अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 127/ मन्त्र 11
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
111
इन्द्रः॑ का॒रुम॑बूबुध॒दुत्ति॑ष्ठ॒ वि च॑रा॒ जन॑म्। ममेदु॒ग्रस्य॒ चर्कृ॑धि॒ सर्व॒ इत्ते॑ पृणाद॒रिः ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । का॒रुम् । अ॑बूबुध॒त् । उत्ति॑ष्ठ । वि । चर॒ । जन॑म् ॥ मम । इत् । उ॒ग्रस्य॑ । चर्कृ॑धि॒ । सर्व॒: । इत् । ते॑ । पृ॒णात् । अ॒रि: ॥१२७.११॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रः कारुमबूबुधदुत्तिष्ठ वि चरा जनम्। ममेदुग्रस्य चर्कृधि सर्व इत्ते पृणादरिः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । कारुम् । अबूबुधत् । उत्तिष्ठ । वि । चर । जनम् ॥ मम । इत् । उग्रस्य । चर्कृधि । सर्व: । इत् । ते । पृणात् । अरि: ॥१२७.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] ने (कारुम्) काम करनेवाले को (अबूबुधत्) जगाया है−(उत्तिष्ठ) उठ और (जनम्) लोगों में (वि चर) विचर, (मम इत् उग्रस्य) मुझ ही तेजस्वी की [भक्ति] (चर्कृधि) तू करता रहे, (सर्वः) प्रत्येक (अरिः) वैरी (इत्) भी (ते) तेरी (पृणात्) तृप्ति करे ॥११॥
भावार्थ
प्रतापी राजा के प्रबन्ध से मनुष्य उद्यमी होकर आपस में विचारें और राजभक्त होकर चोर आदि प्रजा के शत्रुओं को वश में करें ॥११॥
टिप्पणी
११−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (कारुम्) कार्यकर्तारम् (अबूबुधत्) प्रबोधितवान् (उत्तिष्ठ) (वि) विविधम् (चर) गच्छ (जनम्) मनुष्यसमूहम् (मम) (इत्) एव (उग्रस्य) तेजस्विनः (चर्कृधि) करोतेः-यङ्लुकि रूपम्। भृशं भक्तिं कुरु (सर्वः) प्रत्येकः (इत्) (ते) तव (पृणात्) पृण प्रीणने। तृप्तिं कुर्यात् (अरिः) शत्रुः ॥
विषय
बोध
पदार्थ
१. (इन्द्र:) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाला प्रभु (कारूम्) = क्रियाओं को कुशलता से करनेवाले पुरुष को (अबूबुधत्) = बोधयुक्त करता है। आलसी को ज्ञान प्राप्त नहीं होता। प्रभु इस कार को यह बोध देते हैं कि (उत्तिष्ठ) = उठ, आलस्य को छोड़ और (जनम् विचर) = लोगों में विचरण कर। लोगों से तू सम्पर्क स्थापित कर। उनके सुख-दुःख में सहानुभूति दर्शाता हुआ उनका सहायक बन। २. दूसरी बात यह है कि (उग्रस्य मम इत्) = शत्रुओं को विनष्ट करनेवाले तेजस्वी मेरी ही (चर्कृधि) = स्तुति करनेवाला बन। तू इसप्रकार अपने जीवन को सुन्दर बना कि (सर्व:) = सब (अरि:) = [a religious or pious man] धार्मिक लोग (इत्) = निश्चय से (ते पुणात्) = तुझसे प्रसन्न हों [पृणाति delight, please]। तेरे सुन्दर जीवन को देखकर उन्हें प्रसन्नता का अनुभव हो।
भावार्थ
क्रियाशील व्यक्ति को प्रभु बोध देते हैं-[१]त् लोगों के साथ मिलकर चल [२] प्रभु का स्तवन करनेवाला बन और [३] इसप्रकार जीवन को सुन्दर बना कि सब धार्मिक लोग तुझे देखकर प्रसन्न हों।
भाषार्थ
(इन्द्रः) परमेश्वर (कारुम्) अपने स्तोता को (अबूबुधत्) आध्यात्मिक प्रबोध देता है, और उसे कहता है कि (उत्तिष्ठ) उठ अर्थात् प्रयत्नशील बन, और (जनम्) प्रजाजनों में (वि चरा) विचर, और (मम उग्रस्य) कर्मव्यवस्था के नियमन में उग्ररूप जो मैं हूँ, उसके, (चर्कृधि) कार्य को करता रह। (सर्वः इत्) सभी प्रजाजन (ते) तुझे (पृणात्) पालेंगे, (अरिः) दुश्मन भी तुझे पालेगा। अथवा (अरिः) तू सबका आध्यात्मिक-अधीश्वर बन।
टिप्पणी
[अरिः=ईश्वरः (निरु০ ५.२.७)। कारुः=स्तोता (निघं০ ३.१६)।]
विषय
राजा को विद्वान् का आदेश और समृद्ध प्रजाएं।
भावार्थ
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् राजा (कारुम्) क्रियाशील, कर्मण्य एक पुरुष को (अबूबुधत्) जगाता और चेताता है कि (उत् तिष्ठ) उठ (जरन्) सबको उपदेश करता हुआ तू (वि चर) विविध देशों में विचरण कर। (मम इत्) मेरे ही (उग्रस्य) बलवान् पुरुष के अधीन रक्षा में (चर्कृधि) रह कर काम कर। (सर्वः अरिः) समस्त शत्रु भी (ते पृणात्) तेरा पालन करें।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘जनम्’ इति शं० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ चतस्यः कारव्याः। अनुष्टुभः॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra
Meaning
Indra, universal ruler, wakes up the poet and artist and inspires him: Rise, go among the people and proclaim my message of love, passion and action, and the entire citizenry would listen, honour and reward you to your satisfaction.
Translation
The mighty ruler wakes the man of industry and vigour and says, stand up, walk in people, and do labour for me. Let all the enemies also satisfy you.
Translation
The mighty ruler wakes the man of industry and vigor and says, stand up, walk in people, and do labor for me. Let all the enemies also satisfy you.
Translation
O Mighty king, let not these cows be injured, let their master be not hurt. Let no inimical hearted person rule over them. O king of protection and defence, let no robber be their master.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (कारुम्) कार्यकर्तारम् (अबूबुधत्) प्रबोधितवान् (उत्तिष्ठ) (वि) विविधम् (चर) गच्छ (जनम्) मनुष्यसमूहम् (मम) (इत्) एव (उग्रस्य) तेजस्विनः (चर्कृधि) करोतेः-यङ्लुकि रूपम्। भृशं भक्तिं कुरु (सर्वः) प्रत्येकः (इत्) (ते) तव (पृणात्) पृण प्रीणने। तृप्तिं कुर्यात् (अरिः) शत्रुः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] (কারুম্) কর্মীকে (অবূবুধৎ) জাগ্রত করে− (উত্তিষ্ঠ) ওঠো এবং (জনম্) মানুষের মাঝে (বি চর) বিচরণ করো, (মম ইৎ উগ্রস্য) কেবল আমারই তেজস্বীর তুমি [ভক্তি] (চর্কৃধি) তুমি করো, (সর্বঃ) প্রত্যেক (অরিঃ) শত্রু (ইৎ) ও (তে) তোমার (পৃণাৎ) তৃপ্তি করে/করুক ॥১১॥
भावार्थ
প্রতাপশালী রাজার সুব্যবস্থায় মনুষ্য উদ্যোগী হয়ে নিজেদের মধ্যে বিচার করুক এবং রাজার অনুগত হয়ে চোর প্রভৃতি প্রজার শত্রুদের নিয়ন্ত্রণ করুক। ॥১১॥
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (কারুম্) নিজের স্তোতাকে (অবূবুধৎ) আধ্যাত্মিক প্রবোধ/জ্ঞান প্রদান করেন, এবং তাঁকে বলেন, (উত্তিষ্ঠ) ওঠো অর্থাৎ প্রয়ত্নশীল/প্রচেষ্টাশীল হও, এবং (জনম্) প্রজাদের মধ্যে (বি চরা) বিচরণ করো, এবং (মম উগ্রস্য) কর্মব্যবস্থার নিয়মনে/নিয়ন্ত্রণে উগ্ররূপ আমি, আমার, (চর্কৃধি) কার্য করতে থাকো। (সর্বঃ ইৎ) সকল প্রজাগণ (তে) তোমাকে (পৃণাৎ) পালন করবে, (অরিঃ) শত্রুও তোমাকে পালন করবে। অথবা (অরিঃ) তুমি সকলের আধ্যাত্মিক-অধীশ্বর হও।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal