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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 127 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 127/ मन्त्र 5
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    224

    प्र रे॒भासो॑ मनी॒षा वृषा॒ गाव॑ इवेरते। अ॑मोत॒पुत्र॑का ए॒षाम॒मोत॑ गा॒ इवा॑सते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । रे॒भास॑: । मनी॒षा: । वृषा॒: । गाव॑:ऽइव । ईरते ॥ अ॒मो॒त॒ । पु॒त्र॑का:। ए॒षाम् । अ॒मोत॑ । गा॒:ऽइव । आ॑सते ॥१२७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र रेभासो मनीषा वृषा गाव इवेरते। अमोतपुत्रका एषाममोत गा इवासते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । रेभास: । मनीषा: । वृषा: । गाव:ऽइव । ईरते ॥ अमोत । पुत्रका:। एषाम् । अमोत । गा:ऽइव । आसते ॥१२७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 127; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (वृषाः) बलवान् (गावः इव) बैलों के समान (रेभासः) विद्वान् लोग (मनीषाः) बुद्धियों को (प्र ईरते) आगे बढ़ाते हैं। (अमोत) हे बन्धनरहित ! (अमोत) हे मुक्त मनुष्य ! (एषाम्) इन [विद्वानों] के (पुत्रकाः) पुत्र (गाः) विद्याओं और भूमियाँ को (इव) अवश्य (आसते) सेवते हैं ॥॥

    भावार्थ

    जैसे बलवान् बैल आगे बढ़ते जाते हैं, मनुष्य विघ्नों से मुक्त होकर बुद्धि को अनेक प्रकार बढ़ावें और सन्तान आदि को योग्य विद्वान् और राज्याधिकारी बनावें ॥॥

    टिप्पणी

    −(प्र) प्रकर्षेण (रेभासः) विद्वांसः (मनीषाः) बुद्धीः (वृषाः) बलवन्तः (गावः) वृषभाः (इव) यथा (ईरते) गमयन्ति (अमोत) मूङ् बन्धने-क्त, छान्दसो गुणः। हे अमूत। अबद्ध। मुक्त (पुत्रकाः) पुत्राः। सन्तानाः (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (अमोत) (गाः) विद्याः। भूमीः (इव) एव (आसते) उपासते। सेवन्ते ॥

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    विषय

    स्तुति, सन्तान व गौएँ

    पदार्थ

    १. (रेभास:) = स्तोता लोग (मनीषा) = मननपूर्वक की गई स्तुतियों को [Hymn, praise] इसप्रकार (प्र ईरते)-प्रकर्षेण गतिमय करते हैं, (इव) = जैसे वे अपने घरों में (वृषा: गाव:) = दुग्ध का वर्षण करनेवाली-खूब दूध देनेवाली गौवों को प्रेरित करते हैं। ये प्रभु-भक्त इन गोदुग्धों के सेवन से ही सात्त्विकवृत्तिवाले बनकर प्रभु-भजन करनेवाले होते हैं। २. (एषाम्) = इन स्तोताओं के (अमा) = घर में (उत पत्रका:) = निश्चय से प्रिय सन्तान (आसते) = आसीन होते हैं, उसी प्रकार (इव) = जैसेकि (अमा) = इनके घरों में (उत) = निश्चय से (गा:) = गौएँ आसीन होती हैं। प्रभु-भक्तों के गृह प्रिय सन्तानों व गौओं से युक्त होते हैं।

    भावार्थ

    प्रभुभक्तों के गृहों में जिसप्रकार प्रभु का उपासन चलता है, उसी प्रकार वहाँ प्रिय सन्तानों व गौओं की स्थिति होती है।

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    भाषार्थ

    (रेभासः) हे स्तुति करनेवाले! विनाशकाल के उपस्थित हो जाने पर (मनीषा) बुद्धि भी कम्पित हो जाती है, (इव) जैसे कि (वृषा) वर्षा द्वारा (गावः) गौंए (प्र ईरते) कम्पित हो जाती हैं। तथा (एषाम्) इन मृत व्यक्तियों के (पुत्रकाः उत) छोटे-छोटे पुत्र भी (अमा) घर में निःसहाय होकर (आसते) बैठे रहते हैं, (इव) जैसे कि इनकी (गावः) गौएँ, सेवाशुश्रूषा के अभाव हो जाने के कारण, निःसहाय बैठी रहती हैं।

    टिप्पणी

    [ईरते=ईर गतौ, कम्पने च। अमा=गृह (निघं০ ३.४)। उत=तथा।]

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    विषय

    विद्वान् पुरुष का कर्तव्य।

    भावार्थ

    (रेभासः) विद्वान् जन और (मनीषाः) उनकी उत्तम मनन पूर्वक कही वाणियां (वृषाः गावः इव) सांडों और गौवों के समान (प्र ईरते) आगे बढ़ती हैं। (उत) और (अमा) घर पर (गाः उप आसते) गौओं के समान बैठती हैं, रहती हैं।

    टिप्पणी

    ‘इवासते’ इति शं० पा०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    तिस्रोः रैभ्य ऋचः।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra

    Meaning

    As brave and generous bulls and cows in the world of nature, so grateful celebrants, in the world of humanity, with their mind and intelligence sing and celebrate the Lord, raise their children and retire. Thus do they and their children, as brave and generous bulls and cows, live at home in peace and maintain the homely tradition of grateful creative living.

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    Translation

    The enlightened persons like strong bulls increase their praises. O man free from bondage, the children of these learned men now learn the vedic speeches.

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    Translation

    The enlightened persons like strong bulls increase their praises. O man free from bondage, the children of these learned men now learn the vedic speeches.

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    Translation

    O persons, listen well to the thorough description of the king who is the protector and settler of all people, the chief leader of all the prominent persons, the well-wishers of all the subjects and who, being victorious and donor of gifts, excells all the persons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(प्र) प्रकर्षेण (रेभासः) विद्वांसः (मनीषाः) बुद्धीः (वृषाः) बलवन्तः (गावः) वृषभाः (इव) यथा (ईरते) गमयन्ति (अमोत) मूङ् बन्धने-क्त, छान्दसो गुणः। हे अमूत। अबद्ध। मुक्त (पुत्रकाः) पुत्राः। सन्तानाः (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (अमोत) (गाः) विद्याः। भूमीः (इव) एव (आसते) उपासते। सेवन्ते ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বৃষাঃ) বলবান (গাবঃ ইব) বৃষের সমান (রেভাসঃ) বিদ্বানগণ (মনীষাঃ) বুদ্ধিকে (প্র ঈরতে) সামনে অগ্রসর করে। (অমোত) হে বন্ধনরহিত! (অমোত) হে মুক্ত মনুষ্য! (এষাম্) এদের [বিদ্বানদের] (পুত্রকাঃ) পুত্র (গাঃ) বিদ্যা এবং ভূমির (ইব) অবশ্যই (আসতে) সেবা করে/করুক॥৫॥

    भावार्थ

    বলবান্ ষাঁড় যেমন সামনে এগিয়ে চলতে থাকে, তেমনই মনুষ্য বাধাবিঘ্ন থেকে মুক্ত হয়ে বুদ্ধিকে নানা ভাবে বৃদ্ধি করুক এবং সন্তান আদিকে যোগ্য বিদ্বান এবং রাজ্যাধিকারী করুক ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (রেভাসঃ) হে স্তোতা! বিনাশকাল উপস্থিত হলে (মনীষা) বুদ্ধিও কম্পিত হয়ে যায়, (ইব) যেমন (বৃষা) বর্ষা দ্বারা (গাবঃ) গাভী (প্র ঈরতে) কম্পিত হয়/হয়ে যায়। তথা (এষাম্) এই মৃত ব্যক্তিদের (পুত্রকাঃ উত) ছোটো-ছোটো পুত্রও (অমা) ঘরে নিঃসহায় হয়ে (আসতে) বসে থাকে, (ইব) যেমন এঁদের (গাবঃ) গাভীরা, সেবাশুশ্রূষার অভাবের কারণে, নিঃসহায় বসে থাকে।

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