अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 127/ मन्त्र 10
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
132
अ॒भीवस्वः॒ प्र जि॑हीते॒ यवः॑ प॒क्वः प॒थो बिल॑म्। जनः॒ स भ॒द्रमेध॑ति रा॒ष्ट्रे राज्ञः॑ परि॒क्षितः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भीवस्व॒: । प्र । जि॑हीते॒ । यव: । प॒क्व: । प॒थ॑: । बिल॑म् ॥ जन॒: । स: । भ॒द्रम् । एध॑ति॒ । रा॒ष्ट्रे । राज्ञ॑: । परि॒क्षित॑: ॥१२७.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अभीवस्वः प्र जिहीते यवः पक्वः पथो बिलम्। जनः स भद्रमेधति राष्ट्रे राज्ञः परिक्षितः ॥
स्वर रहित पद पाठअभीवस्व: । प्र । जिहीते । यव: । पक्व: । पथ: । बिलम् ॥ जन: । स: । भद्रम् । एधति । राष्ट्रे । राज्ञ: । परिक्षित: ॥१२७.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(अभीवस्वः) सब ओर से बसानेवाला, (पक्वः) पका हुआ (यवः) जौ आदि अन्न (पथः) मार्ग से (बिलम्) गढ़े [खत्ती आदि] को (प्र) भले प्रकार (जिहीते) पहुँचता है। (सः जनः) वह मनुष्य (परिक्षितः) सब प्रकार ऐश्वर्यवाले (राज्ञः) राजा के (राष्ट्रे) राज्य में (भद्रम्) आनन्द (एधति) बढ़ाता है ॥१०॥
भावार्थ
राजा के सुप्रबन्ध से किसान आदि धनवान् लोग अन्न को पक जाने पर यथाविधि एकत्र करके खत्ती आदि में भरें और आवश्यकता पर काम में लाकर सुखी होवें ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(अभीवस्वः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१। अभि+वस निवासे-वप्रत्ययः, छान्दसो दीर्घः। सर्वतो वासयिता (प्र) प्रकर्षेण (जिहीते) ओहाङ् गतौ। गच्छति। प्राप्नोति (यवः) यवादिभक्ष्यपदार्थः (पक्वः) पाकं गतः (पथः) मार्गात् (बिलम्) छिद्रम्। अन्नधारणगर्तम् (जनः) मनुष्यः, (सः) (भद्रम्) आनन्दम् (एधति) एधयति। वर्धयति। अन्यद् गतम्-म० ७ ॥
विषय
१. (परिक्षित:) = चारों ओर गति व निवासवाले उस सर्वव्यापक (राज्ञः) = शासक प्रभु के (राष्ट्रे) = राष्ट्र में, अर्थात् जहाँ प्रभु-स्तवन उत्तमता से चलता है उस राष्ट्र में (सः जनः) = वह स्तोता मनुष्य (भद्रं एधति) = मंगल व कल्याण के साथ वृद्धि को प्राप्त होता है। यह स्तोता मार्ग से न भटकता है और न ही अकल्याण का भागी होता है। २. इस राष्ट्र में (अभीवस्व:) = शरीर व मन दोनों के उत्तम निवास का साधनभूत-दोनों को उत्तम बनानेवाला (पक्वः यवः) = परिपक्व जौ (पथ:) = माग से (बिलम् प्रजिहीत) = हमारा अनाज की खत्तियों की और-अन्ना को भर रखने के स्थानों की ओर (प्रजिहीते) = गति करता है, अर्थात् ये स्तोता उत्तम, न्याय्यमार्ग से यव आदि सात्त्विक भोज्यपदार्थों का घरों में संचय करते हैं।
पदार्थ
भावार्थ-प्रभु के स्तोता लोग सुख व कल्याण के साथ फूलते-फलते हैं। ये न्याय्यमार्गों से यव [जौ] आदि सात्विक भोजनों का ही संग्रह करते हैं।
भाषार्थ
पत्नी पति को कहती है कि हे पति! (वस्वः) घर की सब निवास-सामग्री (अभि) आपके प्रति (प्र जिहीते) समर्पित है, तथा (पक्वः) पके (यवः) जौ, और (पथः) पथ्य अर्थात् स्वास्थ्यकारी (बिलम्) बिल्व फल आदि आपके प्रति समर्पित हैं। (परिक्षितः) सर्वत्र गत, तथा सर्वत्र निवासी (राज्ञः) जगत् के महाराजा परमेश्वर के (राष्ट्रे) राष्ट्र में, (सः जनः) वे समग्र प्रजाजन (भद्रम्) सुखपूर्व तथा कल्याणपूर्वक (एधति) बढ़ते हैं।
विषय
उत्तम राजा का स्वरूप ‘परिक्षित्’।
भावार्थ
(स्वः अभि इव) मानों सूर्य के धूप में हुआ (वक्तः यवः) पका जौ आदि अन्न जिस प्रकार (बिलम् परः) खेत की हल से बनी रेखाओं पर (प्रजिहीते) खड़ा हो उसी प्रकार (सः जनः) वह प्रजाजन भी (परिक्षितः राज्ञः राष्ट्रे) प्रजाओं को सब प्रकार से बसाने और उसकी रक्षा करने वाले राजा के राष्ट्र में (भद्रम्) अत्यन्त सुख (एधते) खूब अधिक मात्रा में भोग करता है। उत्तम राजा के राज्य में प्रजा खूब सम्पन्न हो जाती है।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘पथों’ (तृ०) ‘मेघति’ इति श० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ चतस्रः पारिक्षित्यः।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra
Meaning
Ripe barley and all round wealth moves by paths of transport from the fields to the circulation. Thus do the people enjoy peace, plenty and prosperity in the dominion of the universal ruler.
Translation
The ripe barley giving alround wealth goes from the path to corncleft. That man (who possesses this wealth) attains prosperity and pleasure in the domain of fire or year.
Translation
The ripe barley giving alround wealth goes from the path to corn cleft. That man (who possesses this wealth) attains prosperity and pleasure in the domain of fire or year.
Translation
Let the cows breed here in my regime, let the horses and the brave men also grow in plenty. Herein resides the king, the giver of thousands of gifts and the protector and nourisher of his people.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(अभीवस्वः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१। अभि+वस निवासे-वप्रत्ययः, छान्दसो दीर्घः। सर्वतो वासयिता (प्र) प्रकर्षेण (जिहीते) ओहाङ् गतौ। गच्छति। प्राप्नोति (यवः) यवादिभक्ष्यपदार्थः (पक्वः) पाकं गतः (पथः) मार्गात् (बिलम्) छिद्रम्। अन्नधारणगर्तम् (जनः) मनुष्यः, (सः) (भद्रम्) आनन्दम् (एधति) एधयति। वर्धयति। अन्यद् गतम्-म० ७ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(অভীবস্বঃ) সর্বদিকে স্থাপনকারী/নিবাস প্রদানকারী, (পক্বঃ) পরিপক্ক (যবঃ) যব আদি অন্ন (পথঃ) মার্গ দ্বারা (বিলম্) সুরক্ষিত আশ্রয়ে [শস্যাগার আদিতে] (প্র) ভালোভাবে (জিহীতে) পৌঁছায়। (সঃ জনঃ) সেই মনুষ্য (পরিক্ষিতঃ) সর্ব প্রকার ঐশ্বর্যযুক্ত (রাজ্ঞঃ) রাজার (রাষ্ট্রে) রাজ্যে (ভদ্রম্) আনন্দ (এধতি) বর্ধিত করে ॥১০॥
भावार्थ
রাজা সুপ্রবন্ধে/সুব্যবস্থাপনায় কৃষকাদি ধনী লোকেরা অন্ন পরিপক্ব হওয়ার পর অন্নকে যথাযথ পদ্ধতি অনুসারে সংগ্রহ করে শস্যভান্ডার আদিতে সংরক্ষণ করে এবং প্রয়োজনের সময় ব্যবহার করে সুখী হয়॥১০॥
भाषार्थ
পত্নী পতিকে বলে, হে পতি! (বস্বঃ) ঘরের সকল নিবাস-সামগ্রী (অভি) আপনার প্রতি (প্র জিহীতে) সমর্পিত, তথা (পক্বঃ) পক্ব (যবঃ) যব, এবং (পথঃ) পথ্য অর্থাৎ স্বাস্থ্যকারী (বিলম্) বিল্ব ফল আদি আপনার প্রতি সমর্পিত। (পরিক্ষিতঃ) সর্বত্র গত, তথা সর্বত্র নিবাসী (রাজ্ঞঃ) জগতের মহারাজা পরমেশ্বরের (রাষ্ট্রে) রাষ্ট্রে, (সঃ জনঃ) সেই সমগ্র প্রজাগণ (ভদ্রম্) সুখপূর্ব তথা কল্যাণপূর্বক (এধতি) বর্ধিত হয়।
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