Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 30 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 15
    ऋषिः - चातनः देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुष्य सूक्त
    52

    मा ते॑ प्रा॒ण उप॑ दस॒न्मो अ॑पा॒नोऽपि॑ धायि ते। सूर्य॒स्त्वाधि॑पतिर्मृ॒त्योरु॒दाय॑च्छतु र॒श्मिभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । ते॒ । प्रा॒ण: । उप॑ । द॒स॒त् । मो इति॑ । अ॒पा॒न: । अपि॑ । धा॒यि॒ । ते॒ । सूर्य॑: । त्वा॒ । अधि॑ऽपति । मृ॒त्यो: । उ॒त्ऽआय॑च्छतु । र॒श्मिऽभि॑: ॥३०.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा ते प्राण उप दसन्मो अपानोऽपि धायि ते। सूर्यस्त्वाधिपतिर्मृत्योरुदायच्छतु रश्मिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । ते । प्राण: । उप । दसत् । मो इति । अपान: । अपि । धायि । ते । सूर्य: । त्वा । अधिऽपति । मृत्यो: । उत्ऽआयच्छतु । रश्मिऽभि: ॥३०.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मा के उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) तेरा (प्राणः) प्राण [भीतर जानेवाला श्वास] (मा उप दसत्) नष्ट न होवे, और (ते) तेरा (अपानः) अपान [बाहिर जानेवाला श्वास] (मो अपि धायि) न ढक जावे। (अधिपतिः) प्रभु (सूर्यः) सर्वप्रेरक परमेश्वर (त्वा) तुझको (मृत्योः) मृत्यु से (रश्मिभिः) अपनी व्याप्तियों द्वारा (उदायच्छतु) उठावे ॥१५॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपनी शक्तियों को यथावत् काम में लाकर परमेश्वर के आश्रय से आलस्य, दरिद्रता आदि दुःखों को मिटा कर ऊपर उठे ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(मा) निषेधे (ते) तव (प्राणः) नासाप्रवर्त्ती पूरको वायुः (उप दसत्) दसु उपक्षये। नश्येत् (मो) निषेधे (अपानः) रेचको वायुः (अपि धायि) अपि वा आच्छादने। आच्छादितो भवतु (ते) (सूर्यः) अ० १।३।५। षू प्रेरणे−क्यप्, रुट् च। सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (त्वा) (अधिपतिः) प्रभुः (मृत्योः) आलस्यदरिद्रतादिरूपात् मरणात् (उदायच्छतु) यमु उपरमे। उन्नयतु (रश्मिभिः) अ० २।३२।१। अशू व्याप्तौ−मि, रशादेशः। स्वव्याप्तिभिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सूर्य-किरणों का सम्पर्क

    पदार्थ

    १.(ते प्राण:) = तेरा प्राण (मा उपदसत्) = क्षीण न हो। (मा उ) = और न ही (ते अपान:) = तेरा अपान (अपिधायि) = अपिहित हो जाए-कार्य करने में असमर्थ हो जाए। २. यह (अधिपति:) = सब देवों का मुखिया (सूर्यः) = सूर्य (रश्मिभिः) = अपनी किरणों के द्वारा (त्वा) = तुझे (मृत्योः) = मृत्यु से (उदायच्छन्तु) = ऊपर उठाये।

    भावार्थ

    हमारी प्राण व अपनाशक्ति ठीक बनी रहे। इनका कार्य समुचित रूप से होता रहे। सूर्य-किरणों का सम्पर्क हमें मृत्यु से ऊपर उठाये।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (ते) तेरा (प्राणः) प्राण (मा)(उपदसत्) उपक्षीण हो, ( मा उ)(ते) तेरा (अपान:) अपान ( अपि धायि ) बन्द हो । ( अधिपति: सूर्यः ) अधिपति सूर्य ( रश्मिभिः) रश्मियों द्वारा (त्वा) तुझे (मृत्योः) मृत्यु से (उदायच्छतु) ऊपर की ओर आकृष्ट करे।

    टिप्पणी

    [मृत्यु हो जाने पर स्थूलशरीर तो अग्निसात् होकर भस्मीभूत हो जाता है, परन्तु सूक्ष्मशरीर भस्मीभूत नहीं होता, इसमें प्राण-अपान की शक्तियां बची रहती हैं, इन शक्तियों के कारण जीवात्मा पुनर्जन्म के लिए मातृयोनि में प्रविष्ट होता है। मृत्यु हो जाने पर, सूक्ष्मशरीरसहित जीवात्मा, सूर्य की रश्मियों द्वारा उपरिलोक में जाता और वहाँ गतिमान् होता है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    आरोग्य और सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    भावार्थ

    हे जीव ! (ते प्राणः) तेरा प्राण (मा उप-दसत्) विनाश को प्राप्त न हो। और (ते अपानः) तेरा अपान भी (मा अपि धायि) कभी न रुके। अर्थात् तेरे शरीर में प्राण-अपान = श्वासोच्छास की क्रिया कभी बन्द न हो। (अधि-पतिः) सबका मालिक (सूर्यः) सूर्य, सबका प्रेरक परमात्मा (त्वा) तुझको (रश्मिभिः) अपनी व्यापक बलकारिणी किरणों से (उद्-आ-यच्छतु) ऊंचा उठाये रक्खे। तेरे शरीर को और जीवनशक्ति को गिरने न दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आयुष्काम उन्मोचन ऋषिः। आयुर्देवता। १ पथ्यापंक्तिः। १-८, १०, ११, १३, १५, १६ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। १२ चतुष्पदा विराड् जगती। १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। १७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    God Health and Full Age

    Meaning

    Your prana must not fail. Your apana must not be closed. May the sun, presiding light of life, revive and raise you with its rays.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May your in-breath (prána) not come to a stop. May your out-breath (apana) not become covered (obstructed). May the sun, the overlord, raise you up out of death with his rays.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O patient! let not your inhaling breath fail and let not fail you exhaling breath, let the sun who is protector of life raise you from the death with its rays of light.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let not thine in-going breath fail, let not thy out-going breath be lost.Let God Who is Lord supreme raise thee from death with His beams of light.

    Footnote

    ‘Thine, thee’ refer to the patient.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(मा) निषेधे (ते) तव (प्राणः) नासाप्रवर्त्ती पूरको वायुः (उप दसत्) दसु उपक्षये। नश्येत् (मो) निषेधे (अपानः) रेचको वायुः (अपि धायि) अपि वा आच्छादने। आच्छादितो भवतु (ते) (सूर्यः) अ० १।३।५। षू प्रेरणे−क्यप्, रुट् च। सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (त्वा) (अधिपतिः) प्रभुः (मृत्योः) आलस्यदरिद्रतादिरूपात् मरणात् (उदायच्छतु) यमु उपरमे। उन्नयतु (रश्मिभिः) अ० २।३२।१। अशू व्याप्तौ−मि, रशादेशः। स्वव्याप्तिभिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top