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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 3
    ऋषिः - चातनः देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुष्य सूक्त
    49

    यद्दु॒द्रोहि॑थ शेपि॒षे स्त्रि॒यै पुं॒से अचि॑त्त्या। उ॑न्मोचनप्रमोच॒ने उ॒भे वा॒चा व॑दामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । दु॒द्रोहि॑थ । शे॒पि॒षे । स्त्रि॒यै । पु॒से । अचि॑त्त्या । उ॒न्मो॒च॒न॒प्र॒मो॒च॒ने इत्यु॑न्मोचनऽप्रमोच॒ने । उ॒भे इति॑ । वा॒चा । व॒दा॒मि॒ । ते॒ ॥३०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्दुद्रोहिथ शेपिषे स्त्रियै पुंसे अचित्त्या। उन्मोचनप्रमोचने उभे वाचा वदामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । दुद्रोहिथ । शेपिषे । स्त्रियै । पुसे । अचित्त्या । उन्मोचनप्रमोचने इत्युन्मोचनऽप्रमोचने । उभे इति । वाचा । वदामि । ते ॥३०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मा के उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जो (स्त्रियै) स्त्री के लिये वा (पुंसे) पुरुष के लिये (अचित्त्या) अचेतना से (दुद्रोहिथ) तूने अनिष्ट चीता है वा (शेपिषे) शाप दिया है। (उभे) दोनों.... म० २ ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य परद्रोह और पर निन्दा से पृथक् रहे और किसी प्रकार से होजाने पर प्रायश्चित्त करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यत्) यदि (दुद्रोहिथ) द्रुह−लिट्। अनिष्टं चिन्तितवानसि (शेपिषे) शपितवानसि (स्त्रियै) (पुंसे) पुरुषाय (अचित्त्या) अचेतनया। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    उन्मोचन-प्रमोचने

    पदार्थ

    १. (यत्) = यदि (स्वः पुरुषः) = अपना कोई सम्बन्धी पुरुष, (यत्) = यदि कोई (अरण: जन:) = [रण शब्दे] असम्भाष्य-हीन पुरुष (त्वा अभि चेरु:) = तुझपर अभिचार वा बुरा आक्रमण करता है तो मैं [आचार्य] (वाचा) = वाणी के द्वारा (उन्मोचनप्रमोचने) = जाल से छूटना व जाल से बचे ही रहना-(उभे) = दोनों का ते वदामि तुझे उपदेश करता हूँ। तू समझदार बनकर उन दुष्टों के जाल से छूट आ, उनके जाल में मत फैस। २. हे शिष्य ! (यत्) = जो (अचित्या) = नासमझी से अथवा असावधानी से तूने (स्त्रिय) = किसी स्त्रि के लिए (पंसे) = या पुरुष के लिए (दद्रोहिथ) = द्रोह किया है अथवा (शेपिषे) = बुरा वचन कहा है, तो मैं वाणी द्वारा तेरे लिए उन्मोचन व प्रमोचन को कहता हूँ। ३. (यत्) = यदि तू (मातकृतात् एनस:) = माता से किये गये पाप से (च) = और (यत्) = यदि (पितकृतात् एनस:) = पिता से किये गये पाप से (शेषे) = अज्ञान-निद्रा में सो रहा है तो मैं वाणी द्वारा तेरे लिए उन्मोचन और प्रमोचन दोनों को ही करता हूँ।

    भावार्थ

    आचार्यों से ज्ञान प्राप्त करके हम अपने और पराये मनुष्यों के षड्यन्त्रों का शिकार न बनें। किसी भी स्त्री व पुरुष के लिए अपशब्द न कहें। अज्ञाननिद्रा में ही न सोये रह जाएँ।

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    भाषार्थ

    (स्त्रियै) किसी स्त्री के लिए, ( पुंसे ) किसी पुरुष के लिए, ( अचित्त्या ) अज्ञान से (यत्) जो (दुद्रोहिथ) तूने द्रोह किया है और (शेपिष) शाप दिया है, [तो तज्जन्य पाप से ] (उन्मोचनप्रमोचने) उससे उन्मुक्त और प्रमुक्त होना ( उभे) इन दोनों को (वाचा) वेदवाणी द्वारा (ते) तेरे लिए ( वदामि ) मैं कहता हूँ।

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    विषय

    आरोग्य और सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    भावार्थ

    हे शिष्य ! (यद्) जो (अचित्या) बिना जाने तूने (स्त्रियै) किसी स्त्री से या (पुंसे) पुरुष से (दुद्रोहिथ) द्रोह किया और उसको (शेपिषे) बुरा वचन कहा तो (ते उन्मोचन-प्रमोचने वाचा वदामि) मैं उस पाप से छूटने और परे रहने का उपदेशे करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आयुष्काम उन्मोचन ऋषिः। आयुर्देवता। १ पथ्यापंक्तिः। १-८, १०, ११, १३, १५, १६ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। १२ चतुष्पदा विराड् जगती। १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। १७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    God Health and Full Age

    Meaning

    Out of wantonness of mind, hate or anger, if you have sworn at, cursed or reviled a man or woman, I would speak and advise you both ways, how to forestall the evil or how to face it with self-confidence and overcome it.

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    Translation

    If you have acted with malice or cursed a woman or a man thoughtlessly, for that I tell you ways of both release and deliverance in my words.

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    Translation

    If you on your own fault created enemity against any man or woman unconsciously. I tell you by my advice the freedom and release from that.

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    Translation

    O pupil, if in thy folly thou hast lied or spoken ill to a woman or a man,instruct thee how to get rid of this sin and shun it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यत्) यदि (दुद्रोहिथ) द्रुह−लिट्। अनिष्टं चिन्तितवानसि (शेपिषे) शपितवानसि (स्त्रियै) (पुंसे) पुरुषाय (अचित्त्या) अचेतनया। अन्यद् गतम् ॥

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