अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 8
ऋषिः - पूरणः
देवता - इन्द्राग्नी, यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-९६
56
स॑हस्रा॒क्षेण॑ श॒तवी॑र्येण श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम्। इन्द्रो॒ यथै॑नं श॒रदो॒ नया॒त्यति॒ विश्व॑स्य दुरि॒तस्य॑ पा॒रम् ॥
स्वर सहित पद पाठस॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षेण॑ । श॒तऽवी॑र्येण । श॒तऽआ॑युषा । ह॒विषा॑ । आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । ए॒न॒म् ॥ इन्द्र॑: । यथा॑ । ए॒न॒म् । श॒रद॑: । नया॑ति । अति॑ । विश्व॑स्य । दु॒:ऽइ॒तस्य॑ । पा॒रम् ॥९६.८॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्राक्षेण शतवीर्येण शतायुषा हविषाहार्षमेनम्। इन्द्रो यथैनं शरदो नयात्यति विश्वस्य दुरितस्य पारम् ॥
स्वर रहित पद पाठसहस्रऽअक्षेण । शतऽवीर्येण । शतऽआयुषा । हविषा । आ । अहार्षम् । एनम् ॥ इन्द्र: । यथा । एनम् । शरद: । नयाति । अति । विश्वस्य । दु:ऽइतस्य । पारम् ॥९६.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(सहस्राक्षेण) सहस्रों नेत्रवाले, (शतवीर्येण) सैकड़ों सामर्थ्यवाले, (शतायुषा) सैकड़ों जीवन शक्तिवाले (हविषा) आत्मदान वा भक्ति से (एनम्) इस [आत्मा] को (आ अहार्षम्) मैंने उभारा है। (यथा) जिससे (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् मनुष्य (एनम्) इस [जीव] को (विश्वस्य) प्रत्येक (दुरितस्य) कष्ट के (पारम्) पार (अति=अतीत्य) निकालकर (शरदः) [सौ] शरद् ऋतुओं तक (नयाति) पहुँचावे ॥८॥
भावार्थ
जब मनुष्य एकाग्रचित्त होकर अनेक प्रकार से अपनी दर्शनशक्ति, कर्मशक्ति और जीविकाशक्ति बढ़ाकर अपने को सुधारता है, तब वह इन्द्र पुरुष सब उलझनों को सुलझाकर यशस्वी होकर चिरंजीवी होता है ॥८॥
टिप्पणी
६-९−व्याख्याताः-अ० ३।११।१-४ ॥
विषय
सहस्त्राक्ष हवि
पदार्थ
१. मैं (एनम्) = इस सण पुरुष को (हविषा) = हवि के द्वारा (आहार्षम्) = रोग से बाहर ले-आता हैं, उस हवि के द्वारा जोकि (सहस्त्राक्षेण) = हजारों आँखोंवाली है-हजारों पुरुषों का ध्यान करती है। हजारों को ही रोगों से मुक्त करती है। (शतशारदेन) = यह हवि हमें शतवर्षपर्यन्त ले-चलती है। (शतायुषा) = इस हवि के द्वारा हमारा शतवर्ष का आयुष्य क्रियामय बना रहता है। [एति इति आयुः] । २. मैं इसको हवि के द्वारा रोग से बाहर लाता हूँ और इसप्रकार व्यवस्था करता हूँ कि (यथा) = जिससे (इमम्) = इस पुरुष को (इन्द्रः) = सूर्य (विश्वस्य) = सब (दुरितस्य) = दुर्गतियों के (पारम्) = पार (नयाति) = ले-जाता है। अग्नि और सूर्य मिलकर मनुष्य को सब रोगों से ऊपर उठा देते हैं।
भावार्थ
अग्निहोत्र में डाले गये हविर्द्रव्यों से हजारों पुरुषों का कल्याण होता है। ये उन्हें शतवर्ष का क्रियामय जीवन प्राप्त कराते हैं।
भाषार्थ
(सहस्राक्षेण) हजारों रोगों का क्षय करनेवाली, (शतायुषा) १०० वर्षों की आयु करनेवाली, (शतवीर्येण) १०० वर्षों तक बल प्रदान करनेवाली (हविषा) हवि द्वारा, (एनम्) इस रोगी को (आहार्षम्) मैं मृत्यु के फंदे से छीन लाया हूँ। (यथा) ताकि (इन्द्रः) परमेश्वर (एनम्) इसे (शरदः) सौ वर्षों तक (नयाति) पहुँचा दे, और इसे (विश्वस्य दुरितस्य) सब कष्टों के (पारम् अति) पार कर दे।
टिप्पणी
[अति=अति नयाति। “सहस्राक्षेण” द्वारा यह भी सूचित किया है कि हवि-चिकित्सा द्वारा एक साथ हजारों रोगियों के समान-रोग की चिकित्सा हो सकती है। क्योंकि अग्नि में आहुत हवि के सूक्ष्मांश हजारों रोगियों के समीप एक साथ पहुँच सकते हैं।]
विषय
राजा,आत्मा और परमेश्वर।
भावार्थ
(६-९) इन ४ मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्व० ३। ११ । १-४॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-५ पूरणो वैश्वामित्रः। ६-१० यक्ष्मनाशनः प्राजापत्यः। ११-१६ रक्षोहा ब्राह्मः। १७-२३ विवृहा काश्यपः। २४ प्रचेताः॥ १-५ इन्द्रो देवता। ६-१० राजयक्ष्मघ्नम्। ११-१६ गर्भसंस्रावे प्रायश्चितम्। १७-२३ यक्ष्मघ्नम्। २४ दुःस्वप्नघ्नम्॥ १-१० त्रिष्टुभः। ११-२४ अनुष्टुभः। चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
With medicines, herbs and tonics of a thousandfold efficacy of light power, a hundred year’s vitality capable of sustaining a hundred year span of life, I have brought this patient back to life and health just as Indra, lord of life and his physician version, the doctor, takes this patient across all evils and maladies of the world to a full life of hundred years.
Translation
I have restored him to health with the medicine named shatavirya which has hundred-powered potency, thousand powered potency and has the power to make one lead the life of hundred years. Let the mighty physician lead him safe for a hundred autumns and to the farther shore of disease and pains
Translation
I have restored him to health with the medicine named shatavirya which has hundred-powered potency, thousand-powered potency and has the power to make one lead the life of hundred years. Let the mighty physician lead him safe for a hundred autumns and to the farther shore of disease and pains.
Translation
See Ath. 3.11. 4
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६-९−व्याख्याताः-अ० ३।११।१-४ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
৬-১০-রোগনাশনোপদেশঃ
भाषार्थ
(সহস্রাক্ষেণ) সহস্র নেত্রবান, (শতবীর্যেণ) শত সামর্থ্যবান (শতায়ুষা) শত জীবনশক্তিসম্পন্ন (হবিষা) আত্মদান বা ভক্তি দ্বারা (এনম্) এই [আত্মা] কে (আ অহার্ষম্) আমি উদ্গম করেছি। (যথা) যাতে (ইন্দ্রঃ) ঐশ্বর্যবান্ মনুষ্য (এনম্) এই [জীব]-কে (বিশ্বস্য) প্রত্যেক (দুরিতস্য) কষ্ট (পারম্) পার (অতি=অতীত্য) করে (শরদঃ) [শত] শরৎ ঋতু পর্যন্ত (নয়াতি) পৌঁছোতে পারে ॥৮॥
भावार्थ
যখন মনুষ্য একাগ্রচিত্ত হয়ে অনেক প্রকারে নিজের দর্শনশক্তি, কর্মশক্তি ও জীবিকাশক্তি বাড়িয়ে নিজেকে সংশোধন করে, তখন সেই ইন্দ্র পুরুষ সমস্ত সমস্যা কে সমাধান করে যশস্বী হয়ে চিরঞ্জীবী হয় ॥৮॥
भाषार्थ
(সহস্রাক্ষেণ) সহস্র রোগের ক্ষয়কারী, (শতায়ুষা) ১০০ বর্ষের আয়ু সৃজনকারী, (শতবীর্যেণ) ১০০ বর্ষ পর্যন্ত বল প্রদানকারী (হবিষা) হবি দ্বারা, (এনম্) এই রোগীকে (আহার্ষম্) আমি মৃত্যুর জাল থেকে হরণ করে নিয়ে এসেছি। (যথা) যাতে (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (এনম্) একে[রোগীকে] (শরদঃ) শত বর্ষ পর্যন্ত (নয়াতি) পৌঁছে দেয়, এবং একে (বিশ্বস্য দুরিতস্য) সকল কষ্ট থেকে (পারম্ অতি) পার করেন।
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