः) (मा) माम् (अयम्) (अधि) उपरि (रोहतु) रोहयतु (मणिः) (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपदाय (मूर्धतः) मस्तकात् ॥

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