अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
सूक्त - दुःस्वप्ननासन
देवता - त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप्
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
तस्ये॒दंवर्च॒स्तेजः॑ प्रा॒णमायु॒र्नि वे॑ष्टयामी॒दमे॑नमध॒राञ्चं॑ पादयामि ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । इ॒दम् । वर्च॑: । तेज॑: । प्रा॒णम् । आयु॑: । नि । वे॒ष्ट॒या॒मि॒ । इ॒दम् । ए॒न॒म् । अ॒ध॒राञ्च॑म् । पा॒द॒या॒मि॒ ॥८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्येदंवर्चस्तेजः प्राणमायुर्नि वेष्टयामीदमेनमधराञ्चं पादयामि ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । इदम् । वर्च: । तेज: । प्राणम् । आयु: । नि । वेष्टयामि । इदम् । एनम् । अधराञ्चम् । पादयामि ॥८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(तस्य) उस के (इदम्) इस (वर्चः) दीप्ति को, (तेजः) तेज को, (प्राणम्) प्राण या जीवनीय अन्न को, (आयुः) आयु को (नि वेष्टयामि) कारागार के घेरे में घेर देता हूँ, (इदम्) अब (अधराञ्चम्, एनम्) इस नीचगति वाले को (पादयामि) निज पादतले करता हूं।
टिप्पणी -
[विजयी राजा पराजित राष्ट्र के मुख्य-मुख्य अधिकारियों के लिये दण्ड विधान करता है:— १. पराजित राजा की राष्ट्र सम्पत्तियों पर स्वाधिकार करना, २. पराजित राज्य के अधिकारियों को उन के निज देश निवास से वञ्चित कर देना; ३. पाशों अर्थात् हथकड़ी आदि फन्दों में जकड़ देना; ४. उन की शान आदि को कम कर देना, अर्थात् उनका साधारण रहन-सहन कर देना; ५. उन्हें जेल में रखना; ६. उन के खान-पान में नियन्त्रण; ७. कइयों को आयु भर जेल में रखना; ८. उन्हें अपने पैरों तले बिठाना, अर्थात् अपने समक्ष उच्चासन न देना। तेजः=martial or heroic lustre; majestic lustre (आप्टे) वेष्टयामि, वेष्टन = To surround, enclose, Fencing (आप्टे)। प्राणम् = अन्नं वै प्राणिनां प्राणः। कैदियों के अन्न पर विशेष निगरानी चाहिये, ताकि वे अवाञ्छित का ग्रहण न कर सकें। वर्चः, तेजः= हाथी में वर्चस् होता है, और शेर में तेजस्]