अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 6
इ॒हैधि॑ पुरुष॒ सर्वे॑ण॒ मन॑सा स॒ह। दू॒तौ य॒मस्य॒ मानु॑ गा॒ अधि॑ जीवपु॒रा इ॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । ए॒धि॒ । पु॒रु॒ष॒ । सर्वे॑ण । मन॑सा । स॒ह । दू॒तौ । य॒मस्य॑ । मा । अनु॑ । गा॒: । अधि॑ । जी॒व॒ऽपु॒रा: । इ॒हि॒ ॥३०.६॥
स्वर रहित मन्त्र
इहैधि पुरुष सर्वेण मनसा सह। दूतौ यमस्य मानु गा अधि जीवपुरा इहि ॥
स्वर रहित पद पाठइह । एधि । पुरुष । सर्वेण । मनसा । सह । दूतौ । यमस्य । मा । अनु । गा: । अधि । जीवऽपुरा: । इहि ॥३०.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मा के उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(पुरुष) हे पुरुष ! (सर्वेण) संपूर्ण (मनसा सह) मन [साहस] के साथ (इह) यहाँ पर (एधि) रह। (यमस्य) मृत्यु के (दूतौ अनु) तपानेवाले प्राण और अपान वायु [उलटे श्वास] के पीछे (मा गाः) मत जा। (जीवपुराः) जीवित प्राणियों के नगरों में (अधि इहि) पहुँच ॥६॥
भावार्थ
मनुष्य उत्साह करके आलस्य आदि मृत्यु के कारणों को छोड़कर जीते हुए अर्थात् पुरुषार्थी शूर वीर महात्माओं में अपना नाम करें ॥६॥
टिप्पणी
६−(इह) अत्र पुरुषार्थिसमाजे (एधि) भव (पुरुष) अ० १।१६।४। हे पौरुषयुक्त (सर्वेण) समस्तेन (मनसा) मनोबलेन (सह) सहितः (दूतौ) अ० १।७।६। संतापकौ प्राणापानौ (यमस्य) मृत्युकालस्य (मा गाः) म० १। मा गच्छ (अनु) अनुसृत्य (अधि इहि) प्राप्नुहि (जीवपुराः) अ० २।९।३। जीवितानां नगरीः ॥
विषय
रोगों व चिन्ताओं से ऊपर
पदार्थ
१. हे (पुरुष) = इस शरीर-पुरी में निवास करनेवाले जीव! (सर्वेण मनसा सह) = पूर्ण मन के साथ तू (इह एधि) = यहाँ-जीवन-यात्रा में चलनेवाला हो। तू सदा उत्साह-सम्पन्न होकर जीवन में आगे बढ़। (यमस्य दतौ मा अणुगा:) = यम के दूतों के पीछे जानेवाला न हो। शरीर के रोग तथा मानस चिन्ताएँ' ही यम के दूत हैं। तू इन रोगों व चिन्ताओं से ऊपर उठ। २. (जीवपुरा: अधि इहि) = [अधि+इ स्मरणे] जीवित पुरुषों की अग्रगतियों का तू स्मरण कर । सदा आगे बढ़नेवाला बन।
भावार्थ
जीवन-यात्रा में हम सदा उत्साह बनाये रक्खें। जो कार्य करें पूरे दिल से करें। रोग व चिन्ताएँ तो यम के दूत हैं। इन्हें परे छोड़कर हम अग्रगतियों का स्मरण करें और आगे बढ़ें।
भाषार्थ
(पुरुष) हे पुरुष ! (सर्वेण मनसा सह) सब इच्छाओं और विचारों के साथ (इह एधि) यहाँ तू रह, (यमस्य) यम के ( दूतौ ) उपतापी ( रजस्, तमस्) का (मा अनुगाः) अनुगामी न हो, ( अधि) और अधिकार से ( जीवपुराः) जीवितों के पुरों को (इहि) तू जा, प्राप्त हो।
टिप्पणी
[दूतौ= टुदु उपतापे (स्वादिः)। ये दूत दो हैं रजस् और तमस् । यथा "रजस्तमो मोप गा मा प्रमेष्ठा:" (अथर्व० ८।२।१ ), अर्थात् रजस् तमस् के समीप तू न जा, और न हिसित हो, न मृत्यु को प्राप्त हो।]
विषय
आरोग्य और सुख की प्राप्ति का उपदेश।
भावार्थ
हे पुरुष ! (सर्वेण मनसा सह) अपने समस्त मनन शक्ति, चित्त और ज्ञान के साथ (इह) इस गुरु-गृह में (एधि) रह, निवास कर (यमस्य दूतौ) यम के दूत, दुःख, उपताप के लाने वाले अशना और पिपासा, भूख और प्यास दोनों के पीछे (मा अनु गा) मत जा। (जीवपुराः) जीव के निवास योग्य पुर जर्थात् देह के अंगों पर (अघि इहि) वश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आयुष्काम उन्मोचन ऋषिः। आयुर्देवता। १ पथ्यापंक्तिः। १-८, १०, ११, १३, १५, १६ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। १२ चतुष्पदा विराड् जगती। १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। १७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
God Health and Full Age
Meaning
O man, stay here in life with all your mind and senses in full healthy order. Do not follow the messengers of death, let day and night pass without adversly affecting you. Go on in the celestial city of the spirit, living happy.
Translation
O man, stay here with all your spirit. Do not follow the two messengers of death (the ordainer Lord). Come unto the fortress of the living.
Translation
O man! live and stay here with all your mind, follow not the messengers of death—the decay caused by day and night, stay in the castle of soul—the body.
Translation
O pupil, stay here in my house with full devotion and attention. Carenot for hunger and thirst, the messengers of Death, control thy body, the citadel wherein dwells the soul!
Footnote
My house: the family of the preceptor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(इह) अत्र पुरुषार्थिसमाजे (एधि) भव (पुरुष) अ० १।१६।४। हे पौरुषयुक्त (सर्वेण) समस्तेन (मनसा) मनोबलेन (सह) सहितः (दूतौ) अ० १।७।६। संतापकौ प्राणापानौ (यमस्य) मृत्युकालस्य (मा गाः) म० १। मा गच्छ (अनु) अनुसृत्य (अधि इहि) प्राप्नुहि (जीवपुराः) अ० २।९।३। जीवितानां नगरीः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal