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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 47/ मन्त्र 11
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७

    यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒ काम्या॒ हरी॒ विप॑क्षसा॒ रथे॑। शोणा॑ धृ॒ष्णू नृ॒वाह॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जन्ति॑ । अ॒स्य॒ । काम्या॑ । हरी॒ इति॑ । विऽप॑क्षसा । रथे॑ ॥ शोणा । धृ॒ष्णू इति॑ । नृ॒ऽवाह॑सा ॥४७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे। शोणा धृष्णू नृवाहसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जन्ति । अस्य । काम्या । हरी इति । विऽपक्षसा । रथे ॥ शोणा । धृष्णू इति । नृऽवाहसा ॥४७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 11

    भाषार्थ -
    (काम्या=काम्यौ) योगसाधना के लिए चाही गई, (हरी) चित्त को विषयों से हरनेवाली, (विपक्षसा) सुषुम्णा नाड़ी के अलग-अलग दो पार्श्वों में लगी हुई, (शोणा) भूरे और पीले से रंगोंवाली, (धृष्णू) मजबूत (नृवाहसा) योगिजनों को उनके उद्देश्य तक पहुँचानेवाली—इडा और पिङ्गला नाड़ियों को, (अस्य) इस परमेश्वर के (रथे) रमणीय स्वरूप में, (युञ्जन्ति) योगिजन योगविधि द्वारा युक्त अर्थात् सम्बद्ध करते हैं।

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