अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 47/ मन्त्र 8
आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑। उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥
स्वर सहित पद पाठआ । त्वा॒ । ब्र॒ह्म॒ऽयुजा॑ । हरी॒ इति॑ । वह॑ताम् । इ॒न्द्र॑ । के॒शिना॑ ॥ उप0951ग । ब्रह्मा॑णि । न॒: । शृ॒णु॒ ॥४७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आ त्वा ब्रह्मयुजा हरी वहतामिन्द्र केशिना। उप ब्रह्माणि नः शृणु ॥
स्वर रहित पद पाठआ । त्वा । ब्रह्मऽयुजा । हरी इति । वहताम् । इन्द्र । केशिना ॥ उप0951ग । ब्रह्माणि । न: । शृणु ॥४७.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (ब्रह्मयुजा) आप ब्रह्म के साथ मुझे जोड़ देनेवाले, (केशिना) ज्ञान का प्रकाश करनेवाले (हरी) विषयों से चित्त को हर लेनेवाले ऋक् और साम, अर्थात् स्तुतियों और सामगान (त्वा) आपको (आ वहताम्) हमें प्राप्त कराएँ। हे परमेश्वर! (उप) समीप होकर, हमारे हृदयों में प्रकट होकर, (नः) हमारी (ब्रह्माणि) ब्रह्म-प्रतिपादक स्तुतियाँ (शृणु) सुनिए।