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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 43
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - भुरिक् आर्षी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    45

    उदि॒मां मात्रां॑मिमीमहे॒ यथाप॑रं॒ न मासा॑तै। श॒ते श॒रत्सु॑ नो पु॒रा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । इ॒माम् । मात्रा॑म् । मि॒मी॒म॒हे॒ । यथा॑ । अप॑रम् । न । मासा॑तै । श॒ते । श॒रत्ऽसु॑ । नो इति॑ । पु॒रा ॥२.४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदिमां मात्रांमिमीमहे यथापरं न मासातै। शते शरत्सु नो पुरा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । इमाम् । मात्राम् । मिमीमहे । यथा । अपरम् । न । मासातै । शते । शरत्ऽसु । नो इति । पुरा ॥२.४३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 43
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मोक्ष के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (इमाम्) इस [वेदोक्त] (मात्राम्) मात्रा [मर्यादा] को (उत्) उत्तमता से (मिमीमहे) हम नापते हैं.... [मन्त्र ३८] ॥४३॥

    भावार्थ

    मन्त्र ३८ के समान॥४३॥

    टिप्पणी

    ४३−(उत्) उत्तमतया। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३८ ॥

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    विषय

    'मात्रा बलम्' [उपनिषत्]

    पदार्थ

    १. सब बातों को मर्यादा में करना आवश्यक है। ३६वें मन्त्र के अनुसार तप की भी एक मर्यादा है। (इमाम्) = इस (मात्राम्) = मात्रा को (मिमीमहे) = हम मापनेवाले बनते हैं, अर्थात् सब कार्यों को माप-तोलकर, युक्तरूप में करते हैं। युक्तचेष्ट पुरुष के लिए ही तो योग दुःखहा होता है। उपनिषद् का 'मात्रा बलम्' यह वाक्य इसी बात पर बल देता हुआ कह रहा है कि यह मात्रा ही तुम्हारे बल को स्थिर रक्खेगी। मात्रा को हम नापते हैं, (यथा) = जिससे (अपरं न मासातै) = कोई और वस्तु हमें न मापले, अर्थात् हमारे जीवन को समाप्त न कर दे। (न:) = हमें (शते शरत्स पुरा) = जीवन के सौ वर्षों से पहले कोई वस्तु न नाप ले, अर्थात् असमय में हमारी मृत्यु न हो जाए। २. इसी उद्देश्य से [प्र इमा०] हम मात्रा को प्रकर्षण मापनेवाले बनते हैं। [हर्षे चाप: प्रयुज्यते] (अप इमाम्) = आनन्दपूर्वक हम मात्रा को मापते हैं-माप तोलकर कार्यों को करने में आनन्द लेते हैं। (वि इमाम्) = विशेषरूप से इस मात्रा को मापते हैं। (निर् इमाम्) = निश्चय से इस मात्रा को मापते हैं। (उत् इमाम्) = उत्कर्षेण इस मात्रा को मापते हैं। (सम् इमाम्) = सम्यक् इस मात्रा को मापते हैं। मात्रा में सब कार्यों को करना ही तो दीर्घ व उत्कृष्ट जीवन का साधन है।

    भावार्थ

    हम मात्रा को मापनेवाले बनेंगे, अर्थात् सब कार्यों को माप-तोलकर करेंगे विशेषकर खान-पान को। ऐसा करने पर सौ वर्ष से पूर्व हमें यम माप न सकेगा, अर्थात् हम दीर्घजीवनवाले बनेंगे।

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    भाषार्थ

    आयु की (इमाम्) इस (मात्राम्) मात्रा को, (शते शरत्सु) सौ वर्षों में (उद् मिमीमहे) हम उत्कृष्ट या उन्नतरूप में मापते हैं, (यथा) ताकि (अपरम्) इससे कम (न मासातै) न कोई मापे। इससे (पुरा) पहिले (नो) मृत्युकाल नहीं।

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    विषय

    पुरुष को सदाचारमय जीवन का उपदेश।

    भावार्थ

    (शते शरत्सु) जीवन के सौ वर्षों में हम अपने जीवन की (इमां मात्राम्) इस मात्रा, काल परिमाण को ऐसी (प्र मिमीमहे) उत्तमता से मापें, व्यतीत करें (यथा अपरं न मासातै) जैसा दूसरा न माप सके, (नो पुरा) और न पहले किसी ने वैसा जीवन पूरा किया हो। (अप इमां मात्राम् इत्यादि) हम अपने इस जीवन की कालमात्रा इतनी सुगमता से व्यतीत करें, (इमां मात्रां वि मिमीमहे) इस जीवन-यात्रा को ऐसे विशेष रूपसे व्यतीत करें (इमा मात्रां निर मिमीमहे) इस जीवनयात्रा को ऐसी पूर्णता या निर्दोषता से व्यतीत कर। (इमां मात्रां उत् मिमीमहे) इस जीवन की काल मात्रा को ऐसी उत्तमता से व्यतीत करें, (इमां मात्रां सम् मिमीमहे) इस जीवन यात्रा को ऐसी भली प्रकार से समाप्त करें कि जैसी कोई न व्यतीत कर सके और न किसी ने हमसे पहले की हो। अर्थात् हम अपने जीवन को ऐसी उत्तम रीति से, सुगमता से, विशेष रूपसे, निःशेष या निर्दोषरूपसे, उन्नत रूप से, समान रूप से व्यतीत करें कि आदर्श हों। लोग कहें कि ‘न भूतो न भविष्यति’।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमो मन्त्रोक्ताश्च बहवो दवताः। ४, ३४ अग्निः, ५ जातवेदाः, २९ पितरः । १,३,६, १४, १८, २०, २२, २३, २५, ३०, ३६,४६, ४८, ५०, ५२, ५६ अनुष्टुमः, ४, ७, ९, १३ जगत्यः, ५, २६, ३९, ५७ भुरिजः। १९ त्रिपदार्ची गायत्री। २४ त्रिपदा समविषमार्षी गायत्री। ३७ विराड् जगती। ३८, ४४ आर्षीगायत्र्यः (४०, ४२, ४४ भुरिजः) ४५ ककुम्मती अनुष्टुप्। शेषाः त्रिष्टुभः। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    This model of life we live in full measure enthusiastically, so well that none other may do so any other way, for a full hundred years, no less.

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    Translation

    This measures do we measure up, so that etc.etc.

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    Translation

    Let us gracefully measure..... it before.

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    Translation

    This Vedic limit for life we beautifully establish once for all, that can’t be established in another way. A hundred autumns, not before.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४३−(उत्) उत्तमतया। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३८ ॥

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