अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 30
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
47
यां ते॑ धे॒नुंनि॑पृ॒णामि॒ यमु॑ ते क्षी॒र ओ॑द॒नम्। तेना॒ जन॑स्यासो भ॒र्ता योऽत्रास॒दजी॑वनः॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । ते॒ । धे॒नुम् । नि॒ऽपृ॒णामि॑ । यम् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । क्षी॒रे । ओ॒द॒नम् । तेन॑ । जन॑स्य । अ॒स॒: । भ॒र्ता । य: । अत्र॑ । अस॑त् । अजी॑वन: ॥२.३०॥
स्वर रहित मन्त्र
यां ते धेनुंनिपृणामि यमु ते क्षीर ओदनम्। तेना जनस्यासो भर्ता योऽत्रासदजीवनः॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । ते । धेनुम् । निऽपृणामि । यम् । ऊं इति । ते । क्षीरे । ओदनम् । तेन । जनस्य । अस: । भर्ता । य: । अत्र । असत् । अजीवन: ॥२.३०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्यों का पितरों के साथ कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे महात्मन्] (ते)तेरे लिये (याम्) जिस (धेनुम्) दुधैल गौ को (उ) और (ते) तेरे लिये (यम् ओदनम्)जिस भात को (क्षीरे) दूध में (निपृणामि) मैं रखता हूँ। (तेन) उसी [कारण] से तू (जनस्य) उस मनुष्य का (भर्ता) पोषक (असः) होवे, (यः) जो [मनुष्य] (अत्र) यहाँ (अजीवनः) निर्जीव [बिना जीविका, निर्बल] (असत्) होवे ॥३०॥
भावार्थ
जो मनुष्य दुग्ध अन्नआदि से विद्वान् महात्माओं की सेवा करते हैं, वे पुरुषार्थी अपना जीवन निर्विघ्नबिताते हैं ॥३०॥
टिप्पणी
३०−(याम्) (ते) तुभ्यम् (धेनुम्) दोग्ध्रीं गाम् (निपृणामि) पॄपालनपूरणयोः। नितरां पालयामि। धरामि (यम्) (उ) चार्थे (क्षीरे) दुग्धे (ओदनम्)भक्तम्। स्विन्नान्नम् (तेन) कारणेन (जनस्य) तस्य पुरुषस्य (असः) भवेः (भर्त्ता)पोषकः (यः) (अत्र) (असत्) भवेत् (अजीवनः) निर्जीवकः। निर्बलः ॥
विषय
अजीवनों का पालन
पदार्थ
१. हे वनस्थ पित: ! (याम्) = जिस (ते) = आपके लिए (धेनुम्) = गौ को (निपूणामि) = देता हूँ, (उ) = और (यम्) = जिस (क्षीरे आदेनम्) = दूध में पकाये गये भोजन को-मिष्टान्नादि को (ते) = आपके लिए देता हूँ, (तेन) = उस गौ व क्षीरान्नों से उस (जनस्य) = मनुष्य का आप (भर्ता अस:) = भरणकरनेवाले हो, (य:) = जो (अत्र) = यहाँ (अजीवनः असत्) = जीविका से रहित हो-जिसमें जीविका के अपार्जन की क्षमता न हो।
भावार्थ
लूले, लंगड़ें व्यक्ति नगर में ही भीख न माँगते रहें। इनके वनों में आश्रम हों। वहाँ वानप्रस्थ पितरों के द्वारा इनकी व्यवस्था की जाए। इन वानप्रस्थ पितरों के लिए नागरिक आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त कराते रहें।
भाषार्थ
हे वनवासी पिता आदि ! (ते) तुझे (यां धेनुम्) जो दुधार गौ, (निपृणामि) मैं गृहस्थी तेरे पालनार्थ देता हूं, और (ते) तुझे (यम् उ) जो (क्षोरे मोदनम्) दूध में पके चावल देता हूं, (तेन) उसके द्वारा तू, उस (जनस्य) सज्जन का (भर्ता असः) भरण-पोषण करनेवाला बन, (यः) जो सज्जन कि (अत्र) इन वानप्रस्थाश्रम में (आजीवनः) आजीविका से रहित (असद्) हो।
विषय
पुरुष को सदाचारमय जीवन का उपदेश।
भावार्थ
हे परम पूजनीय पुरुष ! (ते) तुझे (याम्) जिस (धेनुम्) गौ और (यम् उ) जिस (क्षीरे ओदनम्) दूध में पके भात ‘खीर’ पक्वान्न को मैं (निपृणामि) प्रदान करता हूँ उससे तू (जनस्य) उन जनों का (यः) जो लोग (अत्र) इस लोक में (अजीवनः) जीवन, आजीविका रहित, बेरोज़गार असमर्थ लंगड़े, लूले, अपाहिज और बाल्क स्त्री आदि (असत्) हों (भर्त्ता असः) पालन पोषण कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। यमो मन्त्रोक्ताश्च बहवो दवताः। ४, ३४ अग्निः, ५ जातवेदाः, २९ पितरः । १,३,६, १४, १८, २०, २२, २३, २५, ३०, ३६,४६, ४८, ५०, ५२, ५६ अनुष्टुमः, ४, ७, ९, १३ जगत्यः, ५, २६, ३९, ५७ भुरिजः। १९ त्रिपदार्ची गायत्री। २४ त्रिपदा समविषमार्षी गायत्री। ३७ विराड् जगती। ३८, ४४ आर्षीगायत्र्यः (४०, ४२, ४४ भुरिजः) ४५ ककुम्मती अनुष्टुप्। शेषाः त्रिष्टुभः। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O father figure, by the cow that I give you, and by the food cooked in milk that I offer you, pray be the sustainer and life giver with nourishment for the person who lacks the means of living, here.
Translation
What milch-cow I set down for thee, and what rice-dish for thee in milk - with that mayest thou be the supporter of the person who is there without a living.
Translation
O man, by the cow that I give you and by the rice boiled in the milk that I give you, you become the supporter of him who in this world, is without livelihood.
Translation
O noble person, be the supporter of the folk left in this world without a livelihood, by the cow I give thee, by the boiled rice set in milk I offer thee!
Footnote
A noble man must support the weak, lame, blind persons and children who are unfit to earn their livelihood. A good man should be charitable towards disabled persons.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३०−(याम्) (ते) तुभ्यम् (धेनुम्) दोग्ध्रीं गाम् (निपृणामि) पॄपालनपूरणयोः। नितरां पालयामि। धरामि (यम्) (उ) चार्थे (क्षीरे) दुग्धे (ओदनम्)भक्तम्। स्विन्नान्नम् (तेन) कारणेन (जनस्य) तस्य पुरुषस्य (असः) भवेः (भर्त्ता)पोषकः (यः) (अत्र) (असत्) भवेत् (अजीवनः) निर्जीवकः। निर्बलः ॥
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