अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 47/ मन्त्र 18
येना॑ पावक॒ चक्ष॑सा भुर॒ण्यन्तं॒ जनाँ॒ अनु॑। त्वं व॑रुण॒ पश्य॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । पा॒व॒क॒ । चक्ष॑सा । भु॒र॒ण्यन्त॑म् । जना॑न् । अनु॑ ॥ त्वम् । व॒रु॒ण॒ । पश्य॑सि ॥१७.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु। त्वं वरुण पश्यसि ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । पावक । चक्षसा । भुरण्यन्तम् । जनान् । अनु ॥ त्वम् । वरुण । पश्यसि ॥१७.१८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 18
भाषार्थ -
(पावक) हे पवित्र करनेवाले परमेश्वर! (येन चक्षसा) जिस कृपादृष्टि से आप (जनान् अनु) सर्वसाधारण जनों में से (भरण्यन्तम्) योगमार्ग पर तीव्रवेग से चलानेवाले उपासक को (पश्यसि) देखते हैं, उस पर अनुग्रह करते हैं, (वरुण) हे पापनिवारक प्रभो! मेरे पापों का निवारण करके (त्वम्) आप मुझ उपासक को भी कृपा दृष्टि से देखिये, मुझ पर भी अनुग्रह कीजिए।
टिप्पणी -
[भुरण्युः=क्षिप्रम् (निघं০ २.१५)।]