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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 33
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    52

    यथा॒ बीज॑मु॒र्वरा॑यां कृ॒ष्टे फाले॑न॒ रोह॑ति। ए॒वा मयि॑ प्र॒जा प॒शवोऽन्न॑मन्नं॒ वि रो॑हतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । बीज॑म् । उ॒र्वरा॑याम् । कृ॒ष्टे । फाले॑न । रोह॑ति । ए॒व । मयि॑ । प्र॒ऽजा । प॒शव॑: । अन्न॑म्ऽअन्नम् । वि । रो॒ह॒तु॒ ॥६.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा बीजमुर्वरायां कृष्टे फालेन रोहति। एवा मयि प्रजा पशवोऽन्नमन्नं वि रोहतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । बीजम् । उर्वरायाम् । कृष्टे । फालेन । रोहति । एव । मयि । प्रऽजा । पशव: । अन्नम्ऽअन्नम् । वि । रोहतु ॥६.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 33
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (बीजम्) बीज (उर्वरायाम्) उपजाऊ धरती में (फालेन) फाल [हल की कील] से (कृष्टे) जोते हुए [खेत] में (रोहति) उपजता है, (एव) वैसे ही (मयि) मुझ में (प्रजा) प्रजा [सन्तान आदि], (पशवः) पशु [गौ घोड़ा आदि] और (अन्नमन्नम्) अन्न के ऊपर अन्न (वि) विविध प्रकार (रोहतु) उत्पन्न होवे ॥३३॥

    भावार्थ

    यह बात प्रसिद्ध है कि उत्तम अन्न उपजाऊ धरती में क्रियाविशेष द्वारा बोये बीज से उत्तम अन्न आदि उत्पन्न होते हैं, वैसे ही सुशिक्षित गुणी पुरुषों के सुविचारित कर्म से बड़े-बड़े उपकारी लाभ होते हैं ॥३३॥

    टिप्पणी

    ३३−(यथा) येन प्रकारेण (बीजम्) अ० ३।१७।२। उत्पत्तिकारणम् (उर्वरायाम्) उरु−ऋ गतौ-अच्, टाप्। शस्याढ्यायां भूमौ (कृष्टे) विलिखिते क्षेत्रे (फालेन) फल विदारणे-घञ्। लाङ्गलमुखस्येन लौहेन (रोहति) उत्पद्यते (एव) तथा (मयि) (प्रजा) सन्तानः (पशवः) गवाश्वादयः (अन्नमन्नम्) बहुपरिमाणमन्नम् (वि) विविधम् (रोहतु) जायताम् ॥

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    विषय

    प्रजा, पशवः, अन्नम् अन्नम्

    पदार्थ

    १. (यथा) = जिस प्रकार (उर्वरायाम्) = उर्वरा भूमि में (फालेन कष्टे) = हल के लोहफलक से भूमि के कृष्ट होने पर (बीजं रोहति) = बीज उगता है-फल आदि रूप में वृद्धि को प्राप्त करता है। (एव) = इसी प्रकार इस वीर्यमणि के रक्षण से (मयि) = मुझमें (प्रजा) = सन्तान (पशव:) = गौ आदि पशु व (अन्नं अन्नम्) = खाने योग्य सात्त्विक अन्न (विरोहतु) = विशेषरूप से वृद्धि को प्रास हों।

    भावार्थ

    वीर्यरक्षण से मैं उत्तम सन्तान, गौ आदि पशुओं व सात्त्विक अन्न को प्राप्त होऊँ।

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    भाषार्थ

    (फालेन) हल के फाल द्वारा (कृष्टे) जुत जाने पर (उर्वरायाम्) उपजाऊ भूमि में, (बीजम्) बीज (यथा) जैसे (रोहति) प्ररोह करता है, प्रादुर्भूत होता है। (एवा) इसी प्रकार (मयि) मेरे निमित्त (प्रजाः, पशवः) प्रजाएं और पशु, (अन्नम्, अन्नम्) तथा नाना अन्न (वि रोहतु) विशेषतया प्रादुर्भूत हों।

    टिप्पणी

    [रोहति= रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च (स्वादिः)।]

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    विषय

    शिरोमणि पुरुषों का वर्णन।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (उर्वरायाम्) उर्वरा, उत्कृष्ट भूमि में (फालेन) हल की फाली से (कृष्टे) हल चला लेने पर बोया हुआ (बीजम्) बीज (रोहति) खूब अच्छी प्रकार उगता है और फलता है (एवा) उसी प्रकार (मयि) मुझ में (प्रजा पशवः अन्नं वि रोहतु) प्रजाएं, पशु और अन्न विशेष प्रकार से उत्पन्न हो और समृद्ध हो। ‘फाल मणि’ का रहस्यार्थ इस मन्त्र में स्पष्ट कर दिया है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बृहस्पतिर्ऋषिः। फालमणिस्त वनस्पतिर्देवता। १, ४, २१ गायत्र्याः, ३ आप्या, ५ षट्पदा जगती, ६ सप्तपदा विराट् शक्वरी, ७-९ त्र्यवसाना अष्टपदा अष्टयः, १० नवपदा धृतिः, ११, २३-२७ पथ्यापंक्तिः, १२-१७ त्र्यवसाना षट्पदाः शक्वर्यः, २० पथ्यापंक्तिः, ३१ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ३५ पञ्चपदा अनुष्टुब् गर्भा जगती, २, १८, १९, २१, २२, २८-३०, ३२-३४ अनुष्टुभः। पञ्चत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    Just as the seed grows to life and luxuriance in the fertile soil tilled by the plough, so may, in my life, progeny, wealth of animals and food rise and grow more and ever more.

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    Translation

    Just as seed grows on a fertile land tilled with a ploughshare, even so may the progeny, cattle and food of all kinds grow with me (or for me).

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    Translation

    As the seed springs up in the soil fertile, telled by the plough so let the food of many kinds, progeny and cattle spring up with me.

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    Translation

    As, when the plough hath tilled the soil, the seed springs up in fertile soil, so may I get progeny, cattle and food of every kind by observing this Vedic Law.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३३−(यथा) येन प्रकारेण (बीजम्) अ० ३।१७।२। उत्पत्तिकारणम् (उर्वरायाम्) उरु−ऋ गतौ-अच्, टाप्। शस्याढ्यायां भूमौ (कृष्टे) विलिखिते क्षेत्रे (फालेन) फल विदारणे-घञ्। लाङ्गलमुखस्येन लौहेन (रोहति) उत्पद्यते (एव) तथा (मयि) (प्रजा) सन्तानः (पशवः) गवाश्वादयः (अन्नमन्नम्) बहुपरिमाणमन्नम् (वि) विविधम् (रोहतु) जायताम् ॥

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