अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 13
ऋषिः - रक्षोहाः
देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-९६
58
यस्ते॒ हन्ति॑ प॒तय॑न्तं निष॒त्स्नुं यः स॑रीसृ॒पम्। जा॒तं यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठय: । ते॒ । हन्ति॑ । प॒तय॑न्तम् । नि॒ऽस॒त्नुम् । य: । स॒री॒सृ॒पम् ॥ जा॒तम् । य: । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥ ९६.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते हन्ति पतयन्तं निषत्स्नुं यः सरीसृपम्। जातं यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठय: । ते । हन्ति । पतयन्तम् । निऽसत्नुम् । य: । सरीसृपम् ॥ जातम् । य: । ते । जिघांसति । तम् । इत: । नाशयामसि ॥ ९६.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गर्भरक्षा का उपदेश।
पदार्थ
[हे गर्भिणी !] (यः) जो कोई [रोग] (तेरे) तेरे [गर्भाशय में] (पतयन्तम्) गिरते हुए [वीर्यरूप गर्भ] को और (निषत्स्नुम्) जमते हुए [अंकुए अर्थात् बालक] को और (यः) जो कोई [रोग] (सरीसृपम्) डोलते हुए गर्भ को (हन्ति) नाश करे, और (यः) जो कोई [रोग] (ते) तेरे (जातम्) उत्पन्न हुए बच्चे को (जिघांसति) मारना चाहे, (तम्) उस [रोग] को (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नाश करें ॥१३॥
भावार्थ
उत्तम वैद्यों द्वारा रोगों का नाश करके गर्भ और उत्पन्न हुए बच्चे की रक्षा करनी चाहिये ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(यः) रोगः (ते) तव गर्भाशये (हन्ति) नाशयति (पतयन्तम्) पतन्तं वीर्यरूपगर्भम् (निषत्स्नुम्) ग्लाजिस्थश्च क्स्नुः। पा० ३।२।१३९। नि+षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-क्स्नु ग्स्नु वा। निषीदन्ते गर्भम् (यः) रोगः (सरीसृपम्) अ० ३।१०।६। सृपेर्यङ्लुगन्तात् पचाद्यच्। सर्पणशीलं गर्भम् (जातम्) दशसु मासेषूत्पन्नं गर्भम् (यः) रोगः (ते) तव (जिघांसति) हन्तुमिच्छति (तम्) रोगम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (नाशयामसि) नाशयामः ॥
विषय
गर्भाधान से जातकर्म तक
पदार्थ
१. गर्भाधान काल में (पतयन्तम्) = गर्भ में जाते हुए (ते) = तेरे वीर्यांश को (यः) = जो हन्ति नष्ट करता है, अब (निषत्स्नुम) = गर्भ में निषण्ण होते हुए जीव को जो नष्ट करता है, (यः) = जो तीन चार मास बाद (सरीसृपम्) = सर्पणशील उस गर्भस्थ बालक को नष्ट करता है, (तम्) = उस रोगकृमि को (इत:) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम नष्ट करते हैं। २. (यः) = जो रोग (ते) = तेरे (जातम्) = उत्पन्न हुए हुए बालक को जिघांसति नष्ट करना चाहता है, उस रोग को भी हम नष्ट करते हैं।
भावार्थ
गर्भस्थ बालक के जीवन को प्रारम्भ से अन्त तक रोगों से बचाने का प्रयत्न करते हैं।
भाषार्थ
(यः) जो कृमि (ते) तेरे गर्भाशय में (पतयन्तम्) गिरते हुए वीर्य को, (निषत्स्नुम्) तथा स्थित हुए गर्भ को स्रावित कर उसे (हन्ति) नष्ट करता है, और (यः) जो कृमि (सरीसृपम्) गर्भाशय में सरकते हुए गर्भ को नष्ट करता है, और (यः) जो कृमि (ते) तेरे (जातम्) उत्पन्न हुए बच्चे की (जिघांसति) हिंसा करता है, उसे (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं।
टिप्पणी
[निषत्स्नु=नि+सद्+स्नु (प्रस्रवणे)।]
विषय
राजा,आत्मा और परमेश्वर।
भावार्थ
हे स्त्री ! (ते) तेरे गर्भाशय में (पतयन्तम्) वीर्यरूप से निषिक्त होते हुए और (निषत्स्नुम्) गर्भाशय में जमते हुए और (सरीसृपम्) उसी में गति करते हुए और (जातम्) उत्पन्न हुए बालक को (यः ३) जो दुष्ट कीटाणु या पुरुष (हन्ति) नाश करता है और (यः) जो (जातम्) उत्पन्न हुए शिशु को (जिघांसति) मार देना चाहता है (तम्) उसको (इतः) इस राष्ट्र और देह से हम (नाशयामसि) नष्ट करदें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-५ पूरणो वैश्वामित्रः। ६-१० यक्ष्मनाशनः प्राजापत्यः। ११-१६ रक्षोहा ब्राह्मः। १७-२३ विवृहा काश्यपः। २४ प्रचेताः॥ १-५ इन्द्रो देवता। ६-१० राजयक्ष्मघ्नम्। ११-१६ गर्भसंस्रावे प्रायश्चितम्। १७-२३ यक्ष्मघ्नम्। २४ दुःस्वप्नघ्नम्॥ १-१० त्रिष्टुभः। ११-२४ अनुष्टुभः। चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Whatever afflicts the insemination and fertilisation process or the moving foetus or whatever hurts and damages your new born baby, we destroy from here.
Translation
O Woman, I the physician drive away from here that germ of disease which destroys the sinking semen-seed, the settled seed and the moving embryo and which kills the born babe.
Translation
O Woman, I the physician drive away from here that germ of disease which destroys the sinking semen-seed, the settled seed and the moving embryo and which kills the born babe.
Translation
O woman, we will altogether efface from this world, the person or the disease-germ, that sets thy thighs apart, or rests between thee and thy husband or hurts thy vagina from inside.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(यः) रोगः (ते) तव गर्भाशये (हन्ति) नाशयति (पतयन्तम्) पतन्तं वीर्यरूपगर्भम् (निषत्स्नुम्) ग्लाजिस्थश्च क्स्नुः। पा० ३।२।१३९। नि+षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-क्स्नु ग्स्नु वा। निषीदन्ते गर्भम् (यः) रोगः (सरीसृपम्) अ० ३।१०।६। सृपेर्यङ्लुगन्तात् पचाद्यच्। सर्पणशीलं गर्भम् (जातम्) दशसु मासेषूत्पन्नं गर्भम् (यः) रोगः (ते) तव (जिघांसति) हन्तुमिच्छति (तम्) रोगम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (नाशयामसि) नाशयामः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্র ১১-১৬-গর্ভরক্ষোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে অন্তঃসত্ত্বা !] (যঃ) যা কিছু [রোগ] (তে) তোমার [গর্ভাশয়ে] (পতয়ন্তম্) পতনশীল [বীর্যরূপ গর্ভকে] এবং (নিষৎস্নুম্) স্থিত [সন্তানকে] এবং (যঃ) যে রোগ (সরীসৃপম্) সর্পণশীল গর্ভকে (হন্তি) বিনাশ করতে উদ্যত তথা (যঃ) যে রোগ (তে) তোমার থেকে (জাতম্) উৎপন্ন শিশুকে (জিঘাংসতি) হনন করতে চায়, (তম্) সেই [রোগকে] (ইতঃ) এখান থেকে (নাশয়ামসি) আমরা বিনাশ করি॥১৩॥
भावार्थ
উত্তম বৈদ্যদের দ্বারা রোগের বিনাশ করে গর্ভ ও সদ্যজাত শিশুর সুরক্ষা করা উচিত ॥১৩॥
भाषार्थ
(যঃ) যে কৃমি (তে) তোমার গর্ভাশয়ে (পতয়ন্তম্) পতনশীল বীর্যকে, (নিষৎস্নুম্) তথা স্থিত গর্ভকে স্রাবিত করে উহাকে (হন্তি) নষ্ট করে, এবং (যঃ) যে কৃমি (সরীসৃপম্) গর্ভাশয়ে সর্পণ করে গর্ভ নষ্ট করে, এবং (যঃ) যে কৃমি (তে) তোমার (জাতম্) উৎপন্ন বাচ্চার/সন্তানের (জিঘাংসতি) হিংসা করে, তাঁকে (ইতঃ) এখান থেকে (নাশয়ামসি) আমরা নষ্ট করি।
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