अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 47/ मन्त्र 5
इन्द्र॒ इद्धर्योः॒ सचा॒ संमि॑श्ल॒ आ व॑चो॒युजा॑। इन्द्रो॑ व॒ज्री हि॑र॒ण्ययः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । इत् । हर्यो॑: । सचा॑ । सम्ऽमि॑श्ल: । आ । व॒च॒:ऽयुजा॑ ॥ इन्द्र॑: । व॒ज्री । हि॒र॒ण्यय॑: ॥४७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र इद्धर्योः सचा संमिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्री हिरण्ययः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । इत् । हर्यो: । सचा । सम्ऽमिश्ल: । आ । वच:ऽयुजा ॥ इन्द्र: । वज्री । हिरण्यय: ॥४७.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(इन्द्रः इत्) परमेश्वर ही (हर्योः) ऋग्वेद की स्तुतियों और सामगानों में (आ) पूर्णतया और (सम्) सम्यम् प्रकार से (सचा मिश्लः) मानो समवाय सम्बन्ध से मिश्रित हुआ-हुआ है, चूंकि (वचोयुजा) ऋग्वेद और सामवेद का जोड़ा, परमेश्वर का ही प्रवचन करता है। (इन्द्रः) परमेश्वर (वज्री) न्यायवज्रधारी है, (हिरण्ययः) तथा हिरण्य सदृश बहुमूल्य सम्पत्ति है। [देखो व्याख्या सू০ ३८, मं০ ५।]