Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 23
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    45

    यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्। स मा॒यं म॒णिराग॑मत्स॒ह गोभि॑रजा॒विभि॒रन्ने॑न प्र॒जया॑ स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । अब॑ध्नात् । बृह॒स्पति॑: । दे॒वेभ्य॑: । असु॑रऽक्षितिम् । स: । मा॒ । अ॒यम् । म॒णि: । आ । अ॒ग॒म॒त् । स॒ह । गोभि॑: । अ॒जा॒विऽभि॑: । अन्ने॑न । प्र॒ऽजया॑ । स॒ह ॥६.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्। स मायं मणिरागमत्सह गोभिरजाविभिरन्नेन प्रजया सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । अबध्नात् । बृहस्पति: । देवेभ्य: । असुरऽक्षितिम् । स: । मा । अयम् । मणि: । आ । अगमत् । सह । गोभि: । अजाविऽभि: । अन्नेन । प्रऽजया । सह ॥६.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक.... म० २२। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (गोभिः) गौओं और (अजाविभिः सह) बकरी और भेड़ों के साथ, (अन्नेन) अन्न और (प्रजया सह) प्रजा [सन्तान] के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२३॥

    भावार्थ

    मनुष्य ईश्वरनियम पर चलकर गौ आदि प्राणियों से उपकार लेकर सुखी रहे ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(अजाविभिः) अजाश्च अवयश्च ताभिः (प्रजया) सन्तानेन सह। अन्यत् सुगमम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वीहि-यव, मधु-घृत, कीलाल

    पदार्थ

    १. (ब्रहस्पतिः) = [मन्त्र २२ में द्रष्टव्य है] २. (सः अयं मणि:) = वह यह मणि (मा) = मुझे (गोभिः सह) = उत्तम गौवों के साथ, (अजा+अविभि:) = बकरियों व भेड़ों के साथ, (अन्नेन प्रजया सह) = अन्न व उत्तम सन्तान के साथ (आगमत्) = प्रास हो। २. यह मणि मुझे (व्रीहियवाभ्याम्) = चावल व जौ के साथ, (महसा) = तेजस्विता व (भूत्या सह) = ऐश्वर्य के साथ प्रास हो। इसी प्रकार यह मणि मुझे (मधो:) = शहद की तथा (घृतस्य) = घृत की (धारया) = धारा के साथ तथा (मणि:) = यह वीर्यमणि (कीलालेन सह) = [कीलालं अनं-नि० २.७] सुसंस्कृत अन्न के साथ मुझे प्राप्त हो।

    भावार्थ

    वीर्यमणि के रक्षण के लिए आवश्यक है कि हमारा जीवन कृत्रिमता से दूर होकर स्वाभाविक हो। हमारे घर गौवों, बकरियों, भेड़ोंवाले व अन्न से युक्त हों। इन्हीं घरों में उत्तम सन्तान सम्भव होती है। इन घरों में चावल व जौ भोग्यपदार्थ हों, तभी तेजस्विता व ऐश्वर्य का विकास होगा। इन घरों में मधु, घृत व सुसंस्कृत अन्न की कमी न हो। [मांस आदि भोजन व अन्य उत्तेजक पेय द्रव्य वीर्यरक्षण के अनुकूल नहीं है]।

     

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहत्-ब्रह्माण्ड के पति परमेश्वर ने (देवेभ्यः) देवों के उत्पादन के लिये (असुरक्षितिम्) आसुरकर्मों का क्षय करने वाली (यम्, मणिम्) जिस कामनामयी मणि को (अबध्नात्) बान्धा, (सः) वह (अयम् मणिः) यह मणि (मा आगमत्) मुझे प्राप्त हुई है (गोभिः, अजाविभिः, अन्नेन, प्रजया सह) गौओं, बकरियों, भेड़ों, अन्न और प्रजा के साथ।

    टिप्पणी

    [भाव, मन्त्र २२ के सदृश। गौ आदि भोग्य हैं। "मा आगमत" द्वारा अपवर्गोन्मुखी पथिक अनुभव करता है कि उन्नति के लिये, बृहस्पति ने मुझे भी कामनामयी मणि प्रदान की है। (व्याख्या मन्त्र २२)]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शिरोमणि पुरुषों का वर्णन।

    भावार्थ

    (यम् अबध्नात्० इत्यादि) असुरों के विनाशक जिस पुरुष को वेदज्ञ महामात्य श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा के लिये नियुक्त करता है (सः अयं) वह यह (मणिः) नररत्न (गोभिः अजाविभिः सह) गौओं, बकरियों और भेड़ों के साथ और (प्रजया सह) प्रजा के साथ या (आगमत्) मुझ राजा को प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बृहस्पतिर्ऋषिः। फालमणिस्त वनस्पतिर्देवता। १, ४, २१ गायत्र्याः, ३ आप्या, ५ षट्पदा जगती, ६ सप्तपदा विराट् शक्वरी, ७-९ त्र्यवसाना अष्टपदा अष्टयः, १० नवपदा धृतिः, ११, २३-२७ पथ्यापंक्तिः, १२-१७ त्र्यवसाना षट्पदाः शक्वर्यः, २० पथ्यापंक्तिः, ३१ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ३५ पञ्चपदा अनुष्टुब् गर्भा जगती, २, १८, १९, २१, २२, २८-३०, ३२-३४ अनुष्टुभः। पञ्चत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    That jewel-mani of divine power and potential, which Brhaspati bore and generated for the divinities for the evolution of existence and control of evil and negativity, has come to me with cows, goats and sheep, and with food and progeny.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The blessing, destroyer of the life-destroyers, which the Lord supreme has: bestowed upon the enlightened ones, that same blessing has come to me along with kine, with goats (ajāh) and sheep (avibhih), with food and progeny.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    That citron plant which the master of Vedic speech binds on the men of Knowledge and which is the destroyer of disease-like foes has come to me with cows, goats and sheep’s and with food and progeny.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The demon-destroying Vedic Law, which God the Lord of mighty worlds created for the victorious, hath come to me for giving me cows, goats, sheep, food and progeny.

    Footnote

    Me: The king.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(अजाविभिः) अजाश्च अवयश्च ताभिः (प्रजया) सन्तानेन सह। अन्यत् सुगमम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top