अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 44
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - भुरिक् आर्षी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
34
समि॒मां मात्रां॑मिमीमहे॒ यथाप॑रं॒ न मासा॑तै। श॒ते श॒रत्सु॑ नो पु॒रा ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । इ॒माम् । मात्रा॑म् । मि॒मी॒म॒हे॒ । यथा॑ । अप॑रम् । न । मासा॑तै । श॒ते । श॒रत्ऽसु॑ । नो इति॑ । पु॒रा ॥२.४४॥
स्वर रहित मन्त्र
समिमां मात्रांमिमीमहे यथापरं न मासातै। शते शरत्सु नो पुरा ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । इमाम् । मात्राम् । मिमीमहे । यथा । अपरम् । न । मासातै । शते । शरत्ऽसु । नो इति । पुरा ॥२.४४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मोक्ष के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(इमाम्) इस [वेदोक्त] (मात्राम्) मात्रा [मर्यादा] को (सम्) सब प्रकार (मिमीमहे) हम नापते हैं, (यथा)क्योंकि (अपरम्) अन्य प्रकार से [उस मर्यादा को, कोई भी] (न) नहीं (मासातै) नापसकता। (शते शरत्सु) सौ वर्षों में भी (पुरा) लगातार (नो) कभी नहीं ॥४४॥
भावार्थ
मन्त्र ३८ के समान॥४४॥
टिप्पणी
४४−(सम्) सम्यक्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३८ ॥
विषय
'मात्रा बलम्' [उपनिषत्]
पदार्थ
१. सब बातों को मर्यादा में करना आवश्यक है। ३६वें मन्त्र के अनुसार तप की भी एक मर्यादा है। (इमाम्) = इस (मात्राम्) = मात्रा को (मिमीमहे) = हम मापनेवाले बनते हैं, अर्थात् सब कार्यों को माप-तोलकर, युक्तरूप में करते हैं। युक्तचेष्ट पुरुष के लिए ही तो योग दुःखहा होता है। उपनिषद् का 'मात्रा बलम्' यह वाक्य इसी बात पर बल देता हुआ कह रहा है कि यह मात्रा ही तुम्हारे बल को स्थिर रक्खेगी। मात्रा को हम नापते हैं, (यथा) = जिससे (अपरं न मासातै) = कोई और वस्तु हमें न मापले, अर्थात् हमारे जीवन को समाप्त न कर दे। (न:) = हमें (शते शरत्स पुरा) = जीवन के सौ वर्षों से पहले कोई वस्तु न नाप ले, अर्थात् असमय में हमारी मृत्यु न हो जाए। २. इसी उद्देश्य से [प्र इमा०] हम मात्रा को प्रकर्षण मापनेवाले बनते हैं। [हर्षे चाप: प्रयुज्यते] (अप इमाम्) = आनन्दपूर्वक हम मात्रा को मापते हैं-माप तोलकर कार्यों को करने में आनन्द लेते हैं। (वि इमाम्) = विशेषरूप से इस मात्रा को मापते हैं। (निर् इमाम्) = निश्चय से इस मात्रा को मापते हैं। (उत् इमाम्) = उत्कर्षेण इस मात्रा को मापते हैं। (सम् इमाम्) = सम्यक् इस मात्रा को मापते हैं। मात्रा में सब कार्यों को करना ही तो दीर्घ व उत्कृष्ट जीवन का साधन है।
भावार्थ
हम मात्रा को मापनेवाले बनेंगे, अर्थात् सब कार्यों को माप-तोलकर करेंगे विशेषकर खान-पान को। ऐसा करने पर सौ वर्ष से पूर्व हमें यम माप न सकेगा, अर्थात् हम दीर्घजीवनवाले बनेंगे।
भाषार्थ
आयु की (इमाम्) इस मात्रा को, (शते शरत्सु) सौ वर्षों में (सम् मिमीमहे) सम्यक् रूप में (मिमीमहे) हम मापते है, (यथा) ताकि (अपरम्) इससे कम (न मासातै) न कोई मापे। इस से (पुरा) पहिले (नो) मृत्युकाल नहीं।
विषय
पुरुष को सदाचारमय जीवन का उपदेश।
भावार्थ
(शते शरत्सु) जीवन के सौ वर्षों में हम अपने जीवन की (इमां मात्राम्) इस मात्रा, काल परिमाण को ऐसी (प्र मिमीमहे) उत्तमता से मापें, व्यतीत करें (यथा अपरं न मासातै) जैसा दूसरा न माप सके, (नो पुरा) और न पहले किसी ने वैसा जीवन पूरा किया हो। (अप इमां मात्राम् इत्यादि) हम अपने इस जीवन की कालमात्रा इतनी सुगमता से व्यतीत करें, (इमां मात्रां वि मिमीमहे) इस जीवन-यात्रा को ऐसे विशेष रूपसे व्यतीत करें (इमा मात्रां निर मिमीमहे) इस जीवनयात्रा को ऐसी पूर्णता या निर्दोषता से व्यतीत कर। (इमां मात्रां उत् मिमीमहे) इस जीवन की काल मात्रा को ऐसी उत्तमता से व्यतीत करें, (इमां मात्रां सम् मिमीमहे) इस जीवन यात्रा को ऐसी भली प्रकार से समाप्त करें कि जैसी कोई न व्यतीत कर सके और न किसी ने हमसे पहले की हो। अर्थात् हम अपने जीवन को ऐसी उत्तम रीति से, सुगमता से, विशेष रूपसे, निःशेष या निर्दोषरूपसे, उन्नत रूप से, समान रूप से व्यतीत करें कि आदर्श हों। लोग कहें कि ‘न भूतो न भविष्यति’।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। यमो मन्त्रोक्ताश्च बहवो दवताः। ४, ३४ अग्निः, ५ जातवेदाः, २९ पितरः । १,३,६, १४, १८, २०, २२, २३, २५, ३०, ३६,४६, ४८, ५०, ५२, ५६ अनुष्टुमः, ४, ७, ९, १३ जगत्यः, ५, २६, ३९, ५७ भुरिजः। १९ त्रिपदार्ची गायत्री। २४ त्रिपदा समविषमार्षी गायत्री। ३७ विराड् जगती। ३८, ४४ आर्षीगायत्र्यः (४०, ४२, ४४ भुरिजः) ४५ ककुम्मती अनुष्टुप्। शेषाः त्रिष्टुभः। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
This model of life we live in full measure enthusiastically and thus exemplify and define for a full hundred years, not less, and we do so in such a manner that none may define it in any other way.
Translation
This measures do we measure together, so that etc.etc
Translation
Let us appropriately measure this measure (qualitative and quantitative) of the life and world in hundred autumns as we do not measure anyting else and as none has measured it before.
Translation
This Vedic limit for life we fully measure out once for all, that can’t be measured out in another way. A hundred autumns; not before.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४४−(सम्) सम्यक्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३८ ॥
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