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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 14
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    54

    यः पर्व॑ता॒न्व्य॑दधा॒द्यो अ॒पो व्य॑गाहथाः। इन्द्रो॒ यो वृ॑त्र॒हान्म॒हं तस्मा॑दिन्द्र॒ नमो॑ऽस्तु ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । पर्व॑ता॒न् । अ॑दधा॒त् । य: । अ॒प: । वि । अ॑गा॒हथा: ॥ इन्द्र॒: । य: । वृ॑त्र॒हा । आत् । म॒हम् । तस्मा॑त् । इन्द्र॒ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । ते॒ ॥१२८.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः पर्वतान्व्यदधाद्यो अपो व्यगाहथाः। इन्द्रो यो वृत्रहान्महं तस्मादिन्द्र नमोऽस्तु ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । पर्वतान् । अदधात् । य: । अप: । वि । अगाहथा: ॥ इन्द्र: । य: । वृत्रहा । आत् । महम् । तस्मात् । इन्द्र । नम: । अस्तु । ते ॥१२८.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 128; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जिस (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] तूने (पर्वतान्) पहाड़ों को (वि) विविध प्रकार (अदधात्) धारण किया है, (यः) जिस तूने (अपः) जलों को (वि) विविध प्रकार (अगाहथाः) बिलोया है, (आत्) और (यः) जो (वृत्रहा) शत्रुनाशक है, (तस्मात्) इसीसे, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (ते) उस तुझको (महम्) बहुत (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥१४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पहाड़ों में मार्ग करके नदी, नाले, निकालकर प्रजा का उपकार करे, सब लोग उसका आदर करें ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(यः) पुरुषः (पर्वतान्) शैलान् (वि) विविधम् (अदधात्) अदधाः। धारितवानसि (यः) (अपः) जलानि (वि) (अगाहथाः) विलोडितवानसि (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (यः) (वृत्रहा) शत्रुनाशकः असि (आत्) अनन्तरम् (महम्) महत् (तस्मात्) कारणात् (इन्द्र) (नमः) सत्कारः (अस्तु) (ते) तादृशाय तुभ्यम् ॥

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    विषय

    इन्द्र का 'पर्वतविधान' व 'अपो विगाहन'

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (पर्वतान्) = [पर्व पूरणे] पूरणों को-कमियों के दूरीकरण को-(व्यदधात्) = विशेष रूप से करता है, अर्थात् सब न्यूनताओं को दूर करके जीवन को उत्तम गुणों से परिपूर्ण बनाता है। (य:) = जो (अप:) = ज्ञान-जलों व कर्मों का (व्यगाहथा:) = आलोडन करता है, अर्थात् खूब ज्ञानी व क्रियाशील बनता है। इसप्रकार (य:) = जो (इन्द्र:) = जितेन्द्रिय बनकर (वृत्रहा) = वासनारूप वृत्र का विनाश करता है। २. (आत्) = अब हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष (तस्मात्) = उस कारण से चूँकि तूने कमियों को दूर किया है, चूँकि तू ज्ञानी व क्रियाशील बना है, चूंकि तूने वासनारूप वृत्र का विनाश किया है, अतः ते-तुझे महम्-[मह पूजायाम्] महनीय [आदरभाव से परिपूर्ण] (नमः अस्तु) = नमस्कार हो।

    भावार्थ

    हम उस व्यक्ति को आदर दें जो [क] अपनी न्यूनताओं को दूर करने के लिए यत्नशील होता है, [ख] जो ज्ञानी व क्रियाशील बनता है, और [ग] जो वासनारूप वृत्र का विनाश करता है।

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    भाषार्थ

    (यः) जिस (इन्द्रः) परमेश्वर ने (पर्वतान्) पर्वतों का (व्यदधात्) विधान किया, धारण-पोषण किया, (यः) जिसने (अपः) सामुद्रिक और अभ्रिय जलों को (व्यगाहथाः) विलोड़ित अर्थात् तरंगित किया और गर्जवाया। (यः) जिस परमेश्वर ने (वृत्रहा) पाप-वृत्रों का हनन किया, (आत् तस्मात्) इस कारण (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ते) आपको (महं नमः) महा नमस्कार (अस्तु) हो।

    टिप्पणी

    [“मह” अकारान्त नपुंसके; यथा—“महानि” अथर्व০ २०.११.६।]

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    विषय

    वीर राजा का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (यः) जो तू (पर्वतान्) पर्वतों के समान दृढ, अभेद्य शत्रुओं को भी (वि अदधाः) छिन्नभिन्न करता है और (यः) जो (अपः) जलों या नदियों के या समुद्र के समान अपार सेनाप्रवाह को भी (वि अगाहथाः) विविध रूपों से विचरता है (यः) और जो तू (इन्द्रः) शत्रुविदारक होकर (महान्) बड़ा भारी (वृत्रहा) घेरनेवाले शत्रु को नाश करने हारा है (तस्मात्) इस कारण से हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् विद्युत् के समान तीव्र, वेगवान् (ते नमः अस्तु) तुझे हमारा आदर पूर्वक नमस्कार है।

    टिप्पणी

    व्यदधाद् ‘वृत्रहानमहं’ इति शं० पा०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथातः पञ्च इन्द्रगाथाः।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Prajapati

    Meaning

    You who hold and sustain the mountains, who chum, roll and make the oceans flow, O Indra, mighty great who destroy darkness and evil, for all this power and splendour, salutations in homage to you!

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    Translation

    O Almighty God, you are great one who does separate the clouds and penetrates the waters and is the slayer of unraining clouds and therefore I pay my homage to you.

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    Translation

    O Almighty God, you are great one who does separate the clouds and penetrates the waters and is the slayer of unraining clouds and therefore I pay my homage to you.

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    Translation

    After applying white-colored rays of electric power, they fix the loud speaking or transmitter on the right side. Conveying the foremost mighty commander amongst the learned persons, it glorifies and adds to the glorification of the commander.

    Footnote

    (15-16) l have not translated ‘Uchchaishrava’ as an ordinary or special horse of that name. I have sensed higher knowledge of science to be conveyed by these verses.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(यः) पुरुषः (पर्वतान्) शैलान् (वि) विविधम् (अदधात्) अदधाः। धारितवानसि (यः) (अपः) जलानि (वि) (अगाहथाः) विलोडितवानसि (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (यः) (वृत्रहा) शत्रुनाशकः असि (आत्) अनन्तरम् (महम्) महत् (तस्मात्) कारणात् (इन्द्र) (नमः) सत्कारः (अस्तु) (ते) तादृशाय तुभ्यम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] তুমি (পর্বতান্) পাহাড়/পর্বতসমূহ (বি) বিবিধ প্রকার (অদধাৎ) ধারণ করেছো, (যঃ) সেই তুমি (অপঃ) জলকে (বি) বিবিধ প্রকার (অগাহথাঃ) বিলোড়িত করেছো, (আৎ) এবং (যঃ) যে (বৃত্রহা) শত্রুনাশক, (তস্মাৎ) তাই, (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [মহান ঐশ্বর্যবান পুরুষ] (তে) সেই তোমাকে (মহম্) বহু (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক ॥১৪॥

    भावार्थ

    যে ব্যক্তি পাহাড়ের মধ্যে পথ করে নদী-নালা নির্গত করে মানুষের মঙ্গল করে, তাঁকে সবাই শ্রদ্ধা করুক ॥১৪॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যে (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (পর্বতান্) পর্বত-সমূহের (ব্যদধাৎ) বিধান করেছেন, ধারণ-পোষণ করেছেন, (যঃ) যিনি (অপঃ) সামুদ্রিক এবং অভ্রিয়/অন্তরিক্ষস্থ জলকে (ব্যগাহথাঃ) বিলোড়িত অর্থাৎ তরঙ্গিত করেছেন এবং গর্জিত/গর্জনশীল করেছেন। (যঃ) যে পরমেশ্বর (বৃত্রহা) পাপ-বৃত্র-সমূহের হনন করেছেন, (আৎ তস্মাৎ) এই কারণে (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তে) আপনাকে (মহং নমঃ) মহা নমস্কার (অস্তু) হোক।

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