Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 127

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 127/ मन्त्र 8
    सूक्त - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    प॑रि॒च्छिन्नः॒ क्षेम॑मकरो॒त्तम॒ आस॑नमा॒चर॑न्। कुला॑यन्कृ॒ण्वन्कौर॑व्यः॒ पति॒र्वद॑ति जा॒यया॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒रि॒च्छिन्न॒: । क्षेम॑म् । अकरो॒त् । तम॒: । आस॑नम् । आ॒चर॑न् । कुला॑यन् । कृ॒ण्वन् । कौर॑व्य॒: । पति॒: । वद॑ति । जा॒यया॑ ॥१२७.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिच्छिन्नः क्षेममकरोत्तम आसनमाचरन्। कुलायन्कृण्वन्कौरव्यः पतिर्वदति जायया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परिच्छिन्न: । क्षेमम् । अकरोत् । तम: । आसनम् । आचरन् । कुलायन् । कृण्वन् । कौरव्य: । पति: । वदति । जायया ॥१२७.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 127; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    (परिच्छिन्नः) सांसारिक-भावनाओं से पूर्णतया कटा होकर उपासक (क्षेमम्) सबका कल्याण (अकरोत्) करता है, और (तमः) तामसिकभावों का (आसनम्) पूर्ण-प्रक्षेप अर्थात् परित्याग (आचरन्) कर देता है। (कौरव्यः) पृथिवी में अपने सदुपदेशों को गुञ्जाता हुआ, (कुलायन् कृण्वन्) समग्र पृथिवी को अपना घर बना कर रहता है। उसके सदुपदेशों के कारण (पतिः) पति अपनी (जायया) पत्नी के साथ प्रसन्नता से (वदति) बातें करता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top