Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 2
    ऋषिः - पूरणः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
    47

    तुभ्यं॑ सु॒तास्तुभ्य॑मु॒ सोत्वा॑स॒स्त्वां गिरः॒ श्वात्र्या॒ आ ह्व॑यन्ति। इन्द्रे॒दम॒द्य सव॑नं जुषा॒णो विश्व॑स्य वि॒द्वाँ इ॒ह पा॑हि॒ सोम॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तुभ्य॑म् । सु॒ता: । तुभ्य॑म् । ऊं॒ इति॑ । सोत्वा॑स: । त्वाम् । गिर॑: । श्वात्र्या॑: । आ । ह्व॒य॒न्ति॒ ॥ इन्द्र॑ । इ॒दम् । अ॒द्य । सव॑नम् । जु॒षा॒ण: । विश्व॑स्य । वि॒द्वान् । इ॒ह । पा॒हि॒ । सोम॑म् ॥९६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुभ्यं सुतास्तुभ्यमु सोत्वासस्त्वां गिरः श्वात्र्या आ ह्वयन्ति। इन्द्रेदमद्य सवनं जुषाणो विश्वस्य विद्वाँ इह पाहि सोमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुभ्यम् । सुता: । तुभ्यम् । ऊं इति । सोत्वास: । त्वाम् । गिर: । श्वात्र्या: । आ । ह्वयन्ति ॥ इन्द्र । इदम् । अद्य । सवनम् । जुषाण: । विश्वस्य । विद्वान् । इह । पाहि । सोमम् ॥९६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (तुभ्यम्) तेरे लिये (सुताः) सिद्ध किये हुए, (उ) और (तुभ्यम्) तेरे लिये (सोत्वासः) सिद्ध होनेवाले [तत्त्व रस] हैं, (त्वाम्) तुझको (श्वात्र्याः) गतिवाली [प्रजा] की (गिरः) वाणियाँ (आह्वयन्ति) बुलाती हैं। (अद्य) अत्र (इदम्) इस (सवनम्) ऐश्वर्य कर्म का (जुषाणः) सेवन करता हुआ और (विश्वस्य) सबका (विद्वान्) जाननेवाला तू (इह) यहाँ पर (सोमम्) उत्पन्न संसार की (पाहि) रक्षा कर ॥२॥

    भावार्थ

    राजा को चाहिये कि भूत भविष्यत् और वर्तमान को विचारकर प्रजा की सदा रक्षा करे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(तुभ्यम्) त्वदर्थम् (सुताः) संस्कृतास्तत्त्वरसाः (तुभ्यम्) (उ) च (सोत्वासः) कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः। पा० ३।४।१४। सुनोतेः-त्वन् सोतव्याः। संस्कर्तव्याः (त्वाम्) (गिरः) वाण्यः (श्वात्र्याः) श्वात्रतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। अच् प्रत्ययः, ङीप्। गतिशीलायाः प्रजायाः (आ ह्वयन्ति) आक्रोशन्ति (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (इदम्) (अद्य) (सवनम्) ऐश्वर्यकर्म (जुषाणः) सेवमानः (विश्वस्य) सर्वस्य (विद्वान्) ज्ञाता (इह) अत्र (पाहि) रक्ष (सोमम्) उत्पन्नं संसारम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वेदवाणियों की पुकार

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! (तुम्यं सुता:) = तेरे लिए इन सोमों का उत्पादन हुआ है, (उ) = और (तुभ्यम्) = तेरे लिए ही (सोत्वास:) = उत्पन्न किये जाएंगे। ये (श्वात्र्याः) = [शु अतन्ति]-शीघ्रता से गतिवाली, अर्थात् कर्मों में प्रेरित करनेवाली (गिर:) = वेदवाणियाँ (त्वाम् आह्वयन्ति) = तुझे पुकारती है। तूने इनका अध्ययन करना है और इनमें निर्दिष्ट कर्मों में प्रवृत्त होना है। २. हे जितेन्द्रिय पुरुष! (अद्य) = आज (इदं सवनम्) = इस जीवन-यज्ञ को (जुषाण:) = प्रीतिपूर्वक सेवन करता हुआ (विश्वस्य विद्वान) = अपने सब कर्त्तव्यकर्मों को जानता हुआ (सोमम्) = सोम [वीर्य] को (इह) = इस शरीर में (पाहि) = सुरक्षित कर । इस सोम-रक्षण से ही तू सब कर्त्तव्यकों को पूर्ण कर पाएगा। सोम-रक्षण ही तुझे तीव्र बुद्धि बनाकर वेद [ज्ञान] को समझने के योग्य बनाएगा।

    भावार्थ

    हम सोम का रक्षण करें। वेदवाणी को पढ़ें । वेदवाणी को समझते हुए हम तदुपदिष्ट कर्तव्यकर्मों का पालन करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (सुताः) उत्पन्न भक्तिरस (तुभ्यम्) आपके लिए हैं, (तुभ्यम् उ) आपके लिए ही (सोत्वासः) भविष्य में उत्पन्न भक्तिरस होंगे। (श्वात्र्याः) शीघ्र आप तक पहुँचनेवाली, अर्थात् हमारी हार्दिक (गिरः) स्तुति और प्रार्थना की वाणियाँ (त्वाम्) आपका ही (आ ह्वयन्ति) आह्वान करती हैं। हे परमेश्वर! आप (विश्वस्य विद्वान्) विश्ववेत्ता हैं, (इह) इस जीवन में (सोमम्) हमारे भक्तिरस की (पाहि) रक्षा कीजिए, और (अद्य) आज (इदम्) इस (सवनम्) भक्तिरसवाले यज्ञ का (जुषाणः) प्रीतिपूर्वक सेवन कीजिए।

    टिप्पणी

    [श्वात्र्याः=शु (आशु)+अत् (सातत्यगमने)+रक् (उणादि कोष २.१३)+य, अथवा ई (स्त्रियाम्)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा,आत्मा और परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) जीवात्मन् ! ये (सुताः) उत्पन्न समस्त पदार्थ (तुभ्यम्) तेरे उपभोग के लिये ही हैं। (सोत्वासः) उत्पन्न होने वाले भावी पदार्थ भी तेरे लिये ही हैं। (श्वात्र्याः) अति शुभ्र एवं शीघ्र ही अपने अभिप्राय को बतलाने वाली, सुस्पष्ट (गिरः) वाणियां भी (त्वां आह्वयन्ति) तुझे ही लक्ष्य करके पुकारती हैं। हे इन्द्र आत्मन् ! (अद्य) आज (इदं) इस (सवनम्) उपासना को (जुषाणः) स्वीकार करता हुआ तु (विश्वस्य विद्वान्) समस्त संसार का ज्ञाता होकर (सोमम्) सोम रूप ऐश्वर्य एवं आत्मानन्द रस का (पाहि) पान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-५ पूरणो वैश्वामित्रः। ६-१० यक्ष्मनाशनः प्राजापत्यः। ११-१६ रक्षोहा ब्राह्मः। १७-२३ विवृहा काश्यपः। २४ प्रचेताः॥ १-५ इन्द्रो देवता। ६-१० राजयक्ष्मघ्नम्। ११-१६ गर्भसंस्रावे प्रायश्चितम्। १७-२३ यक्ष्मघ्नम्। २४ दुःस्वप्नघ्नम्॥ १-१० त्रिष्टुभः। ११-२४ अनुष्टुभः। चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    To you are these resources dedicated, those that are ripe and ready and those that are being prepared. Voices of sincere devotion call on you. Indra, knowing well, loving and fully dedicated to this world programme of development, take it on here and now, protect, promote and raise the world to the heights of attainment.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O mighty ruler juices of herbs effused are yours and yours are also the jucies to pressed, our resonant praise songs invite you, O mighty one pleased knowing all of the worldly affairs come hither and guard the kingdom (Soma).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O mighty ruler, juices of herbs effused are yours and yours are also the juices to be pressed, our resonant praise songs invite you, O mighty one pleased with this Yajna and knowing all of the worldly affairs come hither and guard the kingdom (Soma).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The Mighty Lord of Bounties does not allow the fading away of the powers of sense-organs or speech of him who, with keenly desirous mind and whole heart, highly wishing to attain to the Adorable God, generates the spiritual state of bliss, but makes everything charming and of the highest quality for him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तुभ्यम्) त्वदर्थम् (सुताः) संस्कृतास्तत्त्वरसाः (तुभ्यम्) (उ) च (सोत्वासः) कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः। पा० ३।४।१४। सुनोतेः-त्वन् सोतव्याः। संस्कर्तव्याः (त्वाम्) (गिरः) वाण्यः (श्वात्र्याः) श्वात्रतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। अच् प्रत्ययः, ङीप्। गतिशीलायाः प्रजायाः (आ ह्वयन्ति) आक्रोशन्ति (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (इदम्) (अद्य) (सवनम्) ऐश्वर्यकर्म (जुषाणः) सेवमानः (विश्वस्य) सर्वस्य (विद्वान्) ज्ञाता (इह) अत्र (पाहि) रक्ष (सोमम्) उत्पन्नं संसारम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহাপ্রতাপী রাজন্] (তুভ্যম্) তোমার জন্য (সুতাঃ) সংস্কৃত (উ) তথা (তুভ্যম্) তোমার জন্য (সোত্বাসঃ) সংস্কৃত হবে এমন [তত্ত্ব রস], (ত্বাম্) তোমাকে (শ্বাত্র্যাঃ) সতত গতিশীল [প্রজাদের] (গিরঃ) বাণী (আহ্বয়ন্তি) আহ্বান করছে/করে। (অদ্য) এখানে (ইদম্) এই (সবনম্) ঐশ্বর্য কর্মের (জুষাণঃ) সেবনপূর্বক এবং (বিশ্বস্য) সকলের (বিদ্বান্) জ্ঞাতা তুমি (ইহ) এখানে (সোমম্) উৎপন্ন সংসার (পাহি) রক্ষা করো, পতিপালন করো॥২॥

    भावार्थ

    রাজার উচিত ভূত, ভবিষ্যৎ এবং বর্তমান বিচার করে প্রজাদের সদা রক্ষা করা ॥২॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (সুতাঃ) উৎপন্ন ভক্তিরস (তুভ্যম্) আপনার জন্য, (তুভ্যম্ উ) আপনার জন্যই (সোত্বাসঃ) ভবিষ্যতে উৎপন্ন ভক্তিরস হবে। (শ্বাত্র্যাঃ) শীঘ্র আপনার প্রতি প্রেরিত, অর্থাৎ আমাদের হার্দিক (গিরঃ) স্তুতি এবং প্রার্থনার বাণী (ত্বাম্) আপনারই (আ হ্বয়ন্তি) আহ্বান করে। হে পরমেশ্বর! আপনি (বিশ্বস্য বিদ্বান্) বিশ্ববেত্তা, (ইহ) এই জীবনে (সোমম্) আমাদের ভক্তিরসের (পাহি) রক্ষা করুন, এবং (অদ্য) আজ (ইদম্) এই (সবনম্) ভক্তিরসযুক্ত যজ্ঞের (জুষাণঃ) প্রীতিপূর্বক সেবন করুন।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top